Jagannath Rath Yatra 2019: पुरी के जगन्नाथ रथ यात्रा का सौ यज्ञों के बराबर होता है फल, जानिए इस मंदिर से जुड़ी हैरान करने वाली बातें
कहते हैं कि भगवान श्री जगन्नाथ रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के समान होता है. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार पुरी शहर के सबसे बड़े एवं दिव्य महोत्सव को देखने के लिए आस्था का जो सैलाब यहां नजर आता है,
Jagannath Rath Yatra 2019: पावन तीर्थस्थल पुरी (Puri) का जगन्नाथ रथ यात्रा (Jagannath Rath Yatra) भारत के धार्मिक पर्वों में सबसे महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है. इसकी दिव्यता, संस्कृति और परंपरा भारत के साथ-साथ दुनिया भर में सराही जाती है. कहते हैं कि भगवान श्री जगन्नाथ रथ यात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के समान होता है. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार पुरी शहर के सबसे बड़े एवं दिव्य महोत्सव को देखने के लिए आस्था का जो सैलाब यहां नजर आता है, वह दुर्लभ है, अवर्णनीय है. इस रथ यात्रा के दरम्यान भगवान की प्रतिमा तक पहुंचने और उनके चरण स्पर्श करने की होड़-सी मची रहती है. यह पर्व आषाढ़ शुक्लपक्ष द्वितीय यानी आज (4 जुलाई) मनाया जा रहा है.
भगवान श्री जगन्नाथ जी (Bhagwan Jagannath) की यह रथ यात्रा दस दिनों तक चलती है. रथयात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है. देश के चार पवित्र धामों में एक पुरी के 8 सौ साल पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्री कृष्ण जगन्नाथ के रूप में यहां वास करते हैं. पुरी रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ की उनके दसों अवतारों के रूप में पूजा अर्चना की जाती है. भगवान श्री जगन्नाथ का दिव्य रथ श्रद्धा एवं आस्था के रंगों से सराबोर होता है. धूप, दीप, अगरबत्तियों की सुगंध, भक्तों के जय-जयकार के उद्घोष, चलते फिरते मंदिरनुमा यह रथ जहां-जहां से गुजरता है वहां जन-जन को भक्ति और आस्था के रस में डुबो देता है.
गैरहिंदुओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं
इस मंदिर में गैर-हिन्दूओं को प्रवेश की अनुमति नहीं है. मंदिर एवं यहां होनेवाले आयोजनों को देखने के लिए पर्यटक मंदिर के विशाल बगीचे और करीब स्थित रघुनंदन पुस्तकालय की छत से देख सकते हैं. स्थानीयों का कहना है कि इस मंदिर पर मुगल शासकों ने 17 बार आक्रमण किया और लूटपाट की. इसे देखते हुए मंदिर के ट्रस्टियों के आदेश पर गैर हिंदूओं के मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था. अलबत्ता बौद्ध एवं जैन संप्रदाय के लोग मंदिर प्रांगण में प्रवेश कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें अपनी भारतीयता का मूल प्रमाण देना होगा. सूत्रों के अनुसार वर्तमान में विशेष परिस्थितियों में मंदिर के आयोजकों ने गैरहिंदूओं को मंदिर में प्रवेश देना शुरू किया है. इसके लिए कुछ आवश्यक कागजी कार्यवाही करनी पड़ती है. यह भी पढ़ें: Devshayani Ekadashi 2019: देवशयनी एकादशी से गहन निद्रा में चले जाते हैं भगवान विष्णु, जानें इसका महत्व, व्रत और पूजा की विधि
कौन हैं भगवान जगन्नाथ
16 कलाओं से विभूषित श्री जगन्नाथ जी को भगवान विष्णु का 10वां अवतार माना जाता है. पौराणिक ग्रंथों में जगन्नाथ धाम को ‘पृथ्वी का बैकुंठ’ भी बताया गया है. मंदिर में भगवान जगन्नाथ दाई ओर बीच में बहन सुभद्रा और दाई तरफ बड़े भाई बलभद्र (बलराम) की प्रतिमा स्थापित है. हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ कृष्णपक्ष की द्वितिया के दिन इनकी पूजा और यात्रा बड़ी धूमधाम से आयोजित की जाती है.
मंदिर की कुछ चौंकानेवाली बातें
इस मंदिर के संदर्भ में कुछ बातें चौंकाती हैं. गौरतलब है कि यह मंदिर चार लाख वर्गफुट में फैला है. इसकी ऊंचाई करीब 214 फिट है. लेकिन मंदिर के नीचे खड़े होकर आप न मंदिर का गुंबद देख सकते हैं और न ही दिन में सूर्य की रोशनी में भी गुंबद का साया नजर आता है. इसके अलावा इस मंदिर के ऊपर आज तक किसी ने भी कोई पक्षी उड़ता हुआ नहीं देखा. इसके अलावा मंदिर के ऊपर से विमान भी नहीं गुजरते. इस मंदिर के रसोईघर को दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर माना जाता है. स्थानीयों के अनुसार भगवान जगन्नाथ जी के आशीर्वाद से यहां कितने भी भक्त आ जायें, रसोई का भंडार कभी खाली नहीं होता. यहां आया कोई भी श्रद्धालु आज तक यहां से भूखे पेट वापस नहीं गया है. यह मंदिर समंदर के किनारे पर स्थित है, लेकिन मंदिर के भीतर कभी एवं किसी को समुद्र की लहरों की आवाज सुनाई नहीं दी. मंदिर के बुर्ज पर लगा ध्वज हमेशा वायु की विपरीत दिशा में लहराता दिखता है.