Pithori Amavasya 2023: संतान की दीर्घायु हेतु रखा जाता है यह व्रत-पूजा! जानें क्या है इसका महत्व, पूजा-विधि एवं पोला उत्सव? 

प्रत्येक माह में एक अमावस्या की तिथि पड़ती है, हर अमावस्या को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, सबका अलग-अलग महत्व एवं पूजा विधि है. इसी क्रम में भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पिठोरी अमावस्या कहते हैं.

Pithori Amavasya 2023

प्रत्येक माह में एक अमावस्या की तिथि पड़ती है, हर अमावस्या को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, सबका अलग-अलग महत्व एवं पूजा विधि है. इसी क्रम में भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पिठोरी अमावस्या कहते हैं. मान्यताओं के अनुसार इस दिन साल भर के मांगलिक और धार्मिक कार्यों में प्रयोग की गई कुशों को इकट्ठा किया जाता है, इसलिए इसे  कुशोत्पाटिनी अथवा कुशग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है. इस वर्ष 14 सितंबर 2023, गुरुवार को पिठोरी अमावस्या का व्रत रखा जाएगा. यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने बच्चों की दीर्घायु एवं सुरक्षा के लिए रखती हैं. आइये जानते हैं, पिठौरी अमावस्या के महत्व, मुहूर्त, व्रत, पूजा विधि आदि के बारे में विस्तार से … यह भी पढ़ें: Nija Sawan 2023: निजा सावन के आखिरी सोमवार को गुजरात स्थित बिलिमोरा के सोमनाथ मंदिर में भक्तों ने की पूजा-अर्चना (Watch Video)

पिठोरी अमावस्या का महत्व

पिठोरी अमावस्या के दिन पितृ तर्पण आदि धार्मिक एवं मांगलिक कार्यों में कुश का प्रयोग किया जाता है, इसलिए इसे कुश अमावस्या कहा जाता है. इस अवसर पर पितरों का तर्पण करने से पितृ दोष से होने वाले, कष्ट, संकट आदि से मुक्ति मिलती है. और पितरों का अक्षय आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन महिलाओं द्वारा देवी दुर्गा समेत 64 योगिनियों की पूजा का विधान है. इसके लिए आटे से 64 योगिनियों की मूर्ति बनाएं, उन्हें वस्त्र पहनाएं. इनके साथ देवी दुर्गा की भी योगिनी के रूप में पूजा की जाती है. पूजा के बाद उन्हें बहती नदी में विसर्जित कर दिया जाता है. पिठोरी अमावस्या का व्रत एवं पूजा केवल सुहागन महिलाएं अपनी संतान  की दीर्घायु एवं अच्छे स्वास्थ्य के लिए करती हैं.

पिठोरी व्रत एवं पूजा के नियम?

भाद्रपद अमावस्या को सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान करें. बेहतर होगा किसी पवित्र नदी अथवा स्नान के जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें स्नान के पश्चात.सूर्यदेव को अर्घ्य दें. अब घर के मंदिर में भगवान शिव के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें. पहले गणेश जी की तत्पश्चात शिवजी की पूजा करें. अमावस्या को पितरों का दिन भी कहा जाता है, इसलिए इस दिन पितरों की शांति के लिए पिंडदान एवं तिल का तर्पण अवश्य करना चाहिए, गरीबों को भोजन, वस्त्र, छाता, शाल, चप्पल दान करें. इस देवी दुर्गा के साथ 64 योगिनियों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि देवी दुर्गा के योगिनी रूप एवं उनकी 64 योगिनी सखियों की पूजा करने से बच्चों एवं घर-परिवार में खुशहाली आती है. पूजा के पश्चात दान-धर्म करके व्रत का पारण किया जा सकता है.

पोला उत्सव

पिठोरी अमावस्या के दिन महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में किसानों द्वारा पोला उत्सव भी बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस पूजा में मुख्य रूप से किसानों और कृषि के लिए सबसे उपयोगी कहे जाने वाले बैलों की पूजा की जाती है, इसलिए इसे बैलों का उत्सव भी कहा जाता है. इस दिन बैलों को स्नान के पश्चात शॉल, घंटियां, मोतियों की माला एवं पुष्पों से सजाया जाता है. उनके सींगों को रंगा जाता है, मस्तक पर तिलक लगाते हैं, और लगाम के लिए नई रस्सियों लगाई जाती हैं. उनकी आरती उतारी जाती है, और उन्हें फल मिठाई खिलाई जाती है.

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