सावन महिना स्पेशल: भगवान शिव की एक छोटी भक्त ऐसी भी, 5 साल से लेकर जा रही है कांवड़

मान्यता के अनुसार सबसे पहले भगवान परशुराम ने अपने आराध्य देव शिव के नियमित पूजन के लिए पुरा महादेव में मंदिर की स्थापना कर कांवड़ में गंगाजल से पूजन कर कांवड़ परंपरा की शुरुआत की. उसके बाद बाद मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी सदाशिव को कांवड़ चढ़ाई थी.

2018 सावन का महीना शुरू हो गया है

लखनऊ. 2018 सावन का महीना शुरू हो गया है और कांवड़ यात्रा ले लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु अलग-अलग  गांव से भगवान शिव का जलाभिषेक करने निकल पड़े हैं. वहीं जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलना पसंद करते हैं. जहां उन्हें जमकर मस्ती और टीवी के कार्टून देखना पसंद करते हैं. उसी उम्र में कोई बच्ची अपने पिता के साथ कांवड़ यात्रा पर हर साल जाए तो सुनकर हैरानी होती है. लेकिन यह सच है. महज 10 साल की गौरी पिछले 5 साल से भगवान महादेव की नगरी काशी विश्वनाथ में जाती है.

कांवड़ यात्रा में क्या बुजुर्ग क्या जवान सभी अपनी श्रद्धा को प्रकट करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते हैं. ऐसी ही एक बच्ची है गौरी पाण्डेय. जो हर साल मुंबई से अपने गांव डंगहरी ( संत रविदास नगर - भदोही ) में आती हैं और अपने पिता संदीप के साथ 5 साल से कांवड़ लेकर जाती हैं. छोटी सी गौरी भी भगवान शिव को अपना आराध्य देव मानती हैं. गौरी इस यात्रा पर अपने पिता के साथ 5 साल से जा रही हैं. इस दौरान यात्रा उन्हें तकरीबन 147 किलोमीटर नंगे पैर तय करना होता है. जिनमे उन्हें 4 दिन का समय लगता है. वहीं कांधे पर रखा जल अशुद्ध न हो इसका भी ध्यान रखना होता है.

 

इसलिए जाती है कांवड़ यात्रा पर

गौरी अपने पापा के साथ मुंबई में रहती है. जहां उसके पापा जॉब करते हैं. वैसे तो परिवार में सभी कुछ खुशहाल था. लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब गौरी के पिता संदीप काफी बीमार पड़ गए. इस दौरान परिवार की माली हालत भी बिगड़ने लगी. लेकिन परिवार ने हिम्मत नहीं हारी और बीमार होने के बाद भी संदीप ने कांवड़ यात्रा का सिलसिला जारी रखा. आज समय जरुर बदला है लेकिन संघर्ष जारी है. संदीप का कहना है कि वे निरतंर इसी तरह से हर साल कांवड़ यात्रा पर जाएंगे. वहीं अपने पिता से प्रेरित होकर गौरी भी कहती है वह भी शिव प्रसन्न करने हर साल कांवड़ उठाएगी.

यह है मान्यता 

हिंदू धर्म के मान्यताओं के मुताबिक सावन के पवित्र महीने में भगवान शिव को खुश करने के लिए कांवड़ यात्रा निकालने की परंपरा काफी पुरानी है. मान्यता के अनुसार सबसे पहले भगवान परशुराम ने अपने आराध्य देव शिव के नियमित पूजन के लिए पुरा महादेव में मंदिर की स्थापना कर कांवड़ में गंगाजल से पूजन कर कांवड़ परंपरा की शुरुआत की. उसके बाद बाद मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी सदाशिव को कांवड़ चढ़ाई थी.

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