Happy Ambedkar Jayanti 2020: श्रेष्ठ संविधान रचयिता एवं महान अर्थशास्त्री ही नहीं, दूरदर्शी भी थे बाबा साहब! जानें उनके जीवनकाल के रोचक प्रसंग, जिसने उन्हें बनाया जननायक

कानून मंत्री रहते हुए चीन की कूटनीतिक गतिविधियों और पंचशील तथा तिब्बत नीतियों का विरोध करते हुए को देखते हुए डॉ. अंबेडकर ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को चेताया था कि वे चीन से सावधान रहें.

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर (File Image)

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने ताउम्र छुआछूत और सामाजिक द्वेष जैसी बुराइयों के खिलाफ जंग लड़ी हो, लेकिन उनकी हर मंशा के पीछे देशहित की भावना अवश्य रहती थी. वे जातिवाद प्रथा के धुरविरोधी इसलिए थे कि वे हर व्यक्ति को समान न्याय और संपूर्ण अधिकार दिलाना चाहते थे. बाबा साहब दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संविधान रचयिता और महान अर्थशास्त्री तो थे ही साथ ही बेहद बुद्धिमान और दूरगामी सोचवाले सच्चे भी इंसान थे. उन्हें जो चीज पसंद नहीं आती, उसका वे किसी भी कीमत पर समर्थन नहीं करते थे, यही वजह थी कि वे कांग्रेसी होकर कभी कांग्रेसियों के करीबी नहीं पहुंच सके.

आज बाबा साहब अंबेडकर की 129वीं पुण्य-तिथि (14 अप्रैल 1891) पर उनके कुछ अविस्मरणीय पहलुओं का जिक्र करेंगे, जिसकी वजह से आम भारतीय उन्हें सच्चा जननायक मानती है.

अनुच्छेद 370 को स्वीकारने से इंकार

इसमें संदेह नहीं कि संविधान निर्माता के रूप में भीमराव अंबेडकर ने देशहित को ध्यान में रखकर संविधान का निर्माण किया. लेकिन कुछ मुद्दों पर पंडित नेहरू से उनकी नहीं बनी तो उन्होंने हाथ वापस खींच लिया. ऐसा ही एक मुद्दा था अनुच्छेद 370. कहा जाता है कि जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देनेवाले शेख अब्दुला के मसौदे के अनुरूप तैयार किये अनुच्छेद 370 को डॉ अंबेडकर ने सिरे से खारिज करते हुए शेख अब्दुला को कड़ा पत्र लिखा था, -‘आप चाहते हैं कि भारत जम्‍मू-कश्‍मीर की सीमा की रक्षा करे, वहां की सड़कों का निर्माण करे, भारत से अनाज एवं आवश्यक वस्तुओं की सप्‍लाई करे, कश्‍मीर को भारत के समान अधिकार मिले, लेकिन कश्‍मीर में भारत को सीमित अधिकार मिले, तो ऐसा प्रस्‍ताव भारत के साथ विश्‍वासघात होगा. एक कानून मंत्री होने के नाते मैं कतई स्‍वीकार नहीं करूंगा.’ डॉ अंबेडकर के इंकार करने के बाद कहा जाता है कि शेख अब्दुला ने पं. नेहरू की सहमति से अनुच्छेद 370 का मसौदा कश्मीर के पूर्व प्रधानमंत्री रहे गोपालस्वामी अयंगर से तैयार करवाया. और नेहरू ने अपने पॉवर का इस्तेमाल करते हुए तत्कालीन गृहमंत्री सरदार पटेल के विरोध के बावजूद संविधान में शामिल करवाया था. जिसकी इतिश्री 5 अगस्त 2019 को हुई.

समानता सम्मान, जब मिला ‘अंबेडकर’ उपनाम

डॉ. भीमराव सपकाल ने सामाजिक न्याय के तहत दलित वर्ग को उच्चवर्ग के समकक्ष लाने के लिए ताउम्र संघर्ष किया. लेकिन कम लोगों को ज्ञात होगा कि दलित होने के नाते जब भीमराव को स्कूल में प्रवेश नहीं मिल पा रहा था, तब एक ब्राह्मण शिक्षक महादेव अंबेडकर भीमराव के समानता के विचारों से प्रभावित होकर उन्हें अपना कुलनाम अंबेडकर दे दिया. यही नहीं बाबा साहब आंबेडकर की दूसरी पत्नी सविता अम्बेडकर सारस्वत ब्राह्मण थीं. जीवन के उत्तरार्ध में एक ब्राह्मण महिला के साथ एक पति के रूप में जीवन-यापन करने से यह स्पष्ट होता है कि बाबा साहब ब्राह्मण-विरोधी नहीं थे. वे ताउम्र देश एवं सांस्कृतिक एकता के पक्षधर थे.

 

हिंदू विरोधी नहीं थे

लोकसभा का चुनाव हारने के बाद बाबा साहब अंबेडकर को कांग्रेस के बजाय जनसंघ के सहयोग से राज्य सभा की सदस्यता प्राप्त हुई थी. जनसंघ के साथ उनका रिश्ता पुराना था. यही वजह थी कि डॉ. अम्बेडकर ने वीर सावरकर की जाति व्यवस्था को ख़त्म करने की मुहिम में कंधे से कंधा मिलाकर उन्हें पूरा समर्थन दिया. वह ब्राह्मणों और सवर्णों के संगठन के रूप में बदनाम किए जाने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदुत्व के खिलाफ कभी नहीं थे. वह अक्सर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं और शिविरों का भ्रमण करते थे.

दूरदृष्टा थे अंबेडकर

अनुच्छेद 370 लागू होने के बाद डॉ अंबेडकर ने विरोध स्वरूप कहा था कि भारत विरोधी यह अनुच्छेद ज्यादा दिनों तक स्वीकार्य नहीं किया जायेगा. अंततः पिछले वर्ष उनकी यह बात सत्य साबित हुई. कानून मंत्री रहते हुए चीन की कूटनीतिक गतिविधियों और पंचशील तथा तिब्बत नीतियों का विरोध करते हुए को देखते हुए डॉ. अंबेडकर ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को चेताया था कि वे चीन से सावधान रहें. वह कभी भी पीठ के पीछे से वॉर कर सकता है. अंततः उनकी यह बात भी सच साबित हुई.

 नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को केवल सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं.  ये लेखक के विचार है. 

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