Saint Gadge's Death Anniversary 2019: अशिक्षित होकर शिक्षित समाज देखना चाहते थे संत गाडगे बाबा, जानें किससे प्रभावित थे वे!

संत गाडगे डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर के समकालीनों में एक थे. यूं तो संत बाबा सभी राजनीतिज्ञों से मिलते रहते थे, लेकिन बाबा डा. आंबेडकर के कार्यों से वे बहुत प्रभावित थे. वजह थी उनकी समाज सुधारक की इमेज. दोनों का एक ही मिशन था, एक संत के रूप में अपने उपदेशों एवं कीर्तनों से समाज की दशा-दिशा सुधारने के लिए प्रयत्नशील था.

संत गाडगे महाराज पुण्य-तिथि, (फोटो क्रेडिट्स: फाइल फोटो)

Saint Gadge's Death Anniversary 2019: संत गाडगे महाराज  डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर के समकालीनों में एक थे. यूं तो संत बाबा सभी राजनीतिज्ञों से मिलते रहते थे, लेकिन बाबा डा. आंबेडकर के कार्यों से वे बहुत प्रभावित थे. वजह थी उनकी समाज सुधारक की इमेज. दोनों का एक ही मिशन था, एक संत के रूप में अपने उपदेशों एवं कीर्तनों से समाज की दशा-दिशा सुधारने के लिए प्रयत्नशील था, तो डॉ आंबेडकर राजनीति के माध्यम से समाज सुधार के कार्य कर रहे थे. डॉ आंबेडकर भी संत गाडगे से इसीलिए बहुत प्रभावित थे क्योंकि वे आम साधू-संत से अलग थे, जिन्होंने ताउम्र समाज सेवा में गुजार दिया था. माना जाता है कि अशिक्षित होकर भी संत गाडगे डॉ. आंबेडकर की उच्च शिक्षा से प्रभावित थे और वे समाज में समानता के लिए शिक्षा को आवश्यक मानते थे. वे बाबा साहेब के व्यक्तित्त्व एवं कृतित्व से बहुत प्रभावित थे.

शिक्षा के साथ समझौता नहीं

अन्य संतों की भांति गाडगे बाबा (Saint Gadge Maharaj) को भी औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने का अवसर नहीं मिला था. उन्होंने स्वाध्याय के बल पर ही थोड़ा बहुत पढ़ना-लिखना सीखा था. संत गाडगे समझ चुके थे कि अगर समाज में समानता लानी है तो सबको शिक्षित होना अनिवार्य है. समाज के नाम अपने संदेश में संत गाडगे ने कहा भी कि शिक्षा हर किसी के लिए अति आवश्यक है. उन्होंने कहा कि यदि खाने की थाली बेचनी पड़े तो उसे बेचकर शिक्षा ग्रहण करो. हाथ पर रोटी लेकर खाना खा सकते हो, पर विद्या के बिना जीवन अधूरा है. वे अपने प्रवचनों में शिक्षा पर उपदेश देते समय डा. अम्बेडकर को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करते हुए कहते थे कि ‘‘देखा बाबा साहेब अंबेडकर अपनी महत्वाकांक्षा से कितना पढ़े. शिक्षा कोई एक ही वर्ग की ठेकेदारी नहीं है. एक गरीब का बच्चा भी अच्छी शिक्षा लेकर ढेर सारी डिग्रियां हासिल कर सकता है. संत गाडगे ने अपने समाज में शिक्षा का प्रकाश फैलाने के लिए 31 शिक्षण संस्थाओं तथा एक सौ से अधिक अन्य संस्थाओं की स्थापना की.

शिक्षा एवं समानता के साथ स्वच्छता को भी प्रमुखता

संत गाडगे संत कबीर की तरह ब्राह्मणवाद, पाखंडवाद और जातिवाद के विरोधी थे. वे अकसर अपने उपदेशों में कहते थे कि सभी मानव एक समान हैं, इसलिए भाईचारे एवं प्रेम के साथ रहो. वे स्वच्छता पर केवल उपदेश ही नहीं देते थे बल्कि अपने साथ हमेशा एक झाडू भी रखते थे, जो स्वच्छता का प्रतीक था. वे कहते थे कि सुगंध देने वाले फूलों को पात्र में रखकर भगवान की पत्थर की मूर्ति पर अर्पित करने के बजाय लोगों की सेवा करो, भूखों को भोजन कराओ तभी तुम्हारा जन्म सार्थक होगा. पूजा के फूलों से तो मेरा झाड़ू ही श्रेष्ठ है, यह बात सभी को समझ में नहीं आएगी.

डेबू जी से ऐसे बने संत गाडगे

संत गाडगे जी का जन्म 23 फरवरी, 1876 को महाराष्ट्र के अमरावती जिले की तहसील अंजन गांव सुरजी के शेगांव नामक गांव में एक धोबी जाति के गरीब परिवार में हुआ था. बाबा गाडगे से पूर्व उनका मूल नाम देवीदास डेबूजी झिंगराजी जाड़ोकर था. घर में उनके माता-पिता उन्हें प्यार से ‘डेबू जी’ कहते थे. डेबू जी हमेशा अपने साथ मिट्टी के मटके जैसा एक पात्र रखते थे. वे इसी में खाना खाते और पानी भी पीते थे. महाराष्ट्र में मटके के टुकड़े को गाडगा कहते हैं. उनके पास यह पात्र देखकर लोगों ने उन्हें गाडगे महाराज कहना शुरू किया. बाद में उनके नाम के आगे लोगों ने संत लिखना शुरू किया और वे संत गाडगे महाराज के रूप में लोकप्रिय हो गए.

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