जन्माष्टमी 2018: भारत के इन राज्यों में इस तरह से मनाया जाता है श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का त्योहार
रक्षाबंधन के त्योहार के समापन के बाद से ही देश अब जन्माष्टमी की तयारियों में जुट चुका है. श्री कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद महीने का सबसे मुख्य त्योहार जिसे भाद्रपद महीने की अष्टमी को मनाया जाता है. इस साल 2 सितंबर को यह पर्व मनाया जाएगा.
देश में रक्षाबंधन पूर्ण हर्षोल्लास और शांतिपूर्वक तरीके से मनाया गया, इसी के साथ श्रावण माह की समाप्ति हुई और भाद्रपद महीना शुरू हुआ. रक्षाबंधन के बाद देश अब जन्माष्टमी की तैयारियों में जुट चुका है. श्री कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद महीने का सबसे मुख्य त्योहार है. जिसे भाद्रपद महीने की अष्टमी को मनाया जाता है. इस साल 2 सितंबर को यह पर्व मनाया जाएगा. कृष्ण जन्माष्टमी हिन्दुओं के आराध्य भगवान श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव है, जिसे पूरे भारत में मनाया जाता है.
श्री कृष्ण का जन्म उत्तरप्रदेश के मथुरा में हुआ, लेकिन देश के हर राज्य हर गांव हर शहर में यह उत्सव बड़े ही उत्साह, उमंग और जोश से मनाया जाता है. कहीं कन्हैया की लीलाओं का आनंद लिया जाता है तो कहीं उन्हें मेवा, मिष्ठान आदि छप्पन भोग अर्पित किए जाते हैं. लोग पूरे श्रद्धाभाव के साथ जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं और घर पर सुबह से ही अपने प्रभु के लिए तमाम व्यंजन तैयार करना शुरू कर देते हैं. देश के हर राज्य में इस पर्व को मनाने के तरीके में कुछ भिन्नता है. जानिए देश में जन्माष्टमी के कितने अलग-अलग रंग हैं.
उत्तरी राज्य और ब्रज क्षेत्र:
ब्रज क्षेत्र के मथुरा में कन्हैया का जन्म हुआ था. बाल्यकाल से जुड़ी सारी शरारतें, लीलाएं भी ब्रज क्षेत्र में ही हुईं. इसलिए यहां के लोगों में कन्हैया के प्रति एक अलग ही प्यार, भक्ति और आस्था देखने को मिलती है. घरों व मंदिरों में झांकियां सजती हैं. छोटे—छोटे बच्चों को कन्हैया और राधा बनाया जाता है. लोग व्रत रखते हैं. महिलाएं अपने कान्हा के लिए तमाम व्यंजन घर पर ही बनाती हैं. शाम से मंदिरों में भजन कीर्तन शुरू हो जाते हैं.
रात में 12 बजे नार वाले खीर से कन्हैया भोग लगाया जाता है. उन्हें दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से स्नान कराकर मिष्ठान, मेवा, पंचामृत आदि चढ़ाया जाता है. सुंदर वस्त्र पहनाकर और अपने कान्हा को सजाकर लोग उन्हें पालने में बैठाकर झूला झुलाते हैं. उसके बाद प्रसाद खाकर अपना व्रत खोलते हैं. वहीं इस मौके पर दूर-दूर से लोग मथुरा-वृंदावन पहुंचते हैं. वहां कृष्ण जन्मभूमि, बांके बिहारी आदि मंदिरों पर कन्हैया का विशेष अभिषेक होता है.
गुजरात:
उत्तरप्रदेश की तरह गुजरात का भी श्री कृष्ण से अलग ही नाता है. गुजरात के द्वारका को श्री कृष्ण ने अपनी राजधानी बनाया था. हिन्दू धर्मग्रन्थों के अनुसार, भगवान कॄष्ण ने ही इसे बसाया था. गुजरात संसार को गीता का ज्ञान और जीवन का सत्य बताने वाले भगवान श्रीकृष्ण और उनके आखिरी लम्हों की गवाही देता है. यही वो पावन स्थान है, जहां सृष्टि के पालनहार कृष्ण ने अपना शरीर त्यागा था. गुजरात के सौराष्ट्र में मौजूद द्वादश लिंगों में से एक सोमनाथ मंदिर भी यहीं है. इस मंदिर में बनी भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा उनके आखिरी वक्त को बयां करती है. मंदिर परिसर में मौजूद ये 5 हजार साल पुराना पीपल का वृक्ष जो कभी नहीं सूखता है.
गुजरात में भगवान कृष्ण के मंदिरों में से प्रमुख एक दूसरा मंदिर द्वारकाधीश मंदिर भी यहीं है. जन्माष्टमी के दौरान विशेष रूप से सजाया जाता है. छोटे—छोटे बच्चों को कन्हैया की तरह सजाया जाता है. पूरे गुजरात में जय श्रीकृष्णा की धूम होती है.
महाराष्ट्र:
जन्माष्टमी के त्योहार को महाराष्ट्र में दही हांडी उत्सव के रूप में मनाया जाता है. इस दौरान सड़को पर आम दिनों के मुकाबले ज्यादा भीड़ होती है. मिट्टी की हांडी में माखन मिश्री भरकर टांगा जाता है जिसे कन्हैया बनकर बच्चे तोड़ते है. कई जगह मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. जीतने वाले को इनाम दिया जाता है.
दक्षिण भारत:
दक्षिण भारत के राज्यों में जन्माष्टमी के दिन लोग घर की साफ सफाई कर रंगोली बनाते हैं और कन्हैया की मूर्ति स्थापित धूप, दीप और प्रसाद आदि चढ़ाते हैं. महाराष्ट्र के भांति दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में भी दही हांडी का आयोजन किया जाता है.
ओडिशा:
भगवान कृष्ण के सुप्रसिद्ध धाम जगन्नाथ पुरी यहां है, जन्माष्टमी के दिनों पुरी जगन्नाथ को भव्य तरीके से सजाया जाता है. लोग इस दिन उपवास रखते हैं और रात को भगवान के जन्म के बाद ही उपवास खोलते हैं.
पूर्वी भारत:
देश के पूर्वी हिस्से में श्रीकृष्ण के इस्कॉन आदि तमाम मंदिरों को सजाया जाता है. देश के अन्य भागों कि तरह यहां भी इस दिन कृष्ण लीलाओं का आयोजन किया जाता है लेकिन यहां एक विशेष तरीके से कृष्ण भगवान की रासलीलाओं को मणिपुरी डांस स्टाइल में प्रस्तुत किया जाता है.