Vijaya Dashami 2025: दशहरा के दिन हथियारों की पूजा क्यों की जाती है? जानें दशहरा-पूजा, रावण-दहन के मुहूर्त, पूजा-विधि इत्यादि के बारे में!
दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है. यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. यह भगवान राम के दस सिर वाले राक्षस रावण के साथ युद्ध और देवी दुर्गा की महाबलशाली एवं मायावी राक्षस महिषासुर पर विजय का उत्सव भी है.
दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, सनातन धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है. यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. यह भगवान राम के दस सिर वाले राक्षस रावण के साथ युद्ध और देवी दुर्गा की महाबलशाली एवं मायावी राक्षस महिषासुर पर विजय का उत्सव भी है. आइये जानते हैं दशहरा पर्व की मूल-तिथि, रावण-दहन मुहूर्त एवं पूजा विधि आदि के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां... यह भी पढ़ें : Maha Panchami 2025 Messages: शुभ महा पंचमी! दोस्तों-रिश्तेदारों संग शेयर करें हिंदी WhatsApp Wishes, Quotes और Facebook Greetings
दशहरा 2025 शुभ मुहूर्त:
मुख्य दशहरा पूजा (विजयादशमी): 02.09 PM से 02.56 PM तक (02 अक्टूबर, 2025)
रावण दहन (रावण के पुतले का दहन): प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के पश्चात (02 अक्टूबर 2025)
इन समयों का महत्व:
विजय मुहूर्त: हिंदू पंचांग के अनुसार दोपहर के समय को विजय मुहूर्त भी कहा जाता है. दशहरा अनुष्ठान के लिए सबसे शुभ समय माना जाता है.
क्यों मनाया जाता है दशहरा
दशहरा यानी विजयादशमी का पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इसी दिन भगवान श्रीराम ने दुष्ट राक्षस राजा रावण को हराया था. यह देवी दुर्गा द्वारा राक्षस महिषासुर पर विजय का भी स्मरण करता है. यह दिन नये उद्यम शुरू करने या शिक्षा संबंधी गतिविधियां शुरू करने के लिए एक शुभ दिन माना जाता है.
दशहरा पर हथियारों की पूजा क्यों करते हैं
दशहरा अथवा विजयदशमी पर हथियारों की पूजा करना विजयदशमी से जुड़ी एक प्राचीन परंपरा है, जिसका उद्देश्य शक्ति और साहस का प्रतीक माने जाने वाले हथियारों का सम्मान करना है. यह पूजा राजाओं और योद्धाओं द्वारा युद्ध पर जाने से पहले की जाती थी, ताकि उन्हें विजय प्राप्त हो, और यह शक्ति का सही व न्यायसंगत उपयोग करने का भी संदेश देती है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रभु श्री राम ने लंकापति रावण का वध करने से पूर्व अपने शस्त्रों की पूजा की थी, जिसके बाद ही उन्हें विजयश्री प्राप्त हुई थी. एक अन्य कथा के अनुसार माँ दुर्गा ने जब महापराक्रमी महिषासुर का वध किया था, तब देवताओं ने मां दुर्गा द्वारा युद्ध में लड़े गये हथियारों की पूजा की थी. यह पूजा न केवल शक्ति का प्रतीक है, बल्कि राष्ट्र की रक्षा और न्याय व धर्म की स्थापना के प्रति समर्पण को भी दर्शाता है.
दशहरा पूजा विधि
भारत में भिन्न-भिन्न स्थानों पर विभिन्न रीति-रिवाज के साथ दशहरा के अनुष्ठान किए जाते हैं. हालांकि इस उत्सव का मुख्य उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की विजय है. आमतौर पर दशहरा की जो पूजा होती है, उसके अनुसार पूजा स्थल को अच्छी तरह साफ करें. पूजा स्थल पर एक चौकी रखकर उस पर पीला वस्त्र बिछाएं. इस चौकी पर देवी दुर्गा एवं भगवान श्रीराम की प्रतिमा स्थापित करें. भगवान को ताजा पुष्प, दूध की मिठाइयां एवं ताजे फल चढ़ाएं. बहुत से लोग इस दिन अपने हथियारों की भी पूजा करते हैं, जबकि कुछ लोग इस दिन अपने औजारों एवं वाहनों की भी पूजा करते है. इसके साथ ही भगवान श्रीराम एवं देवी दुर्गा की प्रार्थना करते हैं. इसके बाद सुरक्षा, साहस और सफलता की कामना के लिए सच्चे मन से प्रार्थना करें. पूजा के अंत में पहले देवी दुर्गा की फिर भगवान श्रीराम की आरती उतारें.