Valentine's Day 2019 Special: राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी है अलौकिक और निश्छल, जो प्यार करनेवालों के लिए है एक बड़ी मिसाल

राधा-कृष्ण का प्रेम सबसे अलग, अनूठा और अलौकिक कहा जा सकता है. कला की हर विधाओं में इनके प्रेमरस की अभिव्यक्ति मिलती है. कुछ पौराणिक कथाओं में तो राधा-कृष्ण के प्रेम को जीवात्मा और परमात्मा का मिलन तक बताया गया है.

राधा-कृष्ण (Photo Credits: Facebook)

भारतीय संस्कृति में ‘प्रेम’ (Love) किसी दिवस विशेष का मोहताज नहीं है. भारतीय प्रेम कथाओं (Love Stories) में प्रेम महज एक शब्द नहीं, भावना है, अहसास है, त्याग है. यह कभी भी कहीं भी किसी से भी हो सकता है. यह जब दिल में उतरता है तो सारे सुख-दुःख, लाभ-हानि, मान-अपमान और अपना-पराया का भेदभाव खत्म कर देता है. आज वैलेनटाइन डेज (Valentine's Day) के व्यावसायिक दौर में राधा-कृष्ण (Radha-Krishna)  के निश्छल प्रेम का मूल्यांकन करना संभव नहीं है. यह एक ऐसी प्रेम कथा है जिसकी परिणिति आज भी रहस्य के पर्दे में छिपी हुई है. आज भी लोग जानने के लिए उत्सुक हैं कि राधा-कृष्ण का प्रेम क्या था? क्या वाकई उन्होंने शादी नहीं की? आज के परिप्रेक्ष्य में राधा-कृष्ण के प्रेम के क्या मायने हो सकते हैं?

अलौकिक और अनूठा था राधा-कृष्ण का प्रेम

जब भी सच्ची प्रेम कहानियों की चर्चा होती है तो पौराणिक कथाओं के राधा-कृष्ण, शकुंतला-दुष्यंत, सावित्री-सत्यवान और इतिहास के पन्नों में दर्ज हीर-रांझा, सोहन-महिवाल, लैला-मंजनू, सलीम-अनारकली, शीरी-फरहाद की कहानियां किसी चलचित्र की तरह आंखों के सामने तैर जाती हैं. इन सभी के प्यार निस्वार्थ, निश्छल और सच्चे थे, लेकिन राधा-कृष्ण का प्रेम सबसे अलग, अनूठा और अलौकिक कहा जा सकता है. कला की हर विधाओं में इनके प्रेमरस की अभिव्यक्ति मिलती है. कुछ पौराणिक कथाओं में तो राधा-कृष्ण के प्रेम को जीवात्मा और परमात्मा का मिलन तक बताया गया है. मगर इनकी प्रेम कथा सुनने के बाद एक सवाल शिद्दत से कौंधता है कि इतना गहरा प्यार होने के बावजूद वह अपने प्रेम को परिणय में परिवर्तित क्यों नहीं कर सके? क्यों वे वैवाहिक परंपराओं से खिंचे-खिंचे रहे?

प्रेम का सहज प्रदर्शन और विरोध

कृष्ण अपनी लीलाओं के लिए काफी लोकप्रिय रहे हैं, लेकिन राधा-कृष्ण प्रेम कथा में उन्होंने कहीं भी लीला नहीं रची. उनका प्रेम प्रदर्शन सहज और स्वाभाविक था, जिसे समर्थन के साथ विरोध का भी सामना करना पड़ा. कहा जाता है कि राधा-कृष्ण की प्रेमकहानी की चर्चा पहली बार जब राधा के परिवार तक पहुंची तो उन्होंने राधा के घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन कृष्ण-दीवानी राधा कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनते ही सारे बंधन तोड़कर कृष्ण के पास पहुंच जाती थी.

इसके बाद उन्हें खटिया से बांधकर रोकने की कोशिश की गयी. कृष्ण ने राधा की पीड़ा का अहसास कर बलराम की मदद से राधा को खाट से मुक्त तो कराया, मगर राधा की तकलीफ देखकर उन्होंने माता यशोदा से कहा कि वे राधा से विवाह करना चाहते हैं. यशोदा ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि राधा तुमसे पांच साल बड़ी है, और उसका विवाह तो किसी और से होने वाला है, इसलिए राधा से विवाह की जिद मत करो. कृष्ण के नहीं मानने पर यशोदा ने नंदबाबा से बात की. यह भी पढ़ें: Happy Kiss Day 2019 Wishes: किस डे पर प्यार में साथ निभाने का वादा जरूर करें, इन मैसेजेस को WhatsApp Stickers, SMS, Facebook Greetings के जरिए करें विश

इसलिए कृष्ण ने राधा से विवाह करने से मना किया

नंद कृष्ण को लेकर गर्गाचार्य और महर्षि संदीपनी के आश्रम पहुंचे. महर्षि संदीपनी ने कृष्ण को समझाया कि तुम पृथ्वी पर धर्म की रक्षा के लिए अवतरित हुए हो. तुम्हें सारे मोहमाया को छोड़कर अपना लक्ष्य हासिल करना है. मगर इसके बाद भी जब कृष्ण राधा से विवाह की जिद करते रहे तब गर्गाचार्य को लगा कि अब कृष्ण को उनके जन्म की सच्चाई बता देना चाहिए. उन्होंने कृष्ण से कहा, हे कृष्ण तुम मुक्तिदाता हो, धर्म की स्थापना करना तुम्हारा उद्देश्य होना चाहिए. तब कृष्ण को अपने जीवन का रहस्य समझ में आ गया. उन्होंने राधा से विवाह करने से इंकार कर दिया.

ब्रह्मा ने कराया था राधा-कृष्ण का विवाह

गर्ग संहिता में राधा-कृष्ण के विवाह का उल्लेख मिलता है. उसी के अनुसार एक दिन कृष्ण नंद बाबा की गोद में खेल रहे थे कि तभी तेज तूफान के साथ चारों ओर घनघोर अंधेरा छा गया. अचानक नंद बाबा को किसी पारलौकिक शक्ति का अहसास हुआ. वस्तुतः वह पारलौकिक शक्ति और कोई नहीं स्वयं राधारानी थीं. राधा के प्रकट होते ही कृष्ण ने भी किशोर रूप धारण कर लिया. इसी समय ब्रह्मा जी ने योगमाया से रचित ललिता और विशाखा की उपस्थिति में राधा-कृष्ण का विवाह करवा दिया. विवाह होने के बाद सब कुछ पूर्ववत हो गया. राधारानी, ब्रह्मा, ललिता, विशाखा सभी अंतर्ध्यान हो गए. कृष्ण भी अपने बाल रूप में लौट आए. यह भी पढ़ें: भूत-प्रेत, शनि की साढ़ेसाती, असाध्य बीमारी और मंगल दोष की शांति के लिए लाभकारी है मंगल का व्रत

ऐतिहासिक तथ्य

आध्यात्म से इतर सोच रखने वाले कुछ इतिहासकारों का यह भी कहना था कि कृष्ण राधा से दस साल की उम्र में मिले थे, तभी दोनों में पहली बार प्यार के अंकुर फूटे थे. लेकिन उसके बाद कृष्ण वृंदावन वापस आये ही नहीं. उनका कहना है कि किसी भी धार्मिक ग्रंथ में उनके वापस लौटने का जिक्र नहीं है. उनकी शादी नहीं होने का एक कारण यह भी हो सकता है.

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