Salat Al Khusuf (Lunar Eclipse Prayer): सलात अल कुसुफ़ क्या है? इस्लाम में चंद्र ग्रहण की नमाज़ कब एवं कैसे पढ़ें? जानें फर्क सूर्य एवं चंद्र ग्रहण में!
आज भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है. इस्लाम धर्म में ‘सलात-अल-कुसुफ़’, को सूर्य ग्रहण की नमाज़ कहा जाता है, यह विशेष लोकप्रिय नमाज़ तो नहीं, लेकिन इसे समझना बहुत महत्वपूर्ण है. सलात अल-कुसुफ़ मुसलमानों को अल्लाह (SWT) का महात्म्य और दिव्य शक्ति का स्मरण कराता है.
आज भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है. इस्लाम धर्म में ‘सलात-अल-कुसुफ़’, को सूर्य ग्रहण की नमाज़ कहा जाता है, यह विशेष लोकप्रिय नमाज़ तो नहीं, लेकिन इसे समझना बहुत महत्वपूर्ण है. सलात अल-कुसुफ़ मुसलमानों को अल्लाह (SWT) का महात्म्य और दिव्य शक्ति का स्मरण कराता है. यह आमतौर पर सामूहिक रूप से किया जाता है, यद्यपि इसे व्यक्तिगत रूप से भी किया जा सकता है.
सलात अल-कुसुफ़ की शुरुआत कैसे हुई?
जब पैगंबर मुहम्मद के जीवनकाल में सूर्य ग्रहण हुआ, तो वे प्रार्थना के लिए तुरंत मस्जिद की ओर दौड़े, उनकी यह प्रतिक्रिया उस घटना की तात्कालिकता और गंभीरता को दर्शाती थी, हालांकि इस दृश्य ने सभी को हैरान किया, और यह सोचने पर मजबूर किया कि यह साधारण प्रार्थना नहीं थी. यह पैगंबर मुहम्मद की ओर से एक सांकेतिक आदेश था कि ग्रहण होने पर प्रार्थना और इबादत के माध्यम से अल्लाह की रहम हासिल करें. यह भी पढ़ें : Chandra Grahan 2025: चंद्र ग्रहण के दौरान न करें ऐसी गलतियां, ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश नारायण मिश्रा ने दी चेतावनी
पैगंबर मुहम्मद के अनुसार क्या है ‘सलात-अल-कुसुफ़’?
पैगंबर मुहम्मद के अनुसार, ग्रहण ब्रह्मांड पर अल्लाह की शक्ति के संकेत हैं, जो उनकी रचना में विनम्रता और भय पैदा करने के लिए बनाए गए हैं. इनका किसी की मृत्यु या जन्म से कोई संबंध नहीं है. पैगंबर मुहम्मद ने रिवायत भी किया है कि सूर्य और चंद्रमा किसी की मृत्यु या जीवन का कारण ग्रहण नहीं होते, वे अल्लाह की निशानियों में से दो विशिष्ठ निशानियाँ हैं, और जब तुम उन्हें देखो तो नमाज़ जरूर अदा करो.
कैसे करते हैं ‘सलात-अल-कुसुफ़’ की नमाज?
सर्वप्रथम सामान्य नमाज की तरह वजू या ग़ुस्ल करके शरीर और कपड़ों को शुद्ध करते हैं. इस नमाज़ की शुरुआत तकबीर अतुल-इहराम कहकर करते हैं तथा सूरह अल-फातिहा और एक लंबी सूरह के साथ कुरान का पाठ पढ़ते हैं, और नमाजी ‘आमीन’ कहते हैं, और यह पूरी प्रक्रिया ग्रहण समाप्त होने तक किया जाता है.
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण में फर्क!
इस्लाम के अनुसार सूर्य ग्रहण तब होता है, जब पृथ्वी से देखने पर चंद्रमा सूर्य को ढक लेता है, यानी चंद्रमा सूर्य की किरणों को पृथ्वी तक पहुंचने से रोक देता है और सूर्य पूरी अथवा आंशिक रूप से अंधकारमय हो जाता है. पूर्ण ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी और सूर्य के बीच एक सीधी रेखा में आ जाता है, जिससे सूर्य पूरी तरह से ढक जाता है. जिससे कुछ समय के लिए रात्रि की तरह अंधेरा हो जाता है, और चंद्र ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी की छाया में प्रवेश करता है, यानी पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आ जाती है, जिससे सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुंच पाता.