Lohri 2020: खुशहाली एवं फसलों का पर्व! क्यों अग्नि में प्रवाहित की जाती है खाद्य-सामग्री! जानें इससे जुड़ी रोचक कथा

लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व माघ कृष्णपक्ष की तृतीया को मनाया जाता है. यह मूलतः पंजाब का पारंपरिक पर्व है. लेकिन अब यह भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब लोकप्रिय है. यह पर्व गेहूं, सरसों एवं अन्य फसलों के पकने से भी जुड़ा है, लिहाजा इस पर्व को प्रकृति से भी जोड़ कर देखा जाता है.

लोहड़ी की शुभकामनाएं (File Image)

Lohri 2020: लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व माघ कृष्णपक्ष की तृतीया को मनाया जाता है. यह मूलतः पंजाब का पारंपरिक पर्व है. लेकिन अब यह भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी खूब लोकप्रिय है. यह पर्व गेहूं, सरसों एवं अन्य फसलों के पकने से भी जुड़ा है, लिहाजा इस पर्व को प्रकृति से भी जोड़ कर देखा जाता है. इस पर्व का आध्यात्मिक पहलू भी है. मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन कंस ने कृष्ण को मारने के लिए लोहिता नामक राक्षसी को भेजा था, जिसका श्रीकृष्ण ने खेल खेल में वध कर दिया था. इसी खुशी में यह पर्व मनाया जाता है. आइए जानें नाच-गाने एवं जोश-खरोस से भरे इस पर्व के बारे में....

प्रकृति का पर्व

लोहड़ी खुशहाली के आगमन का प्रतीकात्मक पर्व है. जनवरी माह में जब यह पर्व सेलीब्रेट करते हैं, स्वर्ण-सी दमकती गेहूं की बालियां और पीले फूलों से लदे सरसों की फसलें पक कर तैयार हो चुकी होती है. किसानों को अपनी इन फसलों से बड़ी-बड़ी उम्मीदें रहती हैं. क्योंकि फसलों को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए उसने रात-दिन जागकर कड़ी मेहनत की होती है, पसीने बहाया होता है. पर्व के दिन जब लोहड़ी जलाई जाती है तो उससे पूर्व इन फसलों की बालियों की पूजा होती है.

लोहड़ी का अर्थ

लोहड़ी का अर्थ है- ल (लकड़ी), ओह (गोहा यानी सूखे उपले), ड़ी (रेवड़ी). लोहड़ी के अवसर पर लोग मूंगफली, तिल व रेवड़ी आग में अर्पित करने के बाद, बचे हुए हिस्से को एक दूसरे को बांटते थे. जिस घर में नई शादी हुई होती है या किसी घर में बच्‍चे का जन्‍म होता है, वहां यह त्‍योहार काफी उत्‍साह व नाच-गाने के साथ मनाया जाता है.

पर्व की परंपरा

बदलते समय के साथ लोहड़ी मनाने के तरीके में भी बदलाव आया है. दिल्ली जैसे महानगरों में इस लोहड़ी को मॉर्डन तरीके से मनाया जाता है. लेकिन पंजाब में आज भी लोहड़ी परंपरागत तरीके से मनाई जाती है. पंजाब की गली मोहल्लों में घर की औरतें पंजाबी लोकगीत ‘दुल्ला भट्टी.. गाते हुए घर-घर जाती हैं और लोहड़ी मांगती हैं. लोहड़ी की रात परिवार व आस-पड़ोस के लोग इकट्ठे होकर लकड़ियां एवं कंडे जलाते हैं. इसके बाद तिल, रेवड़ी, मूंगफली, मक्‍का व गुड़ जैसे खाद्य-पदार्थ अग्नि को समर्पित करते हैं. इसके बाद परिवार के लोग आग की परिक्रमा कर सुख-शांति की कामना करते हैं. अग्नि पूजा के पश्चात बचे हुए तिल, रेवड़ी, मूंगफली इत्यादि को प्रसाद के रूप में सभी को वितरित कर दिया जाता है.

क्यों गाते हैं दुल्‍ला भट्टी वाला होय..

सुंदर मुंदरिए होय, तेरा कौन विचारा होय,

दुल्ला भट्टी वाला होय, दुल्ले दी धी बयाही हो..

लोहड़ी पर्व का यह सबसे लोकप्रिय गीत है, या यूं कहिए कि इस गीत के बजते ही लोहड़ी की याद ताजा आ जाती है. इस लोकगीत से संबंधित एक कथा प्रचलित है. मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में अकसर लड़कियों को बाहर ले जाकर बेच दिया जाता था. उन्हीं दिनों दुल्ला भट्टी नामक एक डाकू भी था, लेकिन वह डाकू अमीरों का दुश्मन और गरीबों का मित्र था. अमीर और घूसखोर जमींदारों को लूटकर जो संपत्ति उसे मिलती थी, उसे वह गरीबों को बांट देता था. एक बार सुंदरी और मुंदरी नामक दो अनाथ लड़कियों को उसके चाचा ने गांव के सुबेदार को बेच दिया. दुल्ला भट्टी को जब यह बात पता चली तो उसने चाल चलकर उन लड़कियों को सुबेदार से छुड़वाया और अच्छे लड़कों से उनका विवाह करवा दिया. कहते हैं इसी खुशी में गांव-परिवार के लोग कंडे, लकड़ियां जलाकर उसके इर्द-गिर्द खुशियां मनाते हैं.

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