Guru Nanak Jayanti 2019: गुरु नानक देव जी ने शुरू की थी लंगर की परंपरा, गुरुद्वारे में कोई भी त्योहार इसके बिना नहीं होता है संपन्न, जानें महत्व

सिखों के पहले गुरु नानक देव जी ने करीब 15वीं शताब्दी में लंगर की शुरुआत की थी. गुरु नानक जी जहां भी गए, वहां जमीन पर ही बैठकर भोजन करते थे. ऊंच-नीच, जात-पात और अंधविश्वास को खत्म करने के मकसद से ही उन्होंने लंगर की परंपरा शुरू की थी, ताकि सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन कर सकें.

गुरु नानक जयंती 2019 (Photo Credits: File Photo)

Guru Nanak Jayanti 2019: कार्तिक महीने की पूर्णिमा (Kartik Purnima) हिंदू धर्म के लोगों के साथ-साथ सिख धर्म के लोगों के लिए भी काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी (Guru Nanak Dev Ji) का जन्म हुआ था. इस खास दिवस को सिख धर्म के लोग गुरु नानक जयंती,  गुरुपुरब, गुरु पर्व और प्रकाश पर्व के रूप में मनाते हैं. गुरु नानक देव जी का जन्म संवत् 1526 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था, जबकि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार, उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को पंजाब के तलवंडी में हुआ था जो अब पाकिस्तान में स्थित है. उनके जन्म स्थान को ननकाना साहिब (Nankana Sahib) के नाम से भी जाना जाता है. गुरुनानक देव जी ने हमेशा अपने प्रवचनों में जातिवाद, भेदभाव मिटाने, सत्य की राह पर चलने और सभी का आदर-सम्मान करने जैसे कई अनमोल उपदेश दिए हैं.

इस साल 12 नवंबर 2019 को गुरु नानक देव जी की 550वीं जयंती मनाई जा रही है. हालांकि 15 दिन पहले से ही गुरु पर्व का उत्सव शुरू हो जाता है. इस दौरान प्रभात फेरी निकाली जाती है और घर-घर जाकर शब्द कीर्तन किया जाता है. सिख धर्म में किसी भी उत्सव को मनाते समय लंगर का आयोजन किया जाता है. लंगर के बिना गुरुद्वारे में मनाए जाने वाले त्योहार संपन्न नहीं हो पाते हैं. यह भी पढें: Guru Nanak Jayanti 2019: गुरु नानक जयंती कब है? जानिए 550वें प्रकाश पर्व की शुभ तिथि और इसका महत्व

गुरु नानक देव जी की थी लंगर की शुरुआत

सिखों के पहले गुरु नानक देव जी ने करीब 15वीं शताब्दी में लंगर की शुरुआत की थी. गुरु नानक जी जहां भी गए, वहां जमीन पर ही बैठकर भोजन करते थे. ऊंच-नीच, जात-पात और अंधविश्वास को खत्म करने के मकसद से ही उन्होंने लंगर की परंपरा शुरू की थी, ताकि सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन कर सकें. गुरु नानक देव जी द्वारा शुरु की गई इस परंपरा को सिखों के तीसरे गुरु अमरदास जी ने आगे बढ़ाया, जो अब तक बरकरार है.

लंगर के बिना अधूरा होता है हर उत्सव 

देशभर के किसी भी गुरुद्वारे में अगर कोई उत्सव मनाया जाता है तो लंगर का आयोजन किया जाता है, क्योंकि लंगर के बिना कोई भी उत्सव संपन्न नहीं होता है. लंगर में विभिन्न जाति-धर्म के लोग, छोटे-बड़े, ऊंच-नीच का भेदभाव भूलाकर सभी एक ही स्थान पर बैठकर भोजन करते हैं. दुनिया के जिस भी कोने में सिख धर्म के लोग रहते हैं, वे लंगर की प्रथा का पालन करते हैं. सिख धर्म में खुशी के मौके, त्योहार, मेले और गुरु पर्व जैसे खास अवसरों पर लंगर का आयोजन किया जाता है. गुरुद्वारों में नियमित रूप से लंगर का आयोजन होता है. यह भी पढ़ें: Guru Nanak Jayanti 2019: गुरु नानक देव की 550वीं जयंती 12 नवंबर को, जानिए सिखों के पहले गुरु के जीवन से जुड़ी 10 रोचक बातें

स्वर्ण मंदिर में होता है सबसे बड़ा लंगर

पंजाब के अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर यानी गोल्डन टेंपल में दुनिया का सबसे बड़ा लंगर आयोजित किया जाता है. यहां आनेवाले हजारों श्रद्धालुओं के लिए रोज खाना बनाया जाता है. यहां अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, ऊंच-नीच का कोई भेदभाव नहीं है और सभी मिलकर एक साथ लंगर में भोजन करते हैं. किसी खास मौके या उत्सव के दौरान यहां के किचन में 2 लाख रोटियां बनती हैं. लंगर के लिए भोजन तैयार करनेवाले स्वयंसेवकों में खास तौर पर महिलाओं की भूमिका काफी सराहनीय रहती है.

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