Islamic New Year 2019: इस्लामिक न्यू ईयर की कब से हो रही है शुरुआत, जानें मुस्लिम समुदाय के लिए कितना खास है मुहर्रम का महीना
इस्लाम धर्म के पाक महीनों में एक मुहर्रम यानी इस्लामिक न्यू ईयर 2019 इस साल 30-31 अगस्त से शुरू हो रहा है.मुहर्रम से इस्लामिक कैलेंडर का नया साल शुरु होता है. इस्लामिक न्यू ईयर को अरबी नववर्ष या हिजरी नववर्ष भी कहा जाता है. मान्यता है कि मुहर्रम महीने में पैगंबर मुहम्मद के नाती हजरत हुसैन इस्लाम की रक्षा के लिए शहीद हुए थे. मुहर्रम मातम मनाने का त्योहार है.
Islamic New Year Muharram: इस्लाम (Islam) धर्म के पाक महीनों में एक मुहर्रम (Muharram) का पाक महीना यानी इस्लामिक न्यू ईयर 2019 (Islamic New Year 2019) इस साल 30-31 अगस्त से शुरू हो रहा है. मान्यता है कि मुहर्रम महीने (Muharram Month) में पैगंबर मुहम्मद के नाती हजरत हुसैन इस्लाम की रक्षा के लिए शहीद हुए थे. मुहर्रम से इस्लामिक कैलेंडर का नया साल शुरु होता है. इस्लामिक न्यू ईयर को अरबी नववर्ष या हिजरी नववर्ष भी कहा जाता है. हिजरी कैलेंडर के अनुसार, मुस्लिम समुदाय के त्योहारों की तारीख निकाली जाती है, जिसमें पहला त्योहार मुहर्रम होता है. हालांकि इसे पर्व की सूची में नहीं रखा गया है, क्योंकि शिया मुस्लिम के लिए यह खुशी का नहीं, बल्कि मातम का दिन होता है, जिसे इमाम हुसैन की याद में शोक के तौर पर मनाया जाता है.
दरअसल, हिजरी कैलेंडर एक चंद्र कैलेंडर है, जिसका इस्तेमाल दुनिया भर के मुसलमान इस्लामिक पर्व को मानने के लिए करते हैं. इस्लामिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर मुहम्मद साहब ने मुहर्रम के महीने को अल्लाह का महीना बताया है. इस्लाम में 4 महीनों को पाक बताया गया है, जिनमें से एक है मुहर्रम. इसके अलावा अन्य तीन महीने जुल्कादाह, जुलहिज्जा और रजब को भी पाक माना जाता है. यह भी पढ़ें: Hajj 2019: आज से शुरू हो रही है ये पवित्र यात्रा, जानें इससे जुड़ी जरुरी बातें
क्यों मनाया जाता है मुहर्रम?
मुहर्रम से जुड़ी इस्लामिक मान्यता के अनुसार, इराक में यजीद नाम का एक क्रूर शासक था और उसने अपने पिता व उमैया वंश के संस्थापक मुआबिया की मौत के बाद खुद को इस्लामी जगत का खलीफा घोषित कर दिया था. यजीद ने हजरत मुहम्मद के नाती हजरत हुसैन को अपने कबीले में शामिल होने का न्योता दिया, जिसे हजरत हुसैन ने ठुकरा दिया. कहा जाता है कि इसी बात को लेकर यजीद ने हुसैन के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया. इराक में हुए इस धर्म युद्ध में हजरत हुसैन अपने परिवार और दोस्तों के साथ शहीद हो गए. यह घटना मुहर्रम महीने में हुई थी और हुसैन मुहर्रम की 10वीं तारीख को शहीद हुए थे, इसलिए हर साल मुहर्रम की 10वीं तारीख को उनकी याद में मातम मनाया जाता है.
रोजे रखने से मिलता है सवाब
इस्लाम धर्म में सिर्फ रमजान के महीने में ही रोजे नहीं रखे जाते हैं, बल्कि मुहर्रम में भी रोजे रखने का रिवाज है. मुहर्रम में कई मुसलमान रोजे रखते हैं. हालांकि इस महीने में रोजे रखना हर मुसलमान के लिए अनिवार्य नहीं होता है, इसे अपनी इच्छा से कोई भी रख सकता है. मान्यता है कि मुहर्रम में रोजे रखने वाले रोजेदारों को काफी सवाब मिलता है. सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम में 10 दिन तक रोजे रखते हैं. इस दौरान मस्जिदों और घरों में अल्लाह की इबादत की जाती है. कहा जाता है कि मुहर्रम के महीने में एक रोजे का सवाब 30 रोजों के बराबर मिलता है. यह भी पढ़ें: जानिए क्यों इस्लाम धर्म में हरे रंग को क्यों माना जाता है इतना पवित्र
निभाई जाती है यह परंपरा
इस्लामी कैलेंडर के नए साल का पहला त्योहार मुहर्रम खुशियों का नहीं, बल्कि मातम मनाने का त्योहार है. इस दिन हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए मातम मनाया जाता है. शिया समुदाय के लोग मुहर्रम के 10वें दिन काले कपड़े पहनकर हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद करते हुए मातम मनाते हैं. मातम मनाने के साथ-साथ इस दिन हुसैन की शहादत की याद में सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है.