चीन ने एआई के मामले में दुनिया के अन्य देशों से आगे निकलने के अपने लक्ष्य को फिर से दोहराया है. विशेषज्ञों को डर है कि एआई के क्षेत्र में चीन के दिग्गज बनने से काफी कुछ बदल सकता है. आखिर इस डर की वजह क्या है?टेक्नोलॉजी से जुड़ी चीन की दिग्गज कंपनियां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) चैटबॉट के निर्माण में अपने अमेरिकी प्रतिद्वंदियों की तरह ही तेजी से आगे बढ़ रही हैं. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश सिर्फ इस साल एआई प्रोजेक्ट पर 15 अरब डॉलर खर्च करने वाला है. यह बजट पिछले दो वर्षों में करीब 50 फीसदी बढ़ गया है. माइक्रोसॉफ्ट की ओर से तैयार किए गए चैट जीपीटी जैसे बड़े लैंग्वेज मॉडल के लॉन्च होने से पहले भी कुछ तकनीकी विशेषज्ञों ने यह दावा करने से इनकार कर दिया था कि एआई की दौड़ में पश्चिमी देशों का दबदबा होगा. ये हालत तब है जबकि सबसे बेहतर एआई प्रयोगशालाएं अमेरिका और ब्रिटेन में हैं.
क्या है जेनरेटिव एआई, कैसे करेगा मदद
ताइवान के कंप्यूटर वैज्ञानिक, पूंजीपति और तकनीकी प्रबंधक काई-फू ली ने 2018 में अनुमान लगाया था कि चीन जल्द ही एआई महाशक्ति के रूप में अमेरिका से आगे निकल जाएगा. उन्होंने जोर देकर कहा था कि यह तकनीक इनोवेशन वाले पहले चरण को पार कर चुकी है. ली ने तर्क दिया कि दुनिया अब एआई का इस्तेमाल करने वाले चरण में पहुंच चुकी है, जहां चीन को बढ़त हासिल है. चीन अपने नागरिकों की जासूसी करने के लिए लंबे समय से एआई का इस्तेमाल कर रहा है और इससे उसने काफी ज्यादा डाटा इकट्ठा कर लिया है. इस डाटा की मदद से एआई प्लेटफॉर्म खुद को बेहतर बना रहे हैं. पूरी दुनिया में निगरानी के लिए स्थापित किए गए करीब 1 अरब में से आधे से अधिक कैमरे चीन में तैनात किए गए हैं. हालांकि, ली के आलोचकों का तर्क है कि एआई क्रांति अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है और पश्चिमी देशों के पास इसकी कुंजी है.
चीन से अमेरिका परेशान
वाशिंगटन विश्वविद्यालय के पॉल जी एलन स्कूल ऑफ कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर पेड्रो डोमिंगोस ने डीडब्ल्यू को बताया, "एआई के क्षेत्र में बड़ी खोज अब तक नहीं हुई है. अब भी अमेरिका का इस क्षेत्र में दबदबा है.” डोमिंगोस ने बड़े डाटा से ‘पर्याप्त नतीजे नहीं मिलने' पर बात की. इसमें कहा गया कि अपनी 1.4 अरब की आबादी की जासूसी करने से चीन को अमेरिका की तुलना में ज्यादा लाभ नहीं होगा. उन्होंने कहा, "अलग-अलग तरीके का डाटा होना भी काफी मायने रखता है. मैं चीन की तुलना में यूरोप से डाटा लेना पसंद करूंगा, क्योंकि यह काफी विविधता वाला है. इसलिए, आप इससे ज्यादा सीख सकते हैं.”
पत्रकारों का काम आसान करने एआई टूल ला रहा है गूगल
अमेरिका स्पष्ट रूप से चीन की तकनीकी महत्वाकांक्षाओं से परेशान है, क्योंकि चीनी सरकार ने अपनी आधिकारिक नीति के तहत तय किया है कि उसे 2030 तक एआई के क्षेत्र में दुनिया में सर्वोच्च स्थान हासिल करना है. चीन के साथ लगातार बिगड़ते संबंधों के कारण पिछले साल अमेरिका ने सबसे बेहतर मेमोरी चिप के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया था. अपने एआई लैंग्वेज मॉडल को बेहतर बनाने के लिए चीनी कंपनियों को इन चिप की जरूरत है.
सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी के कार्यकारी उपाध्यक्ष और अध्ययन निदेशक पॉल शार्रे ने डीडब्ल्यू को बताया, "सबसे अत्याधुनिक एआई सिस्टम के लिए भारी मात्रा में हार्डवेयर यानी हजारों की संख्या में खास चिप की जरूरत होती है.” उन्होंने आगे कहा, "अगर चीन को ये चिप नहीं मिलते हैं, तो वह सबसे बेहतर सिस्टम नहीं बना पाएगा. समय के साथ यह अंतर बढ़ने की संभावना है, क्योंकि चिप से जुड़ी टेक्नोलॉजी भी लगातार बेहतर हो रही है.” इस हालात में चीनी कंपनियां कोई और तरीका ढूंढ सकती हैं. इससे घरेलू सेमीकंडक्टर बाजार में निवेश बढ़ने की संभावना है, क्योंकि स्थानीय उत्पादक अपने चिप को बेहतर बनाने की होड़ में हैं.
चीन को मिला ओपन सोर्स का फायदा
अमेरिका एक और सुराख को बंद कर सकता है. वह यह है कि अमेरिकी मशीन लर्निंग प्लैटफॉर्म ओपन सोर्स है. इसे आसानी से कॉपी करके इसमें बदलाव किया जा सकता है. ‘फोर बैटलग्राउंड्स: पावर इन द एज ऑफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस' पुस्तक के लेखक शार्रे ने चेतावनी दी, "अगर आपकी पहुंच प्रशिक्षित एआई मॉडल तक है, तो आपको बेहतर चिप की जरूरत नहीं है. इसलिए, यह एक वास्तविक जोखिम है जिससे निर्यात पर लगा प्रतिबंध बेअसर हो जाएगा.”
दरअसल, ई-कॉमर्स की दिग्गज कंपनी अलीबाबा और सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म बायडू जैसी कंपनियों ने चैट जीपीटी के अपने चीनी वर्जन अप्रैल में लॉन्च किए. इससे कुछ महीने पहले ही अमेरिकी कंपनी ने चैट जीपीटी को लॉन्च किया था.
चीन के सामने कई चुनौतियां
एआई के क्षेत्र में बढ़त बनाने से पहले चीन को कई अन्य बाधाओं को पार करना होगा. पिछले दो वर्षों से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग तकनीकी क्षेत्र को लेकर सख्ती बरते हुए हैं. इससे चीनी अधिकारी ज्यादा जोखिम उठाने से परहेज कर रहे हैं. येल लॉ स्कूल के पॉल त्साई चाइना सेंटर में फेलो कर्मन लुसेरो ने डीडब्ल्यू को बताया, "देश के तकनीकी क्षेत्र के लिए लगातार नए नियम लागू किए गए हैं. अक्सर ये नियम काफी ज्यादा अस्पष्ट रहे हैं. इससे उद्योग पर गहरा असर पड़ा है.”
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर इतना खर्च क्यों कर रहे हैं खाड़ी के देश
लुसेरो ने बताया कि सेंसरशिप के प्रति चीनी सरकार की सनक उनके लिए दुखदायी साबित हो सकती है, क्योंकि बड़ी मात्रा में डाटा गायब होने या कई विषयों का इस्तेमाल नहीं करने के लिए प्रोग्राम किए जाने पर, एआई मॉडल सीखने की अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे. उन्होंने यह भी कहा, "चीन में सेंसर किए जाने वाले कॉन्टेंट को लेकर हमेशा नियम बदलते रहते हैं. आज जिस कॉन्टेंट के इस्तेमाल की अनुमति है कल उस पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है. ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे यह पता लगाया जा सके कि कल क्या होगा.”
जरूरी है प्रतिभा का पलायन रोकना
चीन अपने लक्ष्य को हासिल कर सके, इसके लिए पर्याप्त संख्या में कुशल श्रमिकों की भी कमी है. एआई के क्षेत्र में कुशल लोगों की टीम बनाने के प्रयास के बावजूद, तकनीकी क्षेत्र में शीर्ष स्तर के कर्मचारियों को अपनी टीम में बनाए रखना एक चुनौती है, क्योंकि वैश्विक स्तर पर उनकी मांग है. शोर्रे ने कहा, "प्रतिभा का पलायन चीन के लिए एक बड़ी समस्या है. चीन के बेहतर एआई वैज्ञानिक दूसरे देश चले जाते हैं. ऐसा नहीं है कि वे अध्ययन करने या काम करने के लिए विदेश जाते हैं, बल्कि वे लोकतांत्रिक तरीके से जिंदगी जीना चाहते हैं जो चीन में शायद ही संभव है.”
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को लेकर सख्त कानूनों की तलाश में दुनिया
इन तमाम समस्याओं के बावजूद, उनका मानना है कि चीन के एआई लैब पश्चिम के बेहतर लैब से महज 18 महीने पीछे हैं. जब समाज में एआई के इस्तेमाल की बात आती है, तो चीन इसमें पहले से ही बढ़त बनाए हुए है.
बेधड़क एआई का इस्तेमाल कर रहा चीन
डोमिंगोस कहते हैं कि पश्चिम में कुछ लोग अब भी सवाल उठाते हैं कि क्या सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं को देखते हुए एआई के इस्तेमाल पर रोक लगा देनी चाहिए. वहीं, चीन इस तकनीक का फायदा उठाने के लिए पूरी ताकत लगा रहा है. चीन के लिए यह तकनीक ‘निरंकुश शासन के लिए ड्रीम टूल' जैसा है.
उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा, "लोकतांत्रिक दुनिया में हमारे लिए यह जरूरी है कि अमेरिका आगे बढ़े. अगर चीन आगे बढ़ जाता है, तो हमें राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य रूप से काफी परेशानी होगी.” डोमिंगोस ने तर्क दिया कि जिस तरह से पिछली शताब्दी में अमेरिकी संस्कृति और प्रौद्योगिकी वैश्विक स्तर पर फैली, उसी तरह एआई पर चीन का प्रभुत्व बाकी दुनिया को उसके जैसा बना देगा.