Somvati Amavasya 2020: संतान की दीर्घायु एवं पितृ-तर्पण के लिए विशेष दिन है सोमवती अमावस्या, जानें पूजा विधान, शुभ मुहूर्त और कथा
ज्योतिषीय गणना के अनुसार अमावस्या तिथि के स्वामी पितृदेव होते हैं, इसलिए श्राद्ध कर्म या पितर शांति के लिए यह दिन भी उत्तम माना जाता है. साल में दो बार सोमवती अमावस्या का योग बनता है. साल की अंतिम सोमवती अमावस्या इस बार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अंतिम तिथि 14 दिसंबर 2020 को पड़ रही है.
Somvati Amavasya 2020:अमावस्या का ही अपभ्रंश है 'अमावस'. हिंदू पंचांग के अनुसार जिस रात चंद्रमा आकाश से प्रायः लुप्त हो जाता है और रात अपेक्षाकृत ज्यादा काली हो जाती है, उस तिथि को अमावस्या कहते हैं. सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या (Somvati Amavasya) कहते हैं. ज्योतिषीय गणना के अनुसार अमावस्या (Amavasya) तिथि के स्वामी पितृदेव होते हैं, इसलिए श्राद्ध कर्म या पितर शांति के लिए यह दिन भी उत्तम माना जाता है. साल में दो बार सोमवती अमावस्या का योग बनता है. साल की अंतिम सोमवती अमावस्या इस बार मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष की अंतिम तिथि 14 दिसंबर 2020 को पड़ रही है. आइए जानते हैं क्यों करते हैं यह व्रत? क्या है इस पूजा का महात्म्य, मुहूर्त और पारंपरिक कथा.
अमावस्या का महात्म्य
हिंदू धर्म शास्त्रों में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व बताया गया है. चूंकि यह तिथि तर्पण, स्नान-दान के लिए भी अभीष्ठ फलदायी मानी जाती है, इसलिए इस दिन बहुत से लोग पितृदोष की पूजा भी करवाते हैं. हिंदुस्तान का महत्वपूर्ण पर्व दीपावली अमावस्या के दिन ही मनाते हैं. स्नान-दान के लिए माघ मास में पड़ने वाली मौनी अमावस्या भी विशेष पुण्य अर्जित करने वाला दिन होता है. सूर्यग्रहण भी अमावस्या के दिन ही लगता है. ज्योतिषियों की मानें तो अगर कोई व्यक्ति काल सर्पदोष से पीड़ित है तो उसकी मुक्ति के लिए की जाने वाली पूजा के लिए अमावस्या का दिन सर्वोत्तम होता है. इस दिन लोग अपने मृत माता-पिता अथवा रिश्तेदारों के नाम पर गंगा अथवा किसी पवित्र नदी में डुबकी लगाकर उनकी शांति के लिए प्रार्थना करते हैं. अगर लॉकडाउन के कारण नदी में स्नान करना संभव है तो घर के पानी में ही गंगाजल की कुछ बूंदे मिला दें.
सोमवती पर पूजा का विधान
सोमवती अमावस्या भगवान शिव को समर्पित है. इस दिन सुहागवती स्त्रियां अपने सुहाग की दीर्घायु एवं अच्छी सेहत के लिए व्रत रखती हैं और गंगा-स्नान के पश्चात दान करती हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से सहस्त्र गोदान जैसा पुण्य प्राप्त होता है. इस दिन सुहागन स्त्रियां पीपल के वृक्ष की पूजा करती हैं. पीपल वृक्ष की जड़ों में दूध, पुष्प, जल, अक्षत, चंदन और रोलनी अर्पित करते हुए भगवान शिव एवं माता पार्वती का ध्यान करती हैं. इसके बाद पीपल के वृक्ष के तने के चारों ओर परिक्रमा करते हुए 108 बार धागा लपेटते हैं और माता पार्वती एवं भगवान शिव से प्रार्थना करती हैं कि उनका सुहाग बना रहे. यह भी पढ़ें: Somvati Amavasya 2020: सोमवती अमावस्या पर बन रहे हैं कई अद्भुत संयोग, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
शुभ मुहूर्त-
सोमवती अमावस्या: 14 दिसंबर 2020 (सोमवार)
अमावस्या आरंभः 14 दिसंबर 12.46 AM
अमावस्या समाप्त: 14 दिसंबर 09.48 PM
पारंपरिक कथा
एक गरीब ब्राह्मण की एक कन्या सर्वगुण सम्पन्न होने के बावजूद उसकी शादी नहीं हो रही थी. एक दिन एक साधु ब्राह्मण के घर पहुंचे और कन्या के सेवाभाव से वह काफी प्रसन्न हुए. उन्होंने कन्या को लंबी आयु का वरदान दिया और ब्राह्मण के पूछने पर विवाह न होने के बारे में बताया कि कन्या के हाथ में विवाह की रेखा नहीं है. उन्होंने बताया कि पड़ोस के गांव में एक सोना नामक धोबी का परिवार रहता है. यदि कन्या उनकी सेवा करे तो उसका विवाह हो सकता है. ब्राह्मण की पुत्री रोज भोर में जाकर धोबिन का सारा काम निपटा कर वापस आ जाती. सोना को लगा यह सारे कार्य उसकी बहु करती है, इससे वह बहुत खुश थी, लेकिन जब बहु ने बताया कि वह तो सुबह देर तक सोती है, तब सास-बहु ने अगले दिन जल्दी उठकर एक कन्या को उसके घर का काम करते देखी तो हैरान रह गयी.
उसने सोना से पूछा वह कौन है और उसके घर का सारा काम क्यों करती है. कन्या धोबिन के पैरों पर गिरकर अपना सारा दुख बताया. तब सोना ने उसे अगले दिन अपना सुहाग देने का वादा किया. अगले दिन सोमवती अमावस्या का दिन था. सोना जानती थी कि ऐसा करते ही उसके पति की मृत्यु हो जायेगी. लेकिन वह इन बातों को भुलाकर कन्या के घर गई और उसकी मांग में सिंदूर लगा दिया. उधर सोना के पति की मृत्यु हो गयी. घर वापस लौटते समय सोना ने पति के दीर्घायु होने की कामना करते हुए पीपल के पेड़ की परिक्रमा की. घर लौटने पर उसने पति को जीवित पाया तो उसने भगवान शिव को बारंबार धन्यवाद दिया.