Tulsi Vivah 2019: नेपाल स्थित मुक्तिनाथ धाम मंदिर! जहां तुलसी से विवाह कर शाप-मुक्त हुए शालीग्राम, जानें रोचक प्रसंग
शालीग्राम का इकलौता एवं अति प्राचीन मुक्तिनाथ धाम मंदिर नेपाल के मस्तांग जिले की थोरांग-ला पहाड़ियों के बीच स्थित है. यहां आनेवाले श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां आकर शालीग्राम जी का दर्शन एवं पूजा करने से व्यक्ति विशेष के सारे पाप धुल जाते हैं, और मोक्ष की प्राप्ति करते हैं. प्रबोधिनी एकादशी के दिन यहां काफी विशाल स्तर पर मेला लगता है.
Tulsi Vivah 2019 शालीग्राम (Shaligram) का इकलौता एवं अति प्राचीन मुक्तिनाथ धाम मंदिर नेपाल (Nepal) के मस्तांग जिले की थोरांग-ला पहाड़ियों के बीच स्थित है. यहां आनेवाले श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां आकर शालीग्राम जी का दर्शन एवं पूजा करने से व्यक्ति विशेष के सारे पाप धुल जाते हैं, और मोक्ष की प्राप्ति करते हैं. मान्यता है कि दैत्यराज जलंधर की पत्नी वृंदा के श्राप से ग्रस्त श्रीहरि को यहीं पर श्राप से मुक्ति मिली थी. कहा जाता है कि यहां गंडकी नदी के पास आज भी शालीग्राम निवास करते हैं. यहां हर एकादशी के दिन श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, लेकिन प्रबोधिनी एकादशी के दिन यहां काफी विशाल स्तर पर मेला लगता है.
पुराणों में भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के मुक्तिनाथ धाम का विशेष उल्लेख है. पगोड़ा शैली में बना यह अति प्राचीन मंदिर नेपाल के मस्तांग जिले की थोरांग-ला पहाड़ियों के बीच लगभग बारह हजार तीन सौ फीट की ऊंचाई पर है. मुक्तिनाथ परिसर के दक्षिणी कोने में मेबर लखांग गोम्पा नाम की जगह है, जिसे ज्वाला माई मंदिर कहते हैं. यहां प्राकृतिक गैस से लगातार अग्नि के ज्वाले निकलते हैं. माना जाता है कि यह वही जगह है, जहां ब्रह्माजी ने विशाल यज्ञ किया था.
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यहां अग्नि की ज्वाला के साथ जल की प्राकृतिक धारा भी बहती है. पृथ्वी के इस पवित्र स्थल पर, खुले आकाश के नीचे, स्वच्छ वायु के बीच जल और अग्नि का ऐसा संयोग मुश्किल से देखने को मिलता है. यही वजह है कि प्रकृति प्रदत्त इस पवित्र स्थल को ‘पंचतत्व’ का प्रतीक भी माना जाता है. स्थानीय शिलालेखों के अनुसार सन 1815 में नेपाल की महारानी सुवर्णप्रभा ने मुक्तिनाथ मंदिर का पुनर्निमाण करवाया था.
ब्रह्मा जी ने किया था यहां महायज्ञ
पुराणों में वर्णित है कि पृथ्वी 7 भागों और 4 क्षेत्रों में बंटी है. 4 क्षेत्रों में प्रमुख है मुक्तिक्षेत्र. इस क्षेत्र से संदर्भ में किंवदंतियां हैं कि शालग्राम पर्वत और दामोदर कुंड के बीच ब्रह्माजी ने मुक्तिक्षेत्र में एक विशाल यज्ञ किया था, जिसके प्रभाव से भगवान शिव अग्नि ज्वाला के रूप में और नारायण जल रूप में उत्पन्न हुए थे. कहा जाता है कि इसी वजह से पापों का नाश करनेवाला मुक्तिक्षेत्र बना.
नारद पुराण में वर्णित है तुलसी-शालीग्राम विवाह
नारद पुराण में स्पष्ट रूप से वर्णित है कि दैत्यराज जलंधर को वरदान प्राप्त था कि उसकी पत्नी वृंदा के पतिव्रता धर्म के कारण कोई भी देव, देवी, दैत्य अथवा मानव जलंधर का वध नहीं कर सकता था. इससे वह निरंकुश हो सब पर अत्याचार करने लगा. तब श्रीहरि ने लीला रचकर जलंधर के वेष में वृंदा के घर पति बनकर रहने लगे. वृंदा ने ज्यों ही श्रीहरि को स्पर्श किया उसका पतिव्रता धर्म नष्ट हो गया. तभी अवसर देख भगवान शिव ने जलंधर का वध कर दिया. वृंदा को जब सच्चाई पता चली तो उसने श्रीहरि को कीट होने का शाप देकर खुद पति के साथ सती हो गयी.
जहां पर वृंदा सती हुई थी बाद में वहां एक पौधा उगा. शालीग्राम रूपी श्रीहरि ने इसे तुलसी नाम दिया और उसके सतीत्व की रक्षा के लिए उससे विवाह खुद को शापमुक्त किया, इसीलिए यह स्थल मुक्तिधाम के नाम से मशहूर है. मान्यता है कि तुलसी से विवाह कर काफी समय तक शालीग्राम यहीं रहे. मंदिर के इर्द-गिर्द गंडकी नदी के किनारे शालीमार रूप में आज भी श्रीहरि यहां निवास करते हैं.
मुक्तिकुंड में श्राद्ध करने से 21 पीढ़ियों को मिलती है मुक्ति
मुक्तिधाम के पास गण्डकी नदी और दामोदर कुंड का जहां संगम होता है, उसे काकवेणी कहते हैं. मान्यता है कि यहां पर श्राद्ध एवं तर्पण करने से व्यक्ति की 21 पीढ़ियों को मुक्ति मिल जाती है. श्रीमद्भागवत पुराण में धुंधकारी की एक प्रचलित कथा मिलती है, जिसमें वर्णित है कि धुंधकारी ने यहां श्राद्ध एवं तर्पण करके अपनी 21 पीढ़ियों को मुक्ति दिलाई और स्वयं भी पाप मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हुआ.