Diwali 2018: 5 दिनों तक मनाया जाता है दिवाली का पर्व, जानें क्या है इसके हर एक दिन का महत्व?

पांच दिनों तक मनाए जाने वाले दिवाली के इस पर्व की शुरुआत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानी तेरहवें दिन धनतेरस के साथ होती है. धनतेरस के बाद नरक चतुर्दशी, लक्ष्मीपूजन, बलि प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा) और भाईदूज का पर्व मनाया जाता है.

दिवाली 2018 (Photo Credits: Facebook)

Diwali 2018: दिवाली पांच त्योहारों का एक अनूठा संगम है, जिसे पांच दिनों तक बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. हिंदू धर्म के पंचांग के अनुसार, बड़ी दिवाली यानी लक्ष्मीपूजन का पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है. यह पर्व अंधकार पर प्रकाश की जीत का पर्व है. पांच दिनों तक मनाए जाने वाले दिवाली के इस पर्व की शुरुआत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानी तेरहवें दिन धनतेरस के साथ होती है. धनतेरस के बाद नरक चतुर्दशी, लक्ष्मीपूजन, बलि प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा) और भाईदूज का पर्व मनाया जाता है.

दिवाली के पांच दिनों में मनाए जाने वाले हर पर्व का अपना एक अलग महत्व बताया जाता है. अब जब दिवाली बेहद करीब है तो चलिए जानते हैं पांच दिनों की इस दिवाली के हर एक दिन का महत्व.

1- धनतेरस

दिवाली उत्सव के पहले दिन यानी त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. इस दिन सोने-चांदी के आभूषण, नए बर्तन खरीदे जाते हैं. इस दिन भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है, इन्हें आयुर्वेद के देवता व देवताओं का चिकित्सक माना जाता है. धनतेरस की संध्या पर मृत्यु के देवता यम का पूजन भी किया जाता है, इसलिए इस दिन को यमदीप दान के रूप में भी जाना जाता है. मान्यता है कि इससे असमय मृत्यु का डर दूर भागता है. इस दिन धन के देवता कुबेर और धन की देवी लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है. यह भी पढ़ें: Dhanteras 2018: धनतेरस से पहले घर के इन कोनों की करेंगे सफाई तो नहीं होगी कभी धन की कमी

2- नरक चतुर्दशी

धनतेरस के दूसरे दिन नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है, जिसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है. इस दिन सुबह जल्दी उठने और सूर्योदय से पहले ही स्नान करने की परंपरा है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दैत्यराज नरकासुर प्रागज्योतीसपुर (नेपाल का एक दक्षिणी प्रांत) के शासक और देवराज इंद्र को हराने के बाद, देवताओं की माता अदिति के मनमोहक झुमके छीन लिए थे. नरकासुर ने देवताओं और संतों की सोलह हजार कन्याओं को भी कैद कर लिया था. कहा जाता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का संहार करके कैद से उन कन्याओं को मुक्त कराया था और अदिति के झुमके भी वापस उन्हें लौटा दिए थे. इस दिन महिलाओं ने शरीर की गंदगी को साफ करने के लिए सुगंधित तेल से शरीर की मालिश की थी और सुबह तड़के स्नान किया था. इसलिए इस दिन सुबह जल्दी स्नान करने की परंपरा है और यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी है.

 3- लक्ष्मीपूजन

 दिवाली पर्व का तीसरा दिन लक्ष्मीपूजन का होता है. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या का अंधेरी रात में लक्ष्मीपूजन की परंपरा है. अमावस्या होने के बावजूद इस दिन को बेहद शुभ माना जाता है. इस दिन दीयों की रोशनी से अमावस्या का अंधेरा गायब हो जाता है. मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और अपने भक्तों के घर जाकर धन-धान्य की वर्षा करती हैं. इस दिन माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है, दीये जलाए जाते हैं और मिठाईयां बांटकर एक-दूसरे को त्योहार की बधाई दी जाती है.

 पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन 14 साल के वनवास के बाद भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे थे. इस दिन से एक और दिलचस्प कहानी जुड़ी हुई है जिसके अनुसार, नचिकेत नाम का एक छोटा सा लड़का यह मानता था कि मृत्यु के देवता यम, अमावस्या की अंधेरी रात जैसे काले हैं. लेकिन जब उसकी मुलाकात यम से हुई तो उसने देखा कि यम का चेहरा बहुत शांत और उनका सम्मानजनक कद है, तो वो हैरत में पड़ गया. उसकी इस हैरानी को देखकर यम ने उसे समझाया कि मौत के अंधकार मय राह से गुजरने के बाद ही व्यक्ति को उच्चतम ज्ञान की रोशनी दिखाई देती है, जिसके बाद नचिकेत को सांसारिक जीवन और मृत्यु के महत्व का ज्ञान हुआ. तत्पश्चात उसने दिवाली के उत्सव में हिस्सा लिया. यह भी पढ़ें: Dhanteras 2018: धनतेरस पर क्यों की जाती है सोने की खरीददारी, जानें शुभ मुहूर्त और पूजन की आसान विधि

4- गोवर्धन पूजा (बलि प्रतिपदा)

 दिवाली पर्व का चौथा दिन बलि प्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है. इसे गोवर्धन पूजा के रूप में भी जाना जाता है. माना जाता है कि जब देवताओं के राजा इंद्र ने मूसलाधार बारिश की थी, तब गोकुल के लोगों की जान बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने पूरे गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठा लिया था. इसलिए इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है.

 5- भाईदूज

 गोवर्धन पूजा के बाद दिवाली का पांचवा दिन भाई-बहन के प्यार भरे रिश्ते को समर्पित होता है. भाईदूज भाईयों और बहनों के प्रेम का प्रतीक है. इस दिन बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर उनके लिए मंगल की कामना करती हैं तो वहीं भाई भी अपनी बहन को उपहार देकर आजीवन उसकी रक्षा करने का वचन देता है.

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