Amla Navami 2020: श्रीहरि एवं शिव जी के इस प्रिय फल में है ज्ञान-विज्ञान एवं तमाम दिव्य गुण!
प्रतिकात्मक तस्वीर

कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की 9वीं तिथि के दिन प्राकृतिक पर्व के रूप में आंवला नवमी मनाया जाता है. इसे ही ‘अक्षय नवमी’ भी कहते हैं. इस दिन आंवले के पेड़ की पारंपरिक ढंग से पूजा-अर्चना की जाती है, एवं भगवान विष्णु को आंवले का प्रसाद चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने और इसके नीचे बैठकर खाना बनाने और खाने से तमाम रोगों का नाश होता है और पुत्र की चाहत रखनेवाली माँ की मनोकामना पूरी होती है. आंवले में, तमाम तरह के औषधीय एवं चमत्कारिक गुण होते हैं. वस्तुतः यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का पर्व भी माना जाता है.

विभिन्न पुराणों में वर्णित है कि एक बार जब पूरी पृथ्वी जल-प्रलय में डूब चुकी थी. कहीं भी जिंदगी का नामोनिशान तक नहीं था. प्रकृति के निर्माता ब्रह्मा कमल-पुष्प पर विराजमान हो कड़ी तपस्या में लीन थे. ईश्वर प्रेम अथवा जल-प्रलय में डूबी पृथ्वी की दुर्दशा देखकर ब्रह्मा जी की आंखों से दो बूंद आंसू टपक कर नीचे जा गिरा. यह आंसू पृथ्वी के संसर्ग में आते ही आंवले के पेड़ में प्रस्फुटित होकर लोगों को आंवला जैसा दिव्य एवं औषधीय गुणों से युक्त फल प्रदान किया. इस तरह आंवले के पेड़ का दिव्योदय हुआ.

श्रीहरि का प्रिय फल है आंवला:

आंवला के संदर्भ में पद्म पुराण में भी उल्लेखित है कि यह पवित्र फल आंवला श्रीहरि को शीघ्र प्रसन्न करने वाला अत्यंत शुभ एवं लाभकारी फल है. मान्यता है कि किसी भी रूप में आंवले का सेवन करने से जहां इंसान के सारे पाप नष्ट होते हैं वहीं इंसान की उम्र बढ़ाने में भी अहम साबित होते है. ऐसा कहा जाता है कि आंवला के रस को जल में मिलाकर स्नान करने से इंसान की दरिद्रता दूर होती है, उसे सुख एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है. आंवले का स्पर्श, उसे देखना एवं उसके नाम का उच्चारण करने मात्र से श्रीहरि उस भक्त पर प्रसन्न होकर उसे मनोवांछित फल देते हैं. कहते हैं कि जहां भी आंवले का पेड़ होता है, वहां पर श्रीहरि वास करते हैं, इसलिए अगर आंवले के पेड़ के नीचे गंदगी हो तो उसकी तुरंत सफाई करनी चाहिए. हिंदू धर्म में हर घर में आंवले का एक पेड़ अवश्य लगाना चाहिए, इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है, और पूरे साल लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है.

आंवला औषधीय गुणों से भरपूर:

सनातन धर्म शास्त्रों में कई वृक्षों को देव एवं देवी के समान पूजने की परंपरा है. विशेष रूप से वे वृक्ष, पेड़ या पौधे, जिसमें प्रचुर मात्रा में औषधीय तत्व निहित होते हैं. विशेष तिथियों में इन्हें पूजने की पुरानी परंपरा है. आंवला नवमी भी इसी परंपरा का एक हिस्सा कहा जा सकता है. आयुर्वेद विज्ञान के अनुसार आंवला प्रकृति प्रदत्त एक ऐसा तोहफा है, जो भांति-भांति के रोगों को नष्ट करने की सामर्थ्य रखता है. आयुर्वेदिक चिकित्सकों के अनुसार आंवला फल में आयरन एवं विटामिन-सी प्रचुर मात्रा में होता है. आंवले का जूस नियमित रूप से पीने से पाचन शक्ति मेंटेन रहती है, आंवले का मुरब्बा खाने दिमाग तेज होता है, त्वचा स्निग्ध एवं चमकीली बनती है, तथा त्वचा में किसी भी तरह के रोग की संभावना नहीं के बराबर होती है. आंवला नवमी की परंपरा शुरू करने के पीछे भी यही अवधारणा मानी जाती है.

कार्तिक माह में आंवले का महात्म्य:

वैज्ञानिकों का मानना है कि कार्तिक मास में आंवले के गुण चरम पर होते हैं. इन दिनों आंवले के पेड़ से अपेक्षाकृत ज्यादा ऊर्जा निकलती है. आंवले के पेड़ की छावं में एंटीवायरस गुण होते हैं, जिसके सेवन से हर तरह की बीमारियों से मुक्ति मिलती है.

आंवले के पेड़ की छांव में बैठने या भोजन बनाकर खाने से जीवन शक्ति प्रस्फुटित होती है. आंवले के पेड़ की छाल से भी तमाम किस्म की बीमारियों से मुक्ति मिलती है.