Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti 2021: महान शूरवीर योद्धा थे छत्रपति शिवाजी महाराज, जानें उनकी शौर्य गाथाएं
हमारे छत्रपति शिवाजी महाराज ऐसे ही महान शूरवीर योद्धा थे, जिनसे मुगल साम्राज्य थर-थर कांपता था. उनकी वीरता और त्याग की तमाम कहानियों से हमारा इतिहास भरा-पड़ा है. आज शिवाजी की 394वीं जयंती पर उनकी शौर्य गाथाओं के प्रमुख संकलन लेकर आये हैं.
Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti 2021: भारत भूमि आदिकाल से शूरवीरों की जननी रही है. इस धरती की माएं अपने बच्चों को इन्हीं वीरों की शौर्य गाथाएं सुनाकर उन्हें भी उन जैसा बहादुर बनने की प्रेरणा देती रही हैं. हमारे छत्रपति शिवाजी महाराज (Chhatrapati Shivaji Maharaj) ऐसे ही महान शूरवीर योद्धा थे, जिनसे मुगल साम्राज्य थर-थर कांपता था. उनकी वीरता और त्याग की तमाम कहानियों से हमारा इतिहास भरा-पड़ा है. आज शिवाजी की 394वीं जयंती (Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti) पर उनकी शौर्य गाथाओं के प्रमुख संकलन लेकर आये हैं.
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को जुन्नार शहर के समीप शिवनेरी के किले में हुआ था. पिता शाहजी भोसले को पुणे के नजदीक एक छोटी-सी जागीर मिली थी, चूंकि पिता का ज्यादा समय बीजापुर में बीतता था, इसलिए शिवाजी अपनी मां जीजामाता के साथ पुणे में रहते थे. बाल्याकाल से ही जीजा माता ने शिवाजी को एक सर्वशक्तिशाली योद्धा के तौर पर गढ़ा.
किशोरावस्था में ही राजनीति में रुचि
शिवाजी किशोरावस्था में ही राज-व्यवस्था और नेतृत्व में रुचि लेने लगे थे. महल के बाहर सेना और जनता के बीच समय बिताना उन्हें अच्छा लगता था. राजनीतिक कार्यों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे. उन्होंने शिवनेरी किले के आस-पास दूर तक फैले सह्याद्री पर्वत का अच्छी तरह से मुआयना कर लिया था. युद्ध की स्थिति में मुगल सैनिकों पर टूट पड़ना और हालात बिगड़ने पर बच निकलने की कला को उसी समय ग्राह्य कर लिया था.
मुगलों पर हमलों की शुरुआत
15 साल की उम्र में शिवाजी ने थोड़े सैनिक एकत्र कर अपना गुट बना लिया. 1645 में उन्होंने इसी गुट के साथ चकण, कोंकण, तोरण, सिंहगढ़ और पुरंदर सहित पुणे के आसपास के कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया. शिवाजी के बढ़ते कद ने आदिल शाह की नींद खराब कर दी. शिवाजी को गिरफ्तार करने में विफल होने पर उसने 1648 शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार कर लिया. पिता को जेल से छुड़ाने के लिए शिवाजी ने सभी क्षेत्र वापस लौटा दिये. साल 1655 में शाह जी की मृत्यु हो गयी.
अफजल खान को उसी के चक्रव्यूह में फंसाना!
पिताजी की मृत्यु के बाद शिवाजी पुनः अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ जाबेरी घाटी पर कब्जा कर लिया. शिवाजी की गतिविधियों से परेशान होकर आदिलशाह ने अपने शक्तिशाली सेनापति अफजल खान को शिवाजी का कत्ल करने के लिए भेजा. अफजल खान शिवाजी की बुद्धिमत्ता और शौर्य से परिचित था. उसने शिवाजी को खाली हाथ मिलने के बहाने बुलाया. गले मिलने के बहाने उसने शिवाजी पर खंजर से हमला कर दिया. शिवाजी को इस हमले का शक था, इसलिए उन्होंने सुरक्षा कवच पहन रखा था. जैसे ही अफजल ने उन पर हमला किया, शिवाजी ने पलटवार करते हुए उसे बुरी तरह घायल कर दिया. लेकिन कुछ विश्वस्त सैनिकों के कारण अफजल खान बच गया. यह भी पढ़ें: Shivaji Jayanti Wishes 2021: शिवाजी जयंती पर ये WhatsApp Stickers, GIF Greetings, Photo SMS भेजकर दें बधाई
जीत-दर-जीत का सिलसिला
अफजल खान को परास्त करने के बाद शिवाजी का मनोबल काफी बढ़ चुका था. उन्होंने सेना के साथ बीजापुर पर हमला कर दिया. अपनी छोटी-सी सैन्य टुकड़ी के सहारे शिवाजी ने 3 हजार मुगल सैनिकों को धूल चटाते हुए प्रतापगढ़ पर अपना ध्वज फहराया. आदिलशाह ने शिवाजी को कैद करने के लिए एक बड़ी सेना के साथ रुस्तम जामन को भेजा. लेकिन शिवाजी के सामने वह टिक नहीं सका. रुस्तम जामन को जान बचाकर भागना पड़ा. इसके बाद जब भी आदिल शाह ने शिवाजी के खिलाफ युद्ध छेड़ा, उसे हार का सामना करना पड़ा.
सूरत पर कब्जा
शिवाजी के बढ़ते दायरे पर औरंगजेब की भी नजरें थी. उसने सोचा शिवाजी की विस्तारवादी नीति कहीं उसके रास्ते का पत्थर न बन जाये. लेकिन इसके पहले कि वह कुछ करता शिवाजी ने अहमदनगर और जुन्नार के करीब स्थित मुगल सरजमीन पर हमला कर वहां का खजाना लूट लिया. औरंगजेब ने डेक्कन के शासक अपने मामा शाइस्ता खान को एक विशाल सेना के साथ शिवाजी पर हमला करने का आदेश दिया. शाइस्ता खान ने हजारों सैनिकों के बल पर शिवाजी के कई किलों पर कब्जा कर लिया. शाइस्ता खान की गिरफ्त में आने से बचते हुए, शिवाजी ने मुगलों के महत्वपूर्ण क्षेत्र सूरत पर कब्जा कर लिया. चूंकि पश्चिम भारत का ज्यादातर व्यापार सूरत से होता था, इसलिए यह मुगलों की बड़ी हार थी. इस पर झुंझलाकर औरंगजेब ने डेढ़ लाख सैनिकों के साथ सेनापति जयसिंह प्रथम को शिवाजी पर हमला करने के लिए भेजा. शिवाजी की छोटी सी सैन्य टुकड़ी जयसिंह की विशाल सेना से टकरा नहीं सकती थी. वे वहां से बच तो निकले, लेकिन अपने सैनिकों की निरंतर बदतर होते हालात को देखते हुए उन्होंने जय सिंह प्रथम से संधि कर ली. संधि में शिवाजी को 23 किलो सोना सहित चार लाख रूपये जुर्माना स्वरूप देना पड़ा.
औरंगजेब के षड़यंत्र से बच निकलना
औरंगजेब समझ गया था कि शिवाजी की सेना और उनका नेतृत्व जबरदस्त है. उसने अफगानिस्तान में चल रहे युद्ध में शिवाजी को भेजने के इरादे से आगरे बुलवाया. शिवाजी के साथ उनका 8 वर्षीय बेटा संभाजी भी गया था. लेकिन औरंगजेब की बदमिजाजी शिवाजी से बर्दाश्त नहीं हुई. उन्होंने औरंगजेब की आज्ञा मानने से मना कर दिया. क्रुद्ध होकर औरंगजेब ने शिवाजी को उनके बेटे सहित नजरबंद करवा दिया. लेकिन 17 अगस्त 1666 को शिवाजी अपनी बुद्धिमत्ता और पराक्रम से संभाजी के साथ आगरा से भाग निकले. 4 साल की खामोशी के दरम्यान शिवाजी अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाते रहे. 1670 में उन्होंने मुगलों के खिलाफ श्रृंखलाबद्ध हमले कर अपने हारे हुए लगभग सभी साम्राज्यों पर पुनः कब्जा कर लिया.
हिंदु सम्राट बनना
अब शिवाजी एक राजा के रूप में स्थापित होकर अपना साम्राज्य बढ़ाना चाहते थे. 6 जून 1674 को शिवाजी मराठा साम्राज्य के मुखिया बने. कहते हैं कि रायगढ़ में उनके राजतिलक के समय लगभग 50 हजार लोग एकत्र हुए थे. राजा बनने के बाद शिवाजी ने नीतिगत युद्ध लड़ते हुए खण्डेश, बीजापुर, कारवाड़, कोल्कापुर, जंजीरा, रामनगर और बेलगांव को अपने साम्राज्य में मिलाया. उन्होंने आदिलशाही शासकों द्वारा अधिग्रहित वेल्लोर और गिंजी के किलों पर भी कब्जा कर लिया. जीते हुए सभी क्षेत्रों को शिवाजी ने हिन्दू राष्ट्र की संप्रभुत्व का दर्जा दिया.
एक सिंह का अवसान होना
मुगल शासकों से लेकर अंग्रेजों तक में शिवाजी की दहशत फैल चुकी थी. युद्ध भूमि में शिवाजी को हराना अब आसान नहीं था. सब कुछ ठीक-ठाक से चल रहा था. एक दिन अचानक शिवाजी की तबियत खराब हो गई. निरंतर पेचिश के चलते 3 अप्रैल 1670 को मात्र 52 साल की उम्र में दुश्मनों को अपनी गरज से हिला देने वाला यह सिंह सदा के लिए खामोश हो गया.