Navratri 2020: शरद नवरात्रि पर 58 साल बाद बन रहे शुभ योग क्या हैं? क्यों आवश्यक है कलश स्थापना और अखंड दीप, जानें देवी दुर्गा के 'अश्व की सवारी' को लेकर ज्योतिषियों की राय
इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 17 अक्टूबर से शुरु हो रही है. इस नवरात्रि की खास बात यह है कि इस बार तिथियों की हानि नहीं हो रही है. अकसर नवरात्रि में चतुर्थी-पंचमी, षष्ठी-सप्तमी अथवा सप्तमी-अष्टमी एक ही दिन पड़ने से नवरात्रि 8 दिन में पूरी हो जाती है, लेकिन इस बार पूरे नौ दिन की नवरात्रि पड़ रही है, जिसे बहुत शुभ माना जाता है.
Navratri 2020: इस वर्ष शारदीय नवरात्रि (Sharad Navratri) 17 अक्टूबर से शुरु हो रही है. इस नवरात्रि (Navratri) की खास बात यह है कि इस बार तिथियों की हानि नहीं हो रही है. अक्सर नवरात्रि में चतुर्थी-पंचमी, षष्ठी-सप्तमी अथवा सप्तमी-अष्टमी एक ही दिन पड़ने से नवरात्रि 8 दिन में पूरी हो जाती है, लेकिन इस बार पूरे नौ दिन की नवरात्रि पड़ रही है, जिसे बहुत शुभ माना जाता है.
मां की हर सवारी के पीछे छिपा है एक गूढ़ आशय
मां दुर्गा (Maa Durga) जब नवरात्रि पर कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर अवतरित होती हैं तो दिन के अनुसार अलग-अलग सवारियों पर सवार होकर आती हैं. हर दिन एवं हर सवारी के पीछे अलग-अलग मान्यताएं हैं. उदाहरणार्थ अगर नवरात्रि के प्रतिपदा (पहला दिन) के दिन रविवार या सोमवार है तो मां दुर्गा गजराज यानी हाथी पर सवार होकर आती हैं. अगर प्रतिपदा शनिवार या मंगलवार को है तो वे अश्व यानी घोड़े पर सवार होकर आती हैं. गुरुवार या शुक्रवार की प्रतिपदा पर माता डोली पर सवार होकर आती हैं, और अगर प्रतिपदा बुधवार को पड़ रहा है तो जलमार्ग से नाव पर सवार होकर आती हैं. पृथ्वी पर आकर माता अति सूक्ष्म रूप में कलश में स्थापित हो जाती हैं. इसीलिए कलश-स्थापना का विशेष महत्व माना जाता है नवरात्रि पर...
घोड़े पर आने का क्या तात्पर्य है
जब मां घोड़े पर सवार होकर आती हैं, तो इसका आशय यह कि इस वर्ष देश-प्रदेश में राजनीतिक उथल-पुथल रहने की संभावना है. पड़ोसी देशों से भी तनाव मिल सकता है. प्राकृतिक आपदाएं मसलन अति वृष्टि, सूखा, आंधी-तूफान, महामारी आदि की संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता. इसके अलावा देश का नेतृत्व करने वाली प्रधान शासक के लिए उलझन एवं तनावों भरा साल साबित हो सकता है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि हर भक्त देशहित के लिए माता से प्रार्थना करें कि पृथ्वी पर उनके आगमन से पृथ्वीवासियों का कल्याण हो, किसी तरह की समस्याएं न आयें. सर्वत्र शांति और खुशहाली रहे. पड़ोसी देशों से हमारे देश की वे स्वयं सुरक्षा करें. देवी सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य सुनती हैं. यह भी पढ़ें: Navratri 2020: नवरात्रि में मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए ऐसा करें तो मिलेगा विशेष आशीर्वाद, खुलेंगे तरक्की के नए द्वार
क्या है दुर्लभ संयोग
आज जो संयोग बन रहे हैं यह 58 साल पहले यानी 29 सितंबर 1962 को पड़ा था. इस समय सूर्य का राशि परिवर्तन हो रहा है. सूर्य तुला राशि में जायेंगे. तुला राशि जबकि सूर्य का निहित राशि है, फिर भी सूर्य तुला राशि में जायेंगे, बुध पहले से सूर्य राशि में हैं. इस तरह बुध आदित्य योग का निर्माण होगा. यह बहुत शुभकाल का प्रतीक है. इस तरह नौ दिन की नवरात्रि और बुध आदित्य का योग मिलकर इस नवरात्रि को शुभता काफी बढ़ गयी है.
कलश स्थापना का मुहूर्त
नवरात्रि पर कलश स्थापना बहुत जरूरी होता है. इस अवसर पर कलश रखने की परंपरा सदियों पुरानी है, आप प्रतिमा की स्थापना न करें, व्रत-उपवास न करें, लेकिन मां दुर्गा का आह्वान करने के लिए कलश स्थापना अवश्य करें. मान्यता है कि मां दुर्गा इसी कलश में सूक्ष्म रूप में स्थापित होती हैं. कलश की स्थापना प्रातः 06.23 मिनट से 10.12 मिनट के बीच कभी भी किया जा सकता है. नवरात्रि को पूरे नौ दिन इस कलश की पूजा-अर्चना मां दुर्गा की तरह करनी चाहिए.
अखण्ड ज्योति का महत्व
अखण्ड दीप और दीप-दान का हमारे शास्त्रों में बहुत महत्व बताया गया है. सभी जानते हैं कि मां भगवती का ज्योति में पादुर्भाव है. ज्वालादेवी मंदिर में मां भगवती को ज्वाला के रूप में पूजा जाता है. नवरात्रि में मां भगवती के लिए हम 9 दिनों का अखण्ड ज्योति जलाते हैं. अखण्ड दीप जलाने के कुछ नियम हैं. तांबे, पीतल अथवा अष्टधातु में से किसी एक धातु का प्लेट लें. लाल चंदन अथवा रोली को पानी अथवा शुद्ध घी में घोलकर उससे प्लेट में छह पंखुड़ियां बनायें. बीचो-बीच में थोड़ा सा चावल और पुष्प रखें. इसके ऊपर दीप रखें. नवरात्रि के लिए अखण्ड दीप के लिए रूई का 6 इंच का मोटा बत्ती तैयार करें. यह भी पढ़ें: Navratri 2020: शरद नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना क्यों है महत्वपूर्ण? जानें घटस्थापना का शुभ मुहूर्त और आवश्यक पूजन सामग्रियों की पूरी लिस्ट
बाजार में पीतल का गहरा और बड़ा दीप उपलब्ध होता है. उसमें बत्ती लगाकर घी अथवा मीठा तेल डालें. अब मां भगवती का ध्यान कर दीप जलाएं. दीप जलाते समये कोई एक मंत्र जिसे आप आसानी से बोल सकें पढ़ें. दीप को नमस्कार करते हुए पंचोपचार पूजन कीजिये. दीप पर चंदन लगाइये, अक्षत एवं फल चढ़ाइये. आप चाहें तो षोडपोचार विधि से भी दीप की पूजा कर सकते हैं. अखण्ड दीप बुझने नहीं पाये इसके लिए एक व्यक्ति उस पर निरंतर ध्यान रखे. किन्हीं वजहों से दीप बुझ जाये तो ऐसा हरगिज न सोचें कि मां भगवती नाराज हो जायेंगी. आप मां का ध्यान करते हुए पुनः दीप प्रज्जवलित कर लें.