COVID-19 in Brain: मस्तिष्क में कई सालों तक रहता है कोरोना वायरस, नए रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा

जर्मन अध्ययन में पता चला है कि SARS-CoV-2 वायरस का स्पाइक प्रोटीन कोविड-19 संक्रमण के कई सालों बाद भी मस्तिष्क की सुरक्षा परतों और खोपड़ी के हड्डी के मज्जा में बना रहता है. यह प्रोटीन मस्तिष्क में सूजन बढ़ाता है और न्यूरोडिजेनेरेटिव बीमारियों का खतरा बढ़ाता है.

नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी का कारण बने SARS-CoV-2 वायरस का असर केवल शरीर पर नहीं बल्कि मस्तिष्क पर भी लंबे समय तक रह सकता है. हाल ही में हुए एक महत्वपूर्ण जर्मन अध्ययन ने यह बताया है कि SARS-CoV-2 वायरस का स्पाइक प्रोटीन संक्रमित होने के बाद भी सालों तक मस्तिष्क की सुरक्षा परत (मेनिंज) और खोपड़ी की हड्डी के अंदर मौजूद अस्थि मज्जा में बना रहता है. यह प्रोटीन मस्तिष्क में पुरानी सूजन पैदा करता है और न्यूरोडिजेनेरेटिव बीमारियों के जोखिम को बढ़ाता है.

वैज्ञानिकों ने क्या पाया?

हेल्महोल्ट्ज़ म्यूनिख और लुडविग-मेक्सिमिलियन्स विश्वविद्यालय (LMU) के शोधकर्ताओं ने पाया कि SARS-CoV-2 का स्पाइक प्रोटीन चार साल तक मस्तिष्क के संरक्षित क्षेत्रों में रह सकता है. प्रोफेसर अली एर्टुर्क, जो हेल्महोल्ट्ज़ म्यूनिख के इंटेलिजेंट बायोटेक्नोलॉजी संस्थान के निदेशक हैं, ने कहा कि इसके दीर्घकालिक न्यूरोलॉजिकल प्रभावों में “तेजी से मस्तिष्क की उम्र बढ़ने” का खतरा होता है, जिससे प्रभावित व्यक्तियों में स्वस्थ मस्तिष्क कार्यों की पांच से दस साल की कमी हो सकती है.

लॉन्ग कोविड के प्रभाव

यह अध्ययन ‘सेल होस्ट एंड माइक्रोब’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है और इसमें यह भी पाया गया है कि कोविड के बाद के लक्षण जैसे सिरदर्द, नींद में परेशानी और ‘ब्रेन फॉग’ (संज्ञानात्मक मंदता) भी स्पाइक प्रोटीन के कारण हो सकते हैं. लगभग पांच से दस प्रतिशत लोग कोविड-19 से संक्रमित होने के बाद लॉन्ग कोविड का सामना करते हैं, जिनमें करीब 400 मिलियन लोग स्पाइक प्रोटीन का काफी बड़ा हिस्सा लेकर चल सकते हैं.

टीका लेने से असर कम होता है

शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि कोविड-19 के खिलाफ लगाए गए टीके मस्तिष्क में स्पाइक प्रोटीन के संचय को काफी हद तक कम करते हैं. हालांकि, चूहे पर किए गए परीक्षण में इस कमी का स्तर केवल 50 प्रतिशत था, जिसके बाद भी मस्तिष्क में बचा हुआ स्पाइक प्रोटीन एक विषाक्त जोखिम बना रहता है.

नई तकनीक से किया गया अध्ययन

इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एक नई एआई-आधारित इमेजिंग तकनीक का उपयोग किया, जिससे यह पता लगाया गया कि SARS-CoV-2 के स्पाइक प्रोटीन का मस्तिष्क पर कितना गहरा असर हो सकता है. यह तकनीक विशेष रूप से कोविड-19 मरीजों और चूहों के ऊतक नमूनों से स्पाइक प्रोटीन के वितरण को तीन-आयामी रूप में दिखाने में सक्षम रही.

यह अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि कोविड-19 का वायरस केवल तत्काल स्वास्थ्य पर ही असर नहीं डालता, बल्कि इसके दीर्घकालिक परिणाम भी हो सकते हैं, विशेषकर मस्तिष्क से संबंधित समस्याओं के रूप में. इस अध्ययन ने यह भी साबित किया कि टीके इस खतरनाक प्रभाव को कम करने में सहायक हो सकते हैं, लेकिन पूरी तरह से इस विषाक्त प्रोटीन को खत्म नहीं कर सकते.

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