Govatsa Dwadashi 2022: सुख, समृद्धि और पुत्र प्राप्ति के लिए इस दिन होती है गाय बछड़े की पूजा! जानें इस पर्व का महत्व, मुहूर्त एवं पूजा विधि!

सनातन धर्म में वाघ बरस एक धार्मिक पर्व के रूप में माना जाता है, जिसे दीपावली के आगमन का प्रतीक भी कहते हैं, क्योंकि यह धनतेरस से एक दिन पूर्व ही मनाया जाता है. यह पर्व मानव जाति की समृद्धि का प्रतीक कहे जाने वाले गाय एवं बछिये को समर्पित पर्व है.

गोवत्स द्वादशी 2022 (Photo Credits: File Image)

सनातन धर्म में वाघ बरस एक धार्मिक पर्व के रूप में माना जाता है, जिसे दीपावली के आगमन का प्रतीक भी कहते हैं, क्योंकि यह धनतेरस से एक दिन पूर्व ही मनाया जाता है. यह पर्व मानव जाति की समृद्धि का प्रतीक कहे जाने वाले गाय एवं बछिये को समर्पित पर्व है. इस पर्व को महाराष्ट्र में 'वासु बरस', गुजरात में 'वाघ बरस' या 'एसो वड बरस', उत्तरी भारत में 'गोवत्स द्वादशी' जबकि कुछ जगहों पर 'बाख बरस' के नाम से भी जाना जाता है. किंवदंतियां हैं कि एक बार भगवान दत्तात्रेय के अवतार श्री वल्लभ इसी द्वादशी को कृष्णा नदी में लुप्त हो गये थे. इसलिए कुछ स्थानों पर इसे 'गोवत्स द्वादशी' के रूप में भी मनाया जाता है. 'गो' का आशय है 'गाय' और 'वत्स' का अर्थ है बछड़ा. इस तरह यह गाय को समर्पित पर्व माना जाता है. इस वर्ष 21 अक्टूबर 2022, शुक्रवार को वाघ बरस (वसु बारस) का पर्व मनाया जायेगा. आइये जानें गोवत्स द्वादशी के महत्व, मुहूर्त एवं व्रत पूजा विधि इत्यादि के बारे में विस्तार से...

वाघ बरस पर्व का महत्व

हिंदू धर्म में गाय को मां स्वरूप पूजा जाता है, इसके अलावा मानव जीवन में गाय का विशेष महत्व भी होता है. वाघ बारस के दिन कृषक दम्पति सुख एवं समृद्धि के लिए अपने-अपने घरों में गाय एवं बछड़े की पूजा करते हैं, और श्री कृष्ण का ध्यान करते हैं. कहते हैं कि गायों की पूजा करने की परंपरा कामधेनु (गाय) के अस्तित्व के बाद आई, जो व्यक्ति की पांच इच्छाओं को पूरा करती थी. कामधेनु में से एक गाय नंदा ने समुद्र-मंथन के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इसके बाद से ही गौ पूजा की परंपरा शुरू हुई. 'वाघ' शब्द का एक अर्थ वित्तीय ऋणों की अदायगी होता है, जबकि 'बारस' वित्तीय वर्ष को संदर्भित करता है. इस दिन व्यवसायी वर्ग अपने-अपने खातों को साफ करते हैं और लाभ पंचम के दिन तक नए खातों में आगे कोई प्रविष्टि नहीं करते हैं.

वाघ बरस (21 अक्टूबर 2022) तिथि एवं मुहूर्त काल

द्वादशी प्रारंभः 05.22 PM (21 अक्टूबर, 2022) से

द्वादशी समाप्त 06.02 PM (22 अक्टूबर, 2022) तक

प्रदोष कालः 06.09 PM से 08.39 PM तक (21 अक्टूबर 2022)

वाघ बरस पर व्रत-पूजा के नियम

यह पर्व गाय एवं उसके बछड़े को समर्पित होता है. इस दिन कृषक परिवार गाय और बछड़े को स्नान कराते हैं. उन्हें आकर्षक वस्त्र पहनाने के बाद मोतियों के मालों से सजाते हैं. मस्तक पर सिंदूर और हल्दी का लेप लगा कर पूजा की जाती है. उन्हें अच्छे पकवान खिलाते हैं. कुछ लोग गाय-बछड़े की मूर्ति की मातृत्व स्वरूप में पूजा करते हैं. इस दिन विवाहित महिलाएं पुत्र की कामना हेतु व्रत रखती हैं. इस व्रत में दूध अथवा दुग्ध पदार्थों का सेवन वर्जित होता है. पूरे दिन व्रत रखते हुए शुभ मुहूर्त पर पूजा-अनुष्ठान करते हैं. मान्यता है कि गौवत्स की पूजा व्रत से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से पुत्र-रत्न की प्राप्ति होती है.

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