Vat Savitri Vrat 2024: कब है साल का दूसरा वट सावित्री व्रत? जानें इसका महात्म्य, तिथि, पूजा-विधि एवं पौराणिक कथा

स्कन्द एवं भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है. विद्वान ऐसा भी मानते हैं कि भारत में अमानता व पूर्णिमानता ये दो मुख्य कैलेंडर प्रचलित हैं.

वट सावित्री 2024 (Photo Credits: File Image)

स्कन्द एवं भविष्य पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को किया जाता है, लेकिन निर्णयामृतादि के अनुसार यह व्रत ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या को करने का विधान है. विद्वान ऐसा भी मानते हैं कि भारत में अमानता व पूर्णिमानता ये दो मुख्य कैलेंडर प्रचलित हैं. यद्यपि मात्र तिथि का फर्क है. पूर्णिमानता कैलेंडर के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है, जिसे वट सावित्री अमावस्या कहते हैं जबकि अमानता कैलेंडर के अनुसार वट सावित्री ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को मनाते हैं, जिसे वट पूर्णिमा व्रत भी कहा जाता है. बता दें कि वट सावित्री अमावस्या व्रत उप्र, बिहार, मप्र, पंजाब और हरियाणा में ज्यादा प्रचलित है, वहीं वट पूर्णिमा व्रत महाराष्ट्र, गुजरात सहित दक्षिण भारत के क्षेत्रों में प्रचलित है. दोनों ही व्रतों में सुहागन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु के लिए वट वृक्ष के चारों ओर सूत बांध कर करती हैं. दोनों ही व्रत में एक ही कथा सुनने का विधान है. आइये जानते हैं वट पूर्णिमा के व्रत की मूल तिथि, मुहूर्त, पूजा-विधि एवं व्रत की पौराणिक कथा.

वट सावित्री व्रत का महात्म्य

वट सावित्री व्रत सुहागनों का अत्यंत महत्वपूर्ण आध्यात्मिक पर्व है. इस दिन सुहागन महिलाएं अपने पतियों की सलामती और स्वास्थ्य के लिए वट-वृक्ष की पूजा करती हैं. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार वटवृक्ष एकमात्र ऐसा वृक्ष है, जिसमें त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु महेश) निवास करते हैं, इसलिए वट वृक्ष की पूजा करने से पति की अकाल मृत्यु की संभावना नहीं रहती है. ऐसा भी कहा जाता है कि सत्यवान की मृत्यु होने पर सावित्री ने उनका शव वट वृक्ष के नीचे रखकर यमदेव के पीछे गई थीं. यह भी पढ़ें : Shivrajyabhishek Diwas 2024 Wishes in Marathi: शिवराज्याभिषेक दिवस की इन शानदार मराठी Quotes, WhatsApp Messages, Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं

वट पूर्णिमा व्रत (2024) की मूल तिथि एवं मुहूर्त

ज्येष्ठ मास पूर्णिमा प्रारंभः 07.32 AM (21 जून 2024, शुक्रवार) से

ज्येष्ठ मास पूर्णिमा प्रारंभः 06.38 AM (22 जून 2024, शनिवार) तक

पूर्णिमा पर चंद्र पूजा का विधान होने के कारण 21 जून 2024 को ही वट सावित्री व्रत रखा जाएगा.

वट सावित्री व्रत: पूजा विधि

ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि से निवृत्त हों. भारतीय परंपरा के अनुसार सुहागन वाले परिधान पहनें, जो अमूमन लाल रंग के हों. आभूषण धारण कर श्रृंगार करें. एक थाली में कलश, कच्चा सूत, हल्दी, कुमकुम, पुष्प, जल, मालपुआ, सूजी का हलवा तैयार कर निकटतम वटवृक्ष के नीचे पहुंचें. वट वृक्ष की जड़ के हिस्से की सफाई करें. शुद्ध देसी घी की दीपक एवं धूप प्रज्वलित करें. जल भरे कलश को वटवृक्ष की जड़ के समीप रखें. कलश के समीप जमीन पर पुष्प, हल्दी, अक्षत, कुमकुम चढ़ाएं. अब भोग में लाई वस्तुएं मालपूआ और हलवा चढ़ाएं. सफेद सूत को वटवृक्ष के चारों ओर सात बार परिक्रमा करते हुए सूत लपेटें. इस परंपरा के तहत हम साझा मान्यताओं और प्रथाओं के माध्यम से परिवारों और समुदायों को एक सूत्र में बांधते हैं. अब की सलामती के लिए त्रिदेव (शिव, भगवान विष्णु एवं ब्रह्मा) से प्रार्थना करें. घर लौटकर सास-ससुर और बड़ों के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त करें.

वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, सावित्री ने सत्यवान से विवाह किया. विवाह के पश्चात उसे पता चला कि शादी के कुछ ही दिनों बाद उसकी मृत्यु हो जाएगी. एक दिन जंगल में पेड़ काटते समय सत्यवान की मृत्यु हो गई. नियमानुसार यमदेव उसकी आत्मा को लेने आए. सावित्री अपने पति के जीवन की याचना करते हुए यम के पीछे-पीछे चल पड़ी. सावित्री के लौटने की उम्मीद से यम ने उसे तीन वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने अपने नेत्रहीन ससुर की आँखों की रोशनी, ससुर का खोया हुआ राज्य और 100 पुत्रों की माँ बनने का वरदान मांगा, यमराज ने तथास्तु कहकर आगे बढ़े. लेकिन उन्होंने देखा, कि सावित्री फिर भी उनके पीछे आ रही है. यमराज क्रोधित हो उठे, कहा, तीन वरदान पाकर भी वापस नहीं जाओगी तो तुम्हें श्राप दे दूंगा. सावित्री ने करबद्ध होकर कहा, क्षमा करिये, यमदेव, लेकिन आप मेरे पति के जीवन को अपने साथ ले जा रहे हैं, तो आपका सौ बच्चों की माँ बनने के वरदान का क्या होगा. यमदेव सावित्री की वॉकपटुता से प्रसन्न होकर उसके पति को पुनर्जीवित कर दिया.

Share Now

\