Paush Putrada Ekadashi Vrat 2022: संतान-सुख के लिए सर्वोत्तम है पौष पुत्रदा एकादशी व्रत! जानें व्रत का महत्व, पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त एवं व्रत कथा
हिंदी पंचांग के अनुसार हर वर्ष 2 पुत्रदा एकादशी का योग बनता है. पहली एकादशी पौष माह (दिसंबर या जनवरी) में और दूसरी श्रावण मास (जुलाई या अगस्त माह) में. मान्यता है पुत्र की कामना के साथ कोई स्त्री इस एकादशी को व्रत के साथ भगवान विष्णु एवं माँ लक्ष्मी विधिवत पूजा-अर्चना करती है, तो उसे पुत्र-रत्न अवश्य प्राप्त होता है.
हिंदी पंचांग के अनुसार हर वर्ष 2 पुत्रदा एकादशी का योग बनता है. पहली एकादशी पौष माह (दिसंबर या जनवरी) में और दूसरी श्रावण मास (जुलाई या अगस्त माह) में. मान्यता है पुत्र की कामना के साथ कोई स्त्री इस एकादशी को व्रत के साथ भगवान विष्णु एवं माँ लक्ष्मी विधिवत पूजा-अर्चना करती है, तो उसे पुत्र-रत्न अवश्य प्राप्त होता है. इसीलिए इसे पुत्रदा एकादशी कहते हैं. इस वर्ष पौष मास की पुत्रदा एकादशी व्रत 12 जनवरी 2022 दिन बुधवार को रखा जायेगा.
पुत्रदा एकादशी का महत्व
हिंदू धर्म में संतान प्राप्ति अथवा संतान की अच्छी सेहत और दीर्घायु के लिए पुत्रदा एकादशी को सर्वश्रेष्ठ व्रत माना जाता है. इसे पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. यह व्रत एवं पूजा करनेवाले जातक को भगवान श्रीहरि की कृपा से पुत्र-रत्न की प्राप्ति के साथ तमाम कष्टों से मुक्ति मिलती है, तथा व्यक्ति जीवन के सारे सुख भोगकर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है.
पौष मास की पुत्रदा एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी प्रारंभ: 04.49 PM (12 जनवरी 2022) से
एकादशी समाप्त: 07.32 PM (13 जनवरी 2022) तक
पारण: 14 जनवरी 2022
व्रत एवं पूजा विधि
एकादशी का व्रत रखने वाले को दशमी के दिन से ही व्रत के नियमों को मानना चाहिए. शाकाहार भोजन सूर्यास्त से पूर्व कर लेना चाहिए. एकादशी की प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारणकर श्रीहरि का ध्यान करते हुए व्रत एवं पूजा का संकल्प लें और जिस उद्देश्य से व्रत रख रहे हैं, उस मनोकामना को व्यक्त करें. घर के मंदिर में उत्तर अथवा पूर्व दिशा में बैठकर श्रीहरि एवं माता लक्ष्मी का ध्यान कर निम्न मंत्र का उच्चारण करें.
ऊं नमोः नारायणाय. ऊं नमोः भगवते वासुदेवाय
श्रीहरि एवं माँ लक्ष्मी की शोडषोपचार विधि से पूजन करें. इन्हें रोली एवं अक्षत का तिलक लगाएं. धूप-दीप प्रज्जवलित करें. तुलसी, पान का पत्ता, सुपारी, पीला पुष्प पीला चंदन अर्पित करें. प्रसाद में दूध की मिठाई एवं पीला फल का भोग लगाएं. विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके विष्णु-मंत्र का जाप करें.
शांता कारम भुजङ्ग शयनम पद्म नाभं सुरेशम्
पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा सुनें, एवं श्रीहरि की आरती उतारें एवं प्रसाद को लोगों में वितरित कर दें. पूरे दिन फलाहार के साथ व्रत रखें. सायंकाल के समय एक बार पुनः श्रीहरि एवं माँ लक्ष्मी की पूजा करें एवं आरती उतारें. अगले दिन प्रातःकाल उठकर स्नान-ध्यान के पश्चात श्रीहरि की पूजा-अर्चना कर पूजित सामग्री का विसर्जन करें. किसी गरीब को भोजन दान कर व्रत का पारण करें. यह भी पढ़ें : Guru Gobind Singh Jayanti 2022 Messages: गुरु गोबिंद सिंह जयंती की लख-लख बधाइयां, अपनों संग शेयर करें ये हिंदी WhatsApp Wishes, Facebook Greetings और HD Images
पुत्रदा एकादशी की कथा-
पद्मपुराण के अनुसार द्वापर युग में महिष्मती पुरी का राजा महिजीत अपने सद्कर्मों के कारण प्रजा में बहुत लोकप्रिय था. लेकिन संतान-हीन होने के कारण वह चिंतित रहता था. राजा के शुभचिंतकों ने यह बात महामुनि लोमेश को बताई. उन्होंने बताया कि राजा ने पूर्व जन्म एकादशी के दिन जलाशय पर पानी पीती गाय को रोककर खुद पानी पीने लगा. धर्म के विपरीत इस कार्य से तमाम पुण्य कार्यों के कारण वह राजा तो बन गया, मगर धर्म विरुद्ध कार्य के कारण निसंतान है. राजा के सभी शुभचिंतक अगर पौष शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत रखें और इससे प्राप्त पुण्य राजा को दें, तभी उसे संतान सुख प्राप्त होगा. उन सभी ने ऐसा ही किया. कुछ माह बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया. इसके बाद से ही इस एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहा जाता है.