Ashura 2019: मुहर्रम की 10 तारीख को इन WhatsApp मैसेजेस को भेजकर करें इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद
मुहर्रम महीने के दसवें दिन यानी 10 तारीख को यौम-ए-आशुरा कहा जाता है. अरबी में आशुरा का अर्थ दसवां दिन होता है. शिया मुसलमान मुहर्रम के पहले दिन से दसवें दिन तक पैगंबर मोहम्मद के पोते इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत पर शोक जताते हैं. यौम-ए-आशुरा के दिन काले कपड़े पहनकर इस समुदाय के लोग जुलूस निकालते हैं और मातम मनाते हैं.
Youm-e-Ashura: मुहर्रम (Muharram) को इस्लामिक कैलेंडर 'हिजरी' (Hijri Calendar) का पहला महीना माना जाता है. यह महीना इस्लाम धर्म के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, लेकिन इस महीने को खुशियों के तौर पर नहीं, बल्कि मातम के रूप में मनाया जाता है. मुहर्रम को पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन (Imam Hussain) की शहादत की याद में मनाया जाता है. मुहर्रम एक ऐसा महीना है जिसमें शिया मुस्लिम (Shia Muslims) 10 दिन तक इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं. मुहर्रम महीने के दसवें दिन यानी 10 तारीख को यौम-ए-आशुरा (Youm-e-Ashura) कहा जाता है. अरबी में आशुरा का अर्थ दसवां दिन होता है. शिया मुसलमान मुहर्रम के पहले दिन से दसवें दिन तक पैगंबर मोहम्मद के पोते इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत पर शोक जताते हैं. यौम-ए-आशुरा के दिन काले कपड़े पहनकर इस समुदाय के लोग जुलूस निकालते हैं और मातम मनाते हैं.
मोहर्रम त्योहार नहीं, बल्कि मातम मनाने और इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का दिन है. ऐसे में इन मैसेजेस के जरिए आप कर्बला में शहीद हुए इमाम हुसैन और उनके परिवार की शहादत को याद कर सकते हैं.
1- कत्ल-ए-हुसैन, असल में मर्ग-ए-यजीद है,
इस्लाम जिंदा होता है हर कर्बला के बाद. यह भी पढ़ें: Ashura 2019: मुहर्रम के 10वें दिन को कहा जाता है यौम-ए-आशुरा, जानिए इस दिन का महत्व और इसका इतिहास
2- फिर कर्बला के बाद दिखाई नहीं दिया,
ऐसा कोई भी शख्स कि प्यासा कहें जिसे.
3- आज फिर हक के लिए जान निसार करे कोई,
वफा भी झूम उठे, यूं वफा करें कोई,
नमाज 1400 सालों से इंतजार में है,
हुसैन की तरह मुझे भी अदा करे कोई.
4- कर्बला को अपने शहंशाह पर नाज है,
अपने नवासे पर मुहम्मद (SAW) को नाज है,
यूं तो लाखों सिर झुके सजदे में,
लेकिन हुसैन के उस सजदे पर सभी को नाज है. यह भी पढ़ें: Islamic New Year 2019: इस्लामिक न्यू ईयर की कब से हो रही है शुरुआत, जानें मुस्लिम समुदाय के लिए कितना खास है मुहर्रम का महीना
5- करीब अल्लाह के आओ तो कोई बात बने,
ईमान फिर से जगाओ तो कोई बात बने,
लहू जो बह गया कर्बला में,
उनके मकसद को समझो तो कोई बात बने.
इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार, आशुरा यानी मुहर्रम के 01वें दिन ही हजरत इमाम हुसैन, उनके बेटे, घरवालों और साथियों को कर्बला के मैदान में शहीद कर दिया गया था. कर्बला एक छोटा सा कस्बा है जो इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में स्थित है. हिजरी कैलेंडर के पहले महीने मुहर्रम की 10 तारीख को इमाम हुसैन और उनके परिवार का उस समय के खलीफा यजीद बिन मुआविया के आदमियों ने कत्ल कर दिया था.