Christmas 2022: 25 दिसंबर को ही क्यों मनाया जाता है क्रिसमस? जानें इससे जुड़े विवाद एवं काल्पनिक क्रिसमस-ट्री की रोचक कथा!

क्रिसमस ईसाई समाज का प्रमुख पर्व है, जो प्रत्येक वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है. दीपावली और ईद की तरह क्रिसमस का पर्व भी बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय होता है और उनमें इस पर्व को लेकर काफी उत्साह देखा जाता है. क्योंकि उन्हें इस बात का विशेष इंतजार रहता है कि क्रिसमस के दिन सांता क्लॉस आकर ढेर सारे गिफ्ट देगा.

मेरी क्रिसमस एंड हैप्पी न्यू ईयर 2023 (Photo Credits: File Image)

क्रिसमस ईसाई समाज का प्रमुख पर्व है, जो प्रत्येक वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है. दीपावली और ईद की तरह क्रिसमस का पर्व भी बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय होता है और उनमें इस पर्व को लेकर काफी उत्साह देखा जाता है. क्योंकि उन्हें इस बात का विशेष इंतजार रहता है कि क्रिसमस के दिन सांता क्लॉस आकर ढेर सारे गिफ्ट देगा. यद्यपि ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाये तो क्रिसमस का यह पर्व प्रभु यीशु के जन्म के अवसर पर मनाया जाता है. आइये जानते हैं, शांति एवं शालीनता के प्रतीक इस पर्व के बारे में विस्तार से...

क्रिसमस की तारीख को लेकर विभिन्न धारणाएं?

सर्वविदित है कि हर 25 दिसंबर को क्रिसमस का पर्व मनाया जाता है, लेकिन यह सेलिब्रेशन 25 दिसंबर को ही क्यों होता है? इस संदर्भ में तमाम भ्रांतियां हैं. एक किंवदंती के अनुसार मदर मैरी को 25 मार्च को भविष्यवाणी हुई थी कि नौ माह के बाद 25 दिसंबर को प्रभु यीशु का जन्म उसकी कोख से होगा. तय समय पर बेतलेहेम स्थित चरनी में प्रभु यीशु का जन्म हुआ था. लेकिन तार्किक दृष्टि से इसे सच नहीं माना जा सकता, क्योंकि ग्रेगोरियन कैलेंडर जिसे क्रिसमस का आधार बताया जाता है, उस समय मौजूद नहीं था. उधर वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार बाइबिल में भी इस संदर्भ में कोई उल्लेख नहीं है. एक अन्य धारणा के अनुसार 336 ई पूर्व रोम के पहले ईसाई सम्राट के शासन काल में 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया गया था. इसके कुछ वर्षों के पश्चात पोप जुलियस ने आधिकारिक तौर पर जीसस क्राइस्ट का जन्म 25 दिसंबर को मनाने की घोषणा कर दी. इसके बाद से ही 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जा रहा है.

क्रिसमस सेलिब्रेशन

दुनिया भर में क्रिसमस का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. यह पर्व वास्तव में ईसाई धर्म के लोगों का है, लेकिन हर धर्म के लोग इस पर्व को उतने ही उल्लास और धूमधाम के साथ मनाते हैं. यह पर्व महज एक दिन नहीं बल्कि 12 दिनों तक चलता है. क्रिसमस से कई दिन पूर्व ईसाई समुदाय द्वारा कैरोल्स गाया जाता है. लोग चर्चों में प्रभु यीशु की जन्म कथा झांकियों के रूप में दिखाई जाती है. लोग अपने घरों के साथ-साथ क्रिसमस-ट्री सजाते हैं. ईसाई समाज सपरिवार चर्च जाते हैं, प्रार्थना करते हैं और एक दूसरे को उपहार देकर बधाई देते हैं. इस दिन घरों, मालों आदि में क्रिसमस ट्री की खूबसूरती देखते बनती है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सांता क्लॉज नामक काल्पनिक शख्स बच्चों को उपहार बांटता है.

कैसे जन्म हुआ क्रिसमस ट्री का

क्रिसमस-ट्री से जुड़ी एक कहानी 722 ईसवी की है. मान्यता है कि सर्वप्रथम क्रिसमस-ट्री को सजाने की परंपरा जर्मनी में शुरू हुई. जर्मनी के सेंट बोनिफेस को एक बार पता चला कि कुछ लोग एक विशाल ओक-ट्री के नीचे एक बच्चे की कुर्बानी देने जा रहे हैं. सेंट बोनिफेस ने बच्चे को बचाने के लिए ओक-ट्री को काट दिया. कहते हैं कि इसके बाद उसी ओक-ट्री की जड़ के पास एक फर-ट्री (सनोबर का पेड़) उग गया. लोग इस पेड़ को चमत्कारिक मानने लगे. सेंट बोनिफेस ने लोगों को बताया कि यह एक पवित्र दैवीय वृक्ष है, और इसकी टहनियां स्वर्ग की ओर इशारा करती हैं. इसके बाद से ही क्रिसमस के दिन प्रभु यीशु के जन्मदिन पर इस पवित्र वृक्ष को सजाने की परंपरा शुरू हुई.

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