Mahashivratri 2021: भगवान शिव को क्यों प्रिय है भांग और धतूरा?
भगवान शिव को भोले भंडारी भी कहा जाता है, क्योंकि तैंतीस कोटि के देवी-देवता में अकेले शिव जी ही ऐसे देव हैं, जो धतूरा, भांग, बेलपत्र, बेर, मदार के फूल और एक लोटा जल मात्र से प्रसन्न होकर भक्तों पर सर्वस्व लुटा देते हैं.
Mahashivratri, 10 मार्च : भगवान शिव (Shiv) परम तपस्वी, ज्ञान, वैराग्य, भक्ति एवं योग साधना की प्रतिमूर्ति हैं. उनकी पूजा-अर्चना से अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है. भगवान शिव को भोले भंडारी भी कहा जाता है, क्योंकि तैंतीस कोटि के देवी-देवता में अकेले शिव जी ही ऐसे देव हैं, जो धतूरा, भांग, बेलपत्र, बेर, मदार के फूल और एक लोटा जल मात्र से प्रसन्न होकर भक्तों पर सर्वस्व लुटा देते हैं. ज्योतिषियों का कहना है कि प्रत्येक मनुष्य में शिव तत्व उपस्थित हैं और इसे शिव के प्रति भक्ति, पूजा-अर्चना एवं अनुराग से जगाया जा सकता है. भगवान शिव के पसंदीदा प्रसाद भांग-धतूरा के नाम से अधिकांश लोगों को कौतूहल होता है कि आखिर शिवजी को भांग-धतूरे का प्रसाद क्यों अर्पित किया जाता है. यह भी पढ़े: Mahashivratri 2021 Wishes & Images: शिवभक्तों कों दे महाशिवरात्रि की बधाई! भेजें ये आकर्षक WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, GIFs और Wallpapers
क्यों कहते हैं शिव जी को नीलकंठ!
महाशिवरात्रि के दिन शिव जी की पूजा-अर्चना में भांग एवं धतूरे को प्रसाद के रूप में अवश्य चढ़ाया जाता है. इस संदर्भ में ज्योतिषियों का मत है कि शिव महापुराण में शिवजी को नीलकंठ माना गया है, इसके पीछे मान्यता है कि समुद्र-मंथन के समय जब हलाहल विष उत्पन्न हुआ तो सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने हलाहल यानी विष को पी लिया था, लेकिन विष को उन्होंने गले से नीचे नहीं उतरने दिया, जिसकी वजह से उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है.
कैसे टूटी शिवजी की मूर्छा!
शिव पुराण में उल्लेखित है कि शिवजी द्वारा विषपान करने से हलाहल उनके मस्तिष्क पर चढ़ गया. विष के प्रभाव से भगवान शिव मुर्छित हो गए. उनके मुर्छित होते ही ब्रह्मण्ड में भूचाल सा आ गया. सभी देवी-देवता उन्हें होश में लाने का उपक्रम करने लगे. इस संदर्भ में भागवत पुराण में बताया गया है कि देवी-देवताओं की चिंता से आदि शक्ति प्रकट हुईं. उन्होंने देवी-देवताओं को आदेश दिया कि वे शिव जी के उपचार हेतु जड़ी बूटियों एवं जल से इलाज करें. इसके बाद हालाहल की गर्मी को दूर करने के लिए देवताओं ने भगवान शिव के सिर पर धतूरा, भांग रखा और निरंतर जलाभिषेक किया. इस प्रक्रिया को दो-तीन बार करने पर शिव जी के मस्तिष्क से विष का असर शांत हो गया. कहते हैं कि इसके बाद से ही भगवान शिव की पूजा-अर्चना के दरम्यान बेल, बेल पत्र एवं धतूरा इत्यादि का इस्तेमाल आवश्यक रूप से किया जाने लगा.
दार्शनिक कारण!
भांग धतूरा और गांजा जैसी चीजों को भगवान शिव से जोड़ने का एक दार्शनिक कारण भी है. ये चीजें त्याज्य श्रेणी में आती हैं, शिव का यह संदेश है कि मैं उनके साथ भी हूं जो सभ्य समाजों द्वारा त्याग दिए जाते हैं. जो मुझे समर्पित हो जाता है, मैं उसका हो जाता हूं
आयुर्वेद में धतूरे का इस्तेमाल
आयुर्वेदिक उपचार में भी और धतूरे का इस्तेमाल औषधि के रूप में होता है. शास्त्रों में तो बेल के तीन पत्तों को रज, सत्व और तमोगुण का प्रतीक माना गया है. तीन पत्तियों वाले बेल पत्र को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना गया है इसलिए भगवान शिव जी की पूजा में बेलपत्र का प्रयोग भी किया जाता है.