International Widows Day 2022: 23 जून को ही क्यों मनाया जाता है? अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस? जानें इस दिवस विशेष के पीछे क्या है भारत की भूमिका?
दुनिया भर में हर वर्ष 23 जून के दिन अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जाता है. यह दिवस समाज में काफी गिरी अवस्था में देखी जाने वाली शांतिमय जीवन जीने वाली विधवाओं के प्रति समाज की नैतिक जिम्मेदारियों को दर्शाने एवं उनके लिए आवश्यक समर्थन जुटाने हेतु मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र ने अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस को गरीबी और अन्याय को दूर करने के लिए कार्रवाई के दिन के रूप में अनुमोदित किया था, जो दुनिया भर के करोड़ों विधवाओं एवं उनके आश्रितों को महसूस होता है.
दुनिया भर में हर वर्ष 23 जून के दिन अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जाता है. यह दिवस समाज में काफी गिरी अवस्था में देखी जाने वाली शांतिमय जीवन जीने वाली विधवाओं के प्रति समाज की नैतिक जिम्मेदारियों को दर्शाने एवं उनके लिए आवश्यक समर्थन जुटाने हेतु मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र ने अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस को गरीबी और अन्याय को दूर करने के लिए कार्रवाई के दिन के रूप में अनुमोदित किया था, जो दुनिया भर के करोड़ों विधवाओं एवं उनके आश्रितों को महसूस होता है. क्योंकि पति की मृत्यु के साथ ही विधवा पत्नी अपनी आय, अपने कानूनी अधिकारों एवं काफी हद तक बच्चों के विश्वास को भी खो देती है.
कब और क्यों शुरू हुआ अंतरराष्ट्रीय विधवा दिवस?
संपूर्ण दुनिया में विधवाओं को समाज में सम्मानित स्तर दिलाने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 21 दिसंबर 2010 को घोषणा की थी कि 23 जून 2011 को अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस मनाया जायेगा. गौरतलब है कि ब्रिटेन स्थित लुंबा फाउंडेशन भी साल 2005 से ही विधवाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना मिशन चला रही थी. इसी संस्था के प्रयास से संयुक्त राष्ट्र में विधवाओं के खिलाफ जारी अत्याचारों के आंकड़ों को देखते हुए विधवा दिवस की घोषणा की गई थी. इसके बाद से संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, यूनाइटेड किंगडम, सीरिया, केन्या, श्रीलंका, बांग्लादेश सहित कई देशों में विधवा दिवस का आयोजन किया जा रहा है.
23 जून को ही क्यों मनाया जाता है?
वस्तुतः अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस की नींव ब्रिटेन स्थित लूंबा फाउंडेशन ने ही रखी थी. ज्ञात हो कि लुंबा फाउंडेशन की संस्थापिका भारतीय मूल की राजिंदर पॉल लुंबा की माँ ने 1954 के दिन (23 जून) अपने पति को खोया था. 37 साल की उम्र में पति को खोने के बाद उनकी माँ को जिस तरह सामाजिक प्रताड़नाओं एवं अन्य समस्याओं से जूझना पड़ा, उसने राजिंदर पॉल लूंबा के लिए प्रेरणा का काम किया. राजिंदर पॉल लूंबा अपने फाउंडेशन के जरिये अविकसित और गरीब देशों में रहने वाली विधवाओं को उनके बच्चों की शिक्षा, पोषण आदि में सहायता करता है. यह भारत और कई अन्य एशियाई और अफ्रीकी देशों सहित तमाम देशों में सक्रिय है.
अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस का महत्व?
भारत समेत लगभग संपूर्ण देश में आज भी समाज में विधवाओं की स्थिति दोयम दर्जे की है. इस दिवस विशेष को मनाने का मुख्य उद्देश्य यही था कि आम नागरिक की तरह विधवाओं को भी सम्मान भरा जीवन जीने को मिले. यह दिवस विधवाओं को उनके संपूर्ण अधिकारों का अहसास कराने, समाज में उन्हें सम्मानित जगह दिलाने का आग्रह एवं प्रेरित करता है. विधवाओं को उनकी विरासत, पिता की संपत्ति में बराबर का हिस्सा, उनके योग्य रोजगार, संवैधानिक अधिकार और तमाम संसाधन मुहैया कराने की वकालत करता है,जो आम नागरिक को प्राप्त है.
इस संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र का भी कहना है कि विधवाओं को अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करने में सक्षम बनाने के लिए सामाजिक कलंक को खत्म करना होगा. यह समाज की जिम्मेदारी है कि वह अपने समकक्ष विधवा को सम्मान दिला कर आपने दायित्वों का निर्वहन करें.