ढोल बजाना सीख कर ऑटिज्म से लड़ सकते हैं बच्चे

ड्रमर क्लेम बुर्के का कहना है कि ब्रिटेन के स्कूलों के कोर्स में ड्रम बजाना शामिल किया जाना चाहिए.

प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

ड्रमर क्लेम बुर्के का कहना है कि ब्रिटेन के स्कूलों के कोर्स में ड्रम बजाना शामिल किया जाना चाहिए. यह ऑटिज्म से जूझ रहे बच्चों के लिए बड़ा मददगार साबित हो सकता है. एक रिसर्च से इस बात के बड़े संकेत मिले हैं.क्लेम बुर्के के ड्रमिंग प्रोजेक्ट के लिए किये गये इस रिसर्च से पता चला है कि हफ्ते में 90 मिनट तक ड्रम बजाना बच्चों को बहुत फायदा पहुंचा सकता है. प्रयोग के दौरान देखा गया कि ड्रम बजाना सीखने वाले बच्चों का अपनी भावनाओं पर बेहतर नियंत्रण था. इसके साथ ही उनमें उच्च सक्रियता, ध्यान खोने और बार बार दोहराने की प्रवृत्ति के बहुत कम संकेत दिखाई दिये.

ऑटिज्म से प्रभावित लोगों की निगाह से भी देखिये

बुर्के का कहना है, "अपने तरह के इस पहले और विलक्षण अध्ययन ने यह दिखाया है कि ड्रम बजाने से दिमाग कैसे सकारात्मक रूप से काम करता है और कैसे यह ऑटिज्म या दूसरी सामाजिक या भावनात्मक मुश्किलों से जूझ रहे बच्चों को मदद दे सकता है."

ड्रम से जगी उम्मीदें

बुर्के का यह भी कहना है कि स्कूलों पर आजकल बहुत दबाव है क्योंकि सामाजिक और भावनात्मक मुश्किलों के साथ ही सीखने में दिक्कत झेलने वाले बच्चों की संख्या काफी ज्यादा बढ़ गई है. उनके मुताबिक, "ड्रम बजाने का संक्षिप्त सत्र पाठ्यक्रम में जोड़ कर कम खर्च और कोशिशों में बड़ा फर्क लाया जा सकता है."

अब लग सकेगा 1-2 साल के बच्चों में ऑटिज्म का पता

ब्रिटेन के स्कूलों में 166,000 बच्चे ऑटिज्म से पीड़ित हैं. 2020 की तुलना में यह संख्या करीब 8 फीसदी ज्यादा है. हालांकि पीड़ित बच्चों में 70 फीसदी से ज्यादा मुख्यधारा की स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन दो तिहाई मां बाप को लगता है कि उनके बच्चों की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं.

ड्रमिंग और दिमाग

रिसर्च के एक हिस्से के रूप में 16-20 साल की उम्र के किशोरों को दो महीने तक हर हफ्ते 45 मिनट ड्रम बजाने को दिया गया. इन्होंने पहले कभी ड्रम नहीं बजाया था. इन किशोरों का पहले और बाद में एमआरआई स्कैन किया गया. प्रयोग के नतीजे दिखाते हैं कि जिन बच्चों ने ड्रम बजाना बेहतर कर लिया उनकी स्थिति में काफी सुधार हुआ. एमआरआई के नतीजों में उनके दिमाग के काम में सुधार साफ दिखाई पड़ी जो उनके पूरे व्यवहार में महसूस की जा सकती थी.

इसके बाद पूरे ब्रिटेन के स्कूलों में कुछ और प्रयोग किये जा रहे हैं ताकि शुरुआती आंकड़ों की पुष्टि की जा सके.

एनआर/एसबी (एएफपी)

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