कोरोना संकट: अस्‍पताल में है कोविड-19 संक्रमण का डर तो क्या करें दांत के मरीज? जानिए क्या कहते हैं एम्स के डॉक्टर

कोरोना वायरस के कारण सरकार ने अन्‍य बीमारियों के मरीजों को सलाह दी है कि जब तक बहुत ज्यादा परेशानी नहीं है, तब तक अस्‍पताल आने की जरूरत नहीं है. ऐसे में हर कोई परेशानी के वक्‍त डॉक्‍टर से फोन, व्‍हॉट्सऐप आदि से संपर्क कर रहा है. ऐसा ही कुछ दांत के रोगी भी कर रहे हैं, लेकिन दंत चिकित्सा में बहुत कुछ ऐसा होता है, जिसमें डॉक्‍टर बिना देखें दवा दे ही नहीं सकते.

दांत के मरीज (Photo Credits-Pexels)

कोरोना वायरस (Coronavirus) के कारण सरकार ने अन्‍य बीमारियों के मरीजों को सलाह दी है कि जब तक बहुत ज्यादा परेशानी नहीं है, तब तक अस्‍पताल आने की जरूरत नहीं है. ऐसे में हर कोई परेशानी के वक्‍त डॉक्‍टर से फोन, व्‍हॉट्सऐप आदि से संपर्क कर रहा है. ऐसा ही कुछ दांत के रोगी भी कर रहे हैं, लेकिन दंत चिकित्सा में बहुत कुछ ऐसा होता है, जिसमें डॉक्‍टर बिना देखें दवा दे ही नहीं सकते. किसी को दांत में दर्द है, तो किसी की आरसीटी बीच में रुक गई है, किसी को फिलिंग करवानी है, तो किसी को क्राउन बदलवाना है.

एम्स में ऑर्थोडॉन्टिक विभाग के डॉ. ओपी खरबंदा की मानें तो जब तक सहन कर सकते हैं, तब तक अस्‍पताल मत आयें. हालाकि दंत चिकित्सकों को इलाज की तरीकों में बदलाव और विशेष प्रकार की सावधानियां बरतने के निर्देश दिए गए हैं. अब जबकि लॉकडाउन में ढील दी गई है तो दांत के इलाज के रोगियों की संख्या भी अस्पतालों में बढ़ने लगी है. डॉ. खरबंदा ने कहा कि सूजन, संक्रमण सहित कुछ दांत के मामले ऐसे हैं जो आपातकाल के अंतर्गत आते हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। लेकिन फिर भी कोविड19 की वजह से रोगी और डॉक्टरों की शारीरिक दूरी रहनी जरूरी है. इसलिए मरीजों को केवल आपातकालीन स्थिति में ही उपचार के लिए क्लीनिक में आना चाहिए. यह भी पढ़े-कोरोना वायरस का कहर: देश में COVID-19 से संक्रमित मरीजों की संख्या 49,391 हुई, अब तक 1694 लोगों की हो चुकी है मौत

उन्‍होंने कहा कि वायरस के दौर में दंत रोगियों को अपने डॉक्टर से टेलीफोन पर पहले परेशानी बतानी चाहिए. जिसके अनुसार आवश्यक होने पर उन्हें अस्पताल बुलाया जा सके. साथ ही मरीज को भी क्लिनिक में तय समय पर पहुंचने और क्लिनिक में कर्मचारियों के साथ निकट संपर्क से बचना चाहिए.

अक्सर दांतों के इलाज में रूट कैनाल ट्रीटमेंट और प्रत्यारोपण जैसे कई दंत उपचारों में डॉक्टर और पेशेंट एक दूसरे के काफी समीप होते हैं. ऐसे में किसी कोरोना कैरियर से अगले व्यक्ति तक वायरस फैलने की संभावना रहती हैं. चूंकी कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने में प्रमुख मुंह और उसकी लार है और अक्सर डॉक्टर को अपना हाथ या उपकरण से इलाज के लिए मुंह में डालना पड़ता है.

इस बारे में डॉ. खरबंदा कहते हैं कि कोविड19 का संक्रमण निश्चिय ही लार की बूंदों के फैलने से होता है. लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि डॉक्टर जब इलाज करते हैं तो जो लार की बड़ी बूंदें हैं, वो डॉक्टर के हाथ में रहेंगी और यह काफी घातक हो सकती है. इसी दौरान कुछ छोटे कण जो दिखाई भी नहीं देते वह हवा के साथ कमरे में या क्लिनिक में फैल सकते हैं, जिससे वहां मौजूद लोगों को भी वायरस के संक्रमण का खतरा रहेगा. इसलिए डॉक्टरों और रोगियों सहित क्लिनिक कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सिस्टम और कुछ सुरक्षा उपकरणों का रखना अनिवार्य होना चाहिए.

डॉक्‍टर की सलाह है कि कोविड19 के संक्रमण से बचने के लिए न केवल डॉक्टर बल्कि उनके सहायकों को भी पीपीई किट पहनना चाहिए. जैसे ही रोगी क्लिनिक में प्रवेश करता है, हाथ की सफाई और मास्क पहनने का प्रावधान होना चाहिए और रिसेप्शन पर सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो.

डॉ. खरबंदा कहते हैं कि दांतों की इंट्रा ओरल एक्स-रे से बचना चाहिए, लेकिन अगर यह जरूरी है तो, एक्स-रे सेंसर को दस्ताने पहन कर लगाना चाहिए और सावधानी के साथ उसे रखना चाहिए ताकि संक्रमण की संभावना न हो। इसके अलावा, डॉक्टरों और कर्मचारियों आस-पास, फर्श और सतहों की सफाई रखना बहुत महत्वपूर्ण है.

लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के निदेशक एनएन माथुर कहते हैं कि दांत और ईएनटी (Ear, Nose, and Throat) को बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि डेंटल प्रक्रियाओं में ड्रिलिंग शामिल होती है, जो बहुत सारे एरोसोल उत्पन्न करती है, जबकि ईएनटी में डॉक्टरों को नाक और साइनस की एंडोस्कोपी करनी होती है और गले पर काम करना पड़ता है. इसलिए N95 मास्क और पीपीई किट और फेस शील्ड का उपयोग करना चाहिए, ताकि अतिरिक्त सुरक्षा रहे.

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