Vastu Tips: आपकी पूजा फलीभूत हो, इसके लिए मंदिर अथवा मूर्ति की स्थापना वास्तु के अनुरूप ही करें! जानें वास्तु के 8 महत्वपूर्ण टिप्स!
किसी भी हिंदू घर में पूजाघर यानी मंदिर का विशेष महत्व होता है. इसलिए आप जब घर खरीदते या बनवाते हैं, तो आपको इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि आपका मंदिर वास्तु के अनुरूप है या नहीं, क्योंकि मंदिर एक ऐसा पक्ष है, जो आपके घर की सारी दशा-दिशा निर्धारित करता है. मंदिर की दिशा, मूर्तियों का विस्थापन आदि वास्तु के अनुरूप हो तो ज्यादा फलीभूत होते हैं.
किसी भी हिंदू घर में पूजाघर यानी मंदिर का विशेष महत्व होता है. इसलिए आप जब घर खरीदते या बनवाते हैं, तो आपको इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि आपका मंदिर वास्तु के अनुरूप है या नहीं, क्योंकि मंदिर एक ऐसा पक्ष है, जो आपके घर की सारी दशा-दिशा निर्धारित करता है. मंदिर की दिशा, मूर्तियों का विस्थापन आदि वास्तु के अनुरूप हो तो ज्यादा फलीभूत होते हैं. इसलिए घर में मंदिर की स्थापना से पूर्व कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देना बहुत जरूरी है. यहां कुछ ऐसे ही विशेष टिप्स बताये जा रहे हैं.
मंदिर की दिशा
घर में मंदिर के स्थान का निर्धारण करने से पूर्व सबसे पहले देखें कि क्या यह ईशान कोण में है, क्योंकि वास्तु के अनुसार मंदिर की सर्वोत्तम दिशा ईशान कोण माना जाता है. ईशान कोण यानी उत्तर पूर्व की दिशा. उसकी मुख्य वजह यह है कि यह दिशा अधिकतम सौर ऊर्जा को ग्रहण करने में मदद करती है, और आपकी पूजा-अर्चना भी फलीभूत होती है. इसके विपरीत दिशा में मंदिर रखना अशुभता का प्रतीक भी साबित हो सकता है. यह भी पढ़ें : Dr. Babasaheb Ambedkar Jayanti 2023: डॉ. भीमराव अम्बेडकर को ‘दलित’ से ‘देवता’ बनाने वाले उनके जीवन के 5 महत्वपूर्ण सूत्र!
विशेषः किसी भी परिस्थिति में मंदिर को दक्षिण दिशा में रखने से बचें.
घर में मंदिर के लिए भूतल सर्वश्रेष्ठ होता है
यदि आपके घर दो-तीन माले का है या डुप्लेक्स घर है, तो वास्तु के नियमों के तहत भूतल पर ही पूजा घर का चुनाव करें. मंदिर के लिए यह सबसे आदर्श जगह है, क्योंकि यह घर के प्रवेश द्वार पर आकर्षण उत्पन्न करता है. एक दिलचस्प जगह आपके घर का फ़ोयर क्षेत्र भी हो सकता है. पुराने समय में मंदिर की स्थापना ऐसे ही की जाती थी, जब मंदिर को आंगन या घर के सामने वाले बरामदे में रखा जाता था.
विशेषः मंदिर के सामने शू रैक नहीं होना चाहिए.
मंदिर में मूर्तियों की दिशा कैसी हो?
मंदिर के बाद सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों की दिशा क्या होनी चाहिए. सबसे पहले कोशिश करें कि किसी भी देवी-देवता को स्थापित करते समय एक दूसरे के सामने नहीं रखना चाहिए. मंदिर की तरह मूर्तियों को भी ईशान कोण में रखना जरूरी है. मूर्तियां या तस्वीरों के बीच एक औसत गैप होना चाहिए. तथा मूर्तियों को दीवारों से थोड़ा हटा कर रखना चाहिए.
विशेषः आप चाहें तो मूर्तियों का मुख पश्चिम दिशा की ओर भी कर सकते हैं, यहां भी दक्षिण दिशा से बचने की कोशिश करनी चाहिए.
पूजा घर के दरवाजे और खिड़कियां उत्तर-पूर्व दिशा में खुलनी चाहिए
पूजा घर स्थापित करते समय उनके दरवाजे और खिड़कियां उत्तर या पूर्व दिशा की ओर खुलनी चाहिए. पूजा स्थल बहुत कंजस्टेड नहीं होना चाहिए. वास्तु के अनुसार एक पूजा घर में दो शटर अथवा दो पर्दे होने ही चाहिए, इसके साथ-साथ पूजा घर में वायु का आगमन होते रहना चाहिए.
विशेषः मंदिर को तहखाने में भूलकर भी न रखें, यह अशुभ माना जाता है.
मंदिर को धार्मिक पुस्तकों या अन्य शुभ वस्तुओं से सजा सकते हैं.
मंदिर में निजी वस्तुओं को रखने से बचना चाहिए. अलबत्ता पूजा स्थल के पास पर्याप्त जगह और अलमारियां हैं, तो आप भंडारण में धार्मिक किताबें, रुद्राक्ष माला, थालियां और पूजा से संबंधित अन्य सामान रख सकते हैं. इस स्थान पर पैसे या अधार्मिक पुस्तकें नहीं रखें, क्योंकि इससे जगह के सकारात्मक प्रभाव में बाधा आती है.
सुझाव: मंदिर के भीतर या ऊपर मृत लोगों की तस्वीर नहीं लगानी चाहिए.