श्रीहरि के योग-निद्रा से बाहर आने के साथ ही हिंदू घरों में तुलसी-विवाह की परंपरा शुरु हो जाती है, क्योंकि इसके बाद ही हिंदू घरों में शहनाइयां बजनी शुरू हो सकती हैं. आइये जाने तुलसी विवाह की परंपरा, पद्धति और क्या मिलते हैं पुण्य-फल…
कैसे होती है तुलसी विवाह!
माँ तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह एक पवित्र अनुष्ठान है. यह अनुष्ठान वस्तुतः बेटी के विवाह सरीखा मनाया जाता है. घर एवं मंडप को विवाह की तरह सजाया जाता है, तथा तुलसी जी को लाल चुनरी एवं 16 श्रंगार का सामान चढ़ाया जाता है। अग्नि को साक्षी मानकर शालिग्राम एवं तुलसी को हाथ में पकड़ कर फेरे दिलाए जाते हैं. विवाह के उपरांत पड़ोसियों के लिए प्रीतिभोज का आयोजन भी किया जाता है. महिलाएं मंगल गीत गाती हैं, विशेष रूप से मंगलास्टक मंत्रों के साथ इस विवाह को संपन्न किया जाता है.
तुलसी विवाह कराने पर मिलता है ये लाभ!
भगवद् पुराण में उल्लेखित है कि माता तुलसी वास्तव में देवी लक्ष्मी का अवतार हैं, जो वृंदा के रूप में पैदा हुई थीं, मान्यता है कि तुलसी और शालिग्राम का विवाह कराने वाले जातक के जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं, और यह विवाह करानेवाले को कन्यादान जितना पुण्य प्राप्त होता है है और भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद भी प्राप्त होता है. यदि जीवन में अमंगल या अप्रिय घटनाएं बार-बार हो रही हों तो इनसे मुक्ति के लिए देव उठनी एकादशी के दिन गोधूली बेला में भगवान शालिग्राम व तुलसी के विवाह में 8 मंगलाष्टक मंत्रों का पाठ जरूर करना चाहिए. इससे मनुष्य के जीवन में अन्न वृद्धि, बल वृद्धि, धन वृद्धि, सुख वृद्धि, प्रजा पालन, ऋतु व्यवहार एवं मित्रता में वृद्धि होने के साथ जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं. यह भी पढ़ें : Tulsi Vivah 2021 Messages: तुलसी विवाह के इन हिंदी Quotes, WhatsApp Wishes, Facebook Greetings, GIF Images को भेजकर दें अपनों को शुभकामनाएं
ध्यान से उच्चारित करें मंगलास्टक मंत्र!
* ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः। चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः। प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः, स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
* गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्द गोवधर्नौ, गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी, गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
* नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं, तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम्। गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्, संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
* बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः, जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः। मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः, पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
* गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः, सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती। स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी, वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
* गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका। शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी, पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
* लक्ष्मीः कौस्तुभ पारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः। अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥
* ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः, शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः। विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा, इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम्॥