Happy Gudi Padwa 2020: इस दिन एक नहीं दो विजय-पर्व मनाए जाते है, जानें इस दिन श्रीराम ने किस दुष्ट वानर पर विजय प्राप्त की थी
मान्यता है कि शालिवाहन ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही शक को पराजित किया था. इसी दिन से शालिवाहन कालगणना का प्रारंभ हुआ, जो शालिवाहन शक के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि शालिवाहन नामक कुम्हार ने मिट्टी की सेना बनाकर शत्रुओं को हराया, तो उसके उपलक्ष्य में ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा मनाया जाने लगा
आज ‘गुड़ी पड़वा’ के पर्व के साथ ही जहां हिंदू पंचांग के साथ ही नूतन वर्ष की शुरूआत होती है, वहीं आज से ही मां भगवती के नौ रूपों की पूजा हेतु नवरात्रि पर्व का भी प्रारंभ होता है. यहां हम बात करेंगे गुड़ी पड़वा की, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘विजय पताका’. इस दिन एक ओर शालिवाहन नामक कुम्हार के पुत्र ने मिट्टी के सैनिक का निर्माण कर उनमें सिद्ध-मंत्र फूंक कर जीवित किया और दुश्मनों पर विजय प्राप्त की थी. वहीं मान्यता यह भी है कि सतयुग में वनवासकाल भोगते हुए श्रीराम एवं लक्ष्मण जब रावण द्वारा अपह्रत सीता जी को तलाशते हुए किष्किंधा पर्वत से गुजर रहे थे, तो वहीं पर उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई. सुग्रीव ने जब बड़े भाई महाराजा बालि द्वारा प्रजा को आतंकित की खबर श्रीराम को दी तो श्रीराम ने सुग्रीव की सेना एवं हनुमान की सहायता से बालि का वध कर प्रजा को तमाम संकटों से मुक्ति दिलाई. संयोग बालि का वध श्रीराम ने इसी दिन यानी चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन किया था.
कैसे मनाते हैं यह विजय पर्व
इस तरह चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा के दिन एक नहीं दो दो विजय दिवस मनाया जाता है और इसी खुशी में घरों पर विजय पताका फहराई जाती है. उसे नए वस्त्र, आभूषण आदि से सजाया जाता है. गुड़ी पड़वा के दिन नवदुर्गा, श्रीरामचन्द्र जी एवं हनुमान जी को पूरनपोली और श्रीखंड का नैवेद्य अर्पित किया जाता है और उनकी विधिपूर्वक पूजा की जाती है. यह पर्व मुख्यतया महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश आदि दक्षिण भारतीय राज्यों में सेलीब्रेट किया जाता है.
क्या है कथा श्रीराम के विजय की
गुड़ी पड़वा के इतिहास से जुड़ी दो पौराणिक कथाएं हैं. पहली कथा के अनुसार जब माता सीता के अपहरण के पश्चात उनकी तलाश में जंगल-जंगल भटक रहे थे एक ऊंची पहाड़ी की चोटी पर बैठे सुग्रीव और हनुमान की नजर धनुष-वाण लिये श्रीराम लक्ष्मण पर पड़ी. वानर राज महाबलशाली बालि के छोटे भाई सुग्रीव ने सोचा कि उसके दुष्ट भाई ने उनका वध करने के लिए इन दो योद्धाओं को भेजा है. सुग्रीव ने हनुमान से कहा तुम ब्राह्मण का वेश बनाकर उन दो योद्धाओं के पास जाओ और पूछो कि वे यहां क्यों आ रहे हैं. अगर तुम्हें कोई संदेह लगे तो मुझे संकेत देना मैं यह स्थान छोड़कर कहीं और चला जाऊंगा. तब हनुमान तपस्वी ब्राह्मण का वेश बनाकर श्रीराम लक्ष्मण के पास पहुंचकर कहते हैं, प्रभो आप दोनों किसी बड़े नगर के राजकुमार लगते हैं. आपके पैर अत्यंत कोमल हैं, आप इस जंगल में क्यों भटक रहे हैं.
हनुमान के प्रश्न पर श्रीराम ने उन्हें अयोध्या के राजकुमार का परिचय देते हुए सारी बात बताई और कहा कि वे सीता जी की खोज पर निकले हैं. अति बलशाली कहे जाने हनुमान ने उन्हें पहचान लिया कि वे और कोई नहीं श्रीराम के रूप में साक्षात नारायण हैं. वे श्रीराम के सामने साष्टांग दंडवत करते हुए लेट गये और बताया कि मेरा जन्म आपके लिए ही हुआ है. इसके बाद उन्होंने सुग्रीव को श्रीराम एवं लक्ष्मण से मिलवाया. कहते हैं सुग्रीव ने जब अपने बड़े भ्राता बालि का परिचय देते हुए कहा कि जनता उनकी प्रताड़ना से परेशान है. तब श्रीराम ने बालि का वध कर सुग्रीव का राजतिलक किया. इसके बाद से ही हनुमान श्रीराम का सेवक बनकर उनसे साथ हर पल रहने लगे थे. मान्यता है कि उसी दिन से विजय पताका फहराकर लोग गुड़ी पड़वा का पर्व मनाते आ रहे हैं.
अन्य कथा
मान्यता है कि शालिवाहन ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही शक को पराजित किया था. इसी दिन से शालिवाहन कालगणना का प्रारंभ हुआ, जो शालिवाहन शक के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि शालिवाहन नामक कुम्हार ने मिट्टी की सेना बनाकर शत्रुओं को हराया, तो उसके उपलक्ष्य में ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा मनाया जाने लगा. इसी दिन से शालिवाहन संवत या शक का प्रारंभ हुआ.