Krishna Janmashtami 2019: इस्कॉन मंदिर (मुंबई)- श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का भव्य एवं दिव्य दर्शन!

भगवान श्रीकृष्ण के कर्मवाद और श्रद्धालुओं की अटूट आस्था एवं श्रद्धा की झलक देखनी है तो मुंबई के जुहू स्थित इस्कॉन मंदिर में आयोजित जन्माष्टमी पर्व से बेहतर कुछ नहीं हो सकता. इस्कॉन यानी International Society for Krishna Consciousness. (अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ) जुहू स्थित इस कृष्ण मंदिर से जुड़ा हर सदस्य (पुरोहित से लेकर सफाईकर्मी तक) श्रीकृष्ण का उपासक होता है.

इस्कॉन मंदिर, मुंबई, (फाइल फोटो)

भगवान श्रीकृष्ण के कर्मवाद और श्रद्धालुओं की अटूट आस्था एवं श्रद्धा की झलक देखनी है तो मुंबई के जुहू स्थित इस्कॉन मंदिर में आयोजित जन्माष्टमी पर्व से बेहतर कुछ नहीं हो सकता. इस्कॉन यानी International Society for Krishna Consciousness. (अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ) जुहू स्थित इस कृष्ण मंदिर से जुड़ा हर सदस्य (पुरोहित से लेकर सफाईकर्मी तक) श्रीकृष्ण का उपासक होता है. इस मंदिर का जिक्र होते ही भगवा वस्त्र पहनें नाचते-झूमते ‘हरे रामा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे..’ गाते भक्तों का चित्र किसी चलचित्र की भांति जेहन में उभर आता है.

केसर एवं सुंगधित दूध-दही-मक्खन होता है अभिषेक

कृष्ण जन्माष्टमी के दिन तो जुहू स्थित इस इस्कॉन मंदिर का प्रांगण कृष्ण-भक्तों से इस कदर भरा रहता है कि पैर रखने तक की जगह नहीं होती. ज्यों-ज्यों दिन आगे बढता है, भक्तों की संख्या निरंतर बढ़ती जाती है. रात 10-11 बजते-बजते यह लाइन जुहू बीच तक पहुंच जाती है. जन्माष्टमी से दो दिन पूर्व से ही मंदिर के कपाट प्रातःकाल 7 बजे से रात 1 बजे तक भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिये जाते हैं. जन्माष्टमी के दिन लगभग 8 से 9 लाख भक्त भगवान श्रीरास बिहारी का दर्शन करते हैं. इस अवसर पर पूरे दिन मंदिर परिसर में हरे रामा हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे.. की गूंज होती रहती है. इस दरम्यान सुगंध और केसर मिश्रित मक्खन, दूध और दही से श्रीकृष्ण भगवान का अभिषेक कराया जाता है. भगवान का अभिषेक कराने के पश्चात उन्हें नये-नये वस्त्र पहनाए जाते हैं. फिर श्री श्री राधा रास बिहारी जी श्रृंगार किया जाता है. इस वर्ष यहां 23 एवं 24 अगस्त को जन्माष्टमी का भव्य पर्व मनाया जाएगा.

कर्मवाद और आध्यात्मवाद का प्रदर्शन

कर्मवाद को प्रधानता देने वाले भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला ही नहीं, उनके कर्मवाद को समाज के बीच अच्छी तरह से प्रसारित करने के मकसद से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भागवत गीता के बारे में स्लाइड शो दिखाये जाते हैं. इसके अलावा इस दिन कई ऐसे कार्यक्रमों का भी प्रदर्शन किया जाता है, जिससे भक्तों के आध्यात्मिक ज्ञान में वृद्धि होती है. जन्माष्टमी के दिन प्रातःकाल से देर रात तक निरंतर शुद्ध देशी घी का हलवा बनाने का सिलसिला जारी रहता है. भगवान श्रीकृष्ण बचपन से ही गायों से विशेष स्नेह करते रहे हैं, इसलिए जन्माष्टमी के दिन गोरक्षा से जुड़े कार्यक्रम भी दिखाये जाते हैं. इसके अलावा ज्ञान-विज्ञान तथा आध्यात्म से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम भी होते हैं.

भजन-संगीत संध्या का आनंद

प्रातःकाल ही मंगला दर्शन के साथ शुरू होने वाले जन्माष्टमी के महापर्व पर उमड़ने वाले भक्तों का लक्ष्य भगवान के श्रृंगार दर्शन के प्रति बहुत ज्यादा रहता है. जन्माष्टमी का मुख्य आरक्षण यहां आयोजित होने वाले भजन, संगीत, नृत्य पर आधारित कार्यक्रम भी रहे हैं. जन्माष्टमी पर्व के दिन यहां गजल सम्राट जगजीत सिंह, भजन सम्राट अनूप जलोटा, पंडित शिवकुमार शर्मा का संतूर वादन, पंडित जसराज का शास्त्रीय गायन, हेमामालिनी का शास्त्रीय नृत्य, भूपेंद्र मिताली की गजलें, हरि प्रसाद चौरसिया जी के बांसुरी से निकले मधुर स्वरों का आनंद कृष्ण भक्तों ने खूब उठाया है. यही वजह है कि इस इस्कॉन मंदिर में आयोजित जन्माष्टमी की छटा जिस भक्त ने एक बार देखी है, वह बार-बार यहां आना चाहता है.

इस्कॉन मंदिर बनाम राधा रास बिहारी जी का मंदिर

हरे रामा हरे कृष्णा मंदिर को अधिकांश लोग इस्कॉन मंदिर के रूप में ही जानते हैं. यद्यपि इस मंदिर का वास्तविक नाम राधा रास बिहारी जी मंदिर है. इसे यह नाम इसलिए दिया गया है, क्योंकि मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण के इसी स्वरूप की मूर्ति स्थापित की गयी है. इस्कॉन का दर्शन बताता है कि श्रीकृष्ण परम भगवान हैं, जीव उनका शाश्वत अंग है और उसका कार्य उसकी प्रेममयी सेवा में होना है. इसलिए इस्कॉन मंदिर से जो जुड़ता है, वह उसका ही होकर रह जाता है. यहां विदेशी भक्तों की भरमार है. इस्कॉन का कार्य लोगों की मूल चेतना को जगाना है. इस्कॉन के दर्शन में संकीर्तन, मंदिर, पुस्तकें, प्रसाद वितरण, प्रचार-प्रसार और अन्य उत्सवों को बहुत प्राथमिकता दी जाती है. इस्कॉन संस्था के देश-विदेश में 500 से भी ज्यादा मंदिर हैं और इनके सदस्यों की संख्या लाखों में है.

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