Ugadi 2020: दक्षिण भारत का महापर्व है उगादी! इस दिन होती है सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा की पूजा, जानें किन घटनाओं के लिए प्रसिद्ध है यह पर्व

उगादी दक्षिण भारत के प्रमुख पर्वों में एक है. यह पर्व आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे दक्षिण भारतीय राज्‍यों में नववर्ष के तौर पर मनाया जाता है. उगादी का पर्व किसानों के लिए अच्छी फसल की उम्मीदें लेकर आता है. पर्व की सारी गतिविधियां प्रकृति के इर्द-गिर्द होती हैं. इसीलिए इस दिन प्रकृति के रचयिता भगवान ब्रह्मा की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है.

हैप्पी उगादी 2020 (Photo Credits: File Photo)

Ugadi 2020: सनातन धर्म एवं हिंदी पंचांगों में चैत्र मास की शुक्लपक्ष प्रथमा तिथि का विशेष महत्व बताया गया है. एक तरफ हम हिंदी संवत्सर मनाते हैं, तो दूसरी तरफ चैत्रीय नवरात्रि (Chaita Navratri) का नौ दिनों का महोत्सव शुरू होता है, जबकि दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों में इस दिन गुड़ी पड़वा (Gudi Padwa) का विशेष पर्व मनाते हैं. कम लोग ही जानते होंगे कि इसी दिन दक्षिण भारत का एक और महापर्व सेलीब्रेट किया जाता है, जिसका नाम है उगादी (Ugadi). अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष उगादी का पर्व 25 मार्च को पड़ रहा है. आइये जानते हैं इस महापर्व की खास बातें एवं परंपराएं.

इस दिन होती ब्रह्माजी की पूजा

उगादी दक्षिण भारत के प्रमुख पर्वों में एक है. यह पर्व आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे दक्षिण भारतीय राज्‍यों में नववर्ष के तौर पर मनाया जाता है. उगादी का पर्व किसानों के लिए अच्छी फसल की उम्मीदें लेकर आता है. पर्व की सारी गतिविधियां प्रकृति के इर्द-गिर्द होती हैं. इसीलिए इस दिन प्रकृति के रचयिता भगवान ब्रह्मा की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है. इस दिवस विशेष पर हर घरों में ‘पच्चड़ी’ नामक पेय पदार्थ बनाया जाता है, जो सेहत के लिए काफी लाभकारी माना जाता है. इस शुभ अवसर पर दक्षिण भारत के लोग नये कार्यों मसलन नया व्यापार, गृहप्रवेश, भूमि पूजन आदि का शुभारंभ करते हैं. यह भी पढ़ें: Gudi Padwa 2020: बालि-वध के साथ शुरू हुआ गुड़ी पड़वा का पर्व! जानें सुख-समृद्धि से जुड़े इस त्योहार का महत्व

उगादी 2020 शुभ मुहूर्त:

प्रतिपदा तिथि प्रारंभः दोपहर 02.57 बजे से (24 मार्च 2020)

प्रतिपदा तिथि समाप्तः 05.26 बजे तक (25 मार्च 2020)

उगादी मनाने का उद्देश्य

उगादी के शुभ अवसर पर चार मुख वाले चतुरानन यानी ब्रह्मा की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इसी दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी. एक अन्य मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु ने भी मत्स्य अवतार लिया था. ऐसी भी किंवदंति है कि प्रभु श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी पवित्र दिन हुआ था. ऐसा भी कहा जाता है कि इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी. इसीलिए इस दिन को विजय दिवस के रूप में भी मनाया जाता है.

पूजा का विधि विधान

चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रथमा को प्रातःकाल उठकर पूरे बदन में उबटन करने के बाद तिल का तेल लगाते हैं. इसके पश्चात स्नान कर नये वस्त्र पहनते हैं और ब्रह्मा जी के मंदिर जाते हैं. ब्रह्मा जी की प्रतिमा के समक्ष बैठकर हाथों में अक्षत, चमेली का पुष्प और जल लेकर मंत्रोचारण के साथ ब्रह्मा जी के सामने अर्पित करते हैं. कुछ जगहों पर इस दिन वेदी बनाने की भी परंपरा निभाई जाती है. ब्रह्मा जी के मंदिर में प्रतिमा के सामने वेदी बनाकर सफेद वस्त्र बिछाते हैं. इस पर हल्दी अथवा पीले रंग के अक्षत से अष्टदल कमल बनाते हैं. इस अष्टदल कमल पर ब्रह्माजी की प्रतिमा स्थापित करते हैं. इसके बाद गणेशाम्बिका की पूजा कर ‘ऊँ ब्रह्मणे’ मंत्र का जाप करते हैं. यह भी पढ़ें: Chaitra Navratri 2020: चैत्र नवरात्रि में मां भगवती को प्रसन्न करने के लिए क्या करें और क्या नहीं, जानें इसका महात्म्य

व्यंजनों का पर्व है उगादी

उगादि पर्व पर कुछ पारंपरिक व्यंजन बनाये जाने की भी प्रथा है. पूजा-पाठ से निवृत्ति होने के पश्चात अधिकांश घरों में पच्चड़ी नामक पेय पदार्थ बनाया जाता है. पच्चड़ी बनाने के लिए इमली, आम, नारियल और नीम के फूल तथा गुड़ का इस्तेमाल करते हैं. पच्चड़ी के अलावा इस दिन बोवत्तु (पोलेलु) नामक व्यंजन भी बनाया जाता है. यह वस्तुतः पराठे जैसा होता है. गेहूं के आटे में चने की दाल, गुड़ और हल्दी मिलाकर गूंध लेते हैं और इसे पराठे की तरह बेल कर शुद्ध घी में तल लिया जाता है. ये सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं.

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