ब्रज में श्री कृष्ण ने उगाए थे मोती के पेड़, बरसाना और नंदगांव के बीच है मोती कुंड, आज भी मौजूद हैं ये पेड़
ब्रज के कण-कण में श्री कृष्ण बसे हुए हैं, मथुरा, वृन्दावन, व्रज, नंदगांव में आज भी कृष्ण की निशानियां बरकरार हैं, वहां मौजूद कुंड, जगह, मंदिर, आदि वहां जानेवाले यात्रियों कृष्ण की याद दिलाता है. जो भी ब्रज में जाता है वो कृष्ण में रम जाता है. ब्रज की गली-गली राधा कृष्ण की प्रेम लीला को बयान करती है.
ब्रज के कण-कण में श्री कृष्ण बसे हुए हैं, मथुरा, वृन्दावन, व्रज, नंदगांव में आज भी कृष्ण की निशानियां बरकरार हैं, वहां मौजूद कुंड, जगह, मंदिर, आदि वहां जानेवाले यात्रियों कृष्ण की याद दिलाता है. जो भी ब्रज में जाता है वो कृष्ण में रम जाता है. ब्रज की गली-गली राधा कृष्ण की प्रेम लीला को बयान करती है. श्री कृष्ण ने ब्रज में एक मोती वाला पेड़ लगाया था. इस पेड़ पर फल नहीं बल्कि मोतियां लगती हैं. कृष्ण और राधा की सगाई की कहानी ये मोती वाला पेड़ बयां करता है. भारी बरसात से गांववालों को बचाने के लिए जब कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था, उसके बाद राधा के पिता ने राधा की कृष्ण से सगाई कराई थी, सगाई के दौरान राधा के पिता वृषभानु ने नंदबाबा को उपहार में मोती दिए थे. तब नंद बाबा चिंता में पड़ गए कि इतने कीमती मोती कैसे रखें. श्रीकृष्ण चिंता समझ गए. उन्होंने मां यशोदा से लड़कर मोती ले लिए. घर से बाहर निकलकर कुंड के पास जमीन में मोती बो दिए. जब यशोदा ने कृष्ण ने पूछा कि मोती कहां है. तब उन्होंने इसके बारे में बताया. नंद बाबा भगवान कृष्ण के कार्य से नाराज हुए और लोगों को मोती जमीन से निकालकर लाने को भेजा. जब लोग यहां पहुंचे तो देखा कि यहां पेड़ उग आए हैं और पेड़ों पर मोती लटके हुए हैं. तब बैलगाड़ी भरकर मोती घर भेजे गए. तभी से कुंड का नाम मोती कुंड पड़ गया.
84 कोस की गोवर्धन यात्रा के दौरान लोग यहां लगे पीलू डोगर के पेड़ से मोती बटोरने आते हैं. कहा जाता है कि इन मोतियों को घर में रखने से सुख समृद्धि और शान्ति आती है. ब्रज में इस अनोखे पेड़ को डोगर नाम से जाना जाता है. वैसे ब्रज में कई जगह ऐसे पेड़ हैं, लेकिन मोती जैसा दिखने वाला यह अनोखा फल सिर्फ मोती कुंड के पास स्थित पेड़ पर ही आता है.
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बरसाने में रहने वाले संत-महात्मा भी ये बात कहते हैं कि श्रीकृष्ण और राधा के सांसारिक रिश्ते नहीं थे लेकिन गर्ग संहिता, गौतमी तंत्र के अंतर्गत इस बात का वर्णन है कि उन दोनों का विवाह हुआ था. इसलिए आज भी राधा कृष्ण का नाम एक साथ लिया जाता हैं. दोनों एक दूसरे के पूरक हैं. राधा के बिना कृष्ण का नाम अधूरा है.