ब्लड टेस्ट से पार्किंसंस का पता लगाने में कामयाबी
वैज्ञानिकों को एक ऐसे प्रयोग में शुरुआती कामयाबी हासिल हुई है, जिसमें एक ब्लड टेस्ट के जरिए शुरुआती दौर में ही पार्किंसंस रोग का पता लगाया जा सकता है.
वैज्ञानिकों को एक ऐसे प्रयोग में शुरुआती कामयाबी हासिल हुई है, जिसमें एक ब्लड टेस्ट के जरिए शुरुआती दौर में ही पार्किंसंस रोग का पता लगाया जा सकता है.वैज्ञानिकों ने कहा है कि एक प्रयोग में रक्त जांच के जरिये पार्किंसंस रोग की शुरुआत में ही जानकारी मिलने की दिशा में कामयाबी मिली है. बुधवार को प्रकाशित शोध रिपोर्ट में कहा गया है कि मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाने वाले इस घातक रोग की जांच में यह टेस्ट पहला अहम जरिया बन सकता है.
इस ब्लड टेस्ट में उन कोशिकाओं की जांच की जाती है जिनके नुकसान के कारण पार्किंसंस रोग होता है. हालांकि शोधकर्ताओं का कहना है कि इस जांच के असल जीवन में प्रयोग में आने में अभी कई साल का समय लग सकता है, लेकिन भविष्य में होने वाले परीक्षणों में इस टेस्ट को कामयाबी मिलती है तो पार्किंसंस का शुरुआती दौर में ही पता लगाया जा सकेगा और नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचने के पहले ही थेरेपी शुरू हो सकेगी.
अमेरिका के उत्तरी कैरोलाइना स्थित ड्यूक स्कूल ऑफ मेडिसिन की लॉरी सैंडर्स इस शोध का नेतृत्व कर रही हैं. उन्होंने कहा, "फिलहाल पार्किंसंस को आमतौर पर लक्षणों से ही पहाचाना जाता है. और वैसा तब होता है जब मरीज को स्नायु तंत्र में काफी नुकसान हो चुका होता है.”
कैसे काम करता है टेस्ट
नयी जांच में ब्लड टेस्ट के जरिये माइटोकॉन्ड्रिया में डीएनए में हुए नुकसान को आंका जाता है. माइटोकॉन्ड्रिया कोशिकाओं के अंदर का ढांचा होता है जो कोशिका के काम के लिए ऊर्जा पैदा करता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस ढांचे के अंदर डीएनए को होने वाले नुकसान के कारण ही पार्किंसंस रोग होता है.
साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन पत्रिका में छपे शोध के मुताबिक वैज्ञानिकों की जांच में पाया गया कि पार्किंसंस के मरीजों की कोशिकाओं के डीएनए में उन लोगों के मुकाबले ज्यादा नुकसान देखा गया, जिन्हें यह रोग नहीं है.
वैज्ञानिकों ने यह भी देखा कि जिन लोगों में पार्किंसंस रोग को बढ़ाने वाला जीन एलआरआरके2 मौजूद था, उनके डीएनए में तब भी नुकसान देखा गया, जिनमें पार्किंसंस के लक्षण मौजूद नहीं थे.
फिलहाल पार्किंसंस के लिए जो दवाएं उपलब्ध हैं, वे सिर्फ लक्षणों को ही काबू करती हैं. सैंडर्स उम्मीद जताती हैं कि नया ब्लड टेस्ट पार्किंसंस की पहचान के साथ-साथ उन दवाओं की पहचान में भी मदद करेगा, जो माइटोकॉन्ड्रिया के डीएनए में होने वाले नुकसान को ठीक कर सकती हैं. साथ ही, उन लोगों की भी पहचान हो सकेगी जिनके लिए वे दवाएं ज्यादा लाभदायक हो सकती हैं.
इलाज की जरूरत
एबकैम और बायोजेन समेत दुनिया की कई बड़ी दवा कंपनियां पार्किंसंस के ऐसे इलाज खोजने की कोशिश में जुटी हैं. यह अल्जाइमर्स के बाद दुनिया की दूसरे सबसे आम न्यूरोजेनरेटिव बीमारी है, जिससे एक करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हैं.
सैंडर्स की टीम ने अब तक अपने ब्लड टेस्ट का परीक्षण उन मरीजों पर किया है जिन्हें पार्किंसंस हो चुका है. अब वे ऐसे लोगों पर परीक्षण करने की तैयारी कर रहे हैं जिन्हें अब तक कोई लक्षण तो नहीं हुआ है लेकिन वे उस समूह में शामिल हैं, जिन्हें होने का खतरा ज्यादा है.
वीके/सीके (रॉयटर्स)