Chanakya Niti: स्त्री जन्मजात झूठी, कपटी, मूर्ख, लोभी, अपवित्र और निर्दयी होती है! जानें चाणक्य ने ऐसा क्यों लिखा?

भारतीय समाज में स्त्री को ईश्वर तुल्य माना जाता है, जो अपनी कोख से इंसान को जन्म देती है. एक महिला ही घर को स्वर्ग बनाने की क्षमता रखती है, लेकिन अगर वह अपने पर आ जाए तो स्वर्ग समान घर को नर्क में भी बदल सकती है. वर्तमान में स्त्री पुरुष के साथ हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है.

Chanakya Niti (img: file photo)

भारतीय समाज में स्त्री को ईश्वर तुल्य माना जाता है, जो अपनी कोख से इंसान को जन्म देती है. एक महिला ही घर को स्वर्ग बनाने की क्षमता रखती है, लेकिन अगर वह अपने पर आ जाए तो स्वर्ग समान घर को नर्क में भी बदल सकती है. वर्तमान में स्त्री पुरुष के साथ हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है. लेकिन लगभग दो हजार साल से भी पूर्व आचार्य ने चाणक्य नीति में महिलाओं की कुछ ऐसी आदतों का भी उल्लेख किया है, जो स्त्री की एकदम नकारात्मक छबि को प्रस्तुत करती है. आइये जानते हैं आचार्य द्वारा अपने निम्न लिखित श्लोक के माध्यम से स्त्री की इतनी नकारात्मक छवि का उल्लेख क्यों किया गया है.

‘अनृतं साहसं माया मूर्खत्वमतिलोभिता।

अशौचत्वं निर्दयत्वं स्त्रीणां दोषाः स्वभावजाः ।॥1॥‘

उपरोक्त श्लोक आचार्य चाणक्य के दूसरे अध्याय के पहले खंड में उल्लेखित है. आचार्य ने स्त्रियों के स्वभाव पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि झूठ बोलना, साहस, छल-कपट, मूर्खता, अत्यन्त लोभ, अपवित्रता और निर्दयता-ये स्त्रियों के स्वाभाविक दोष हैं. अर्थात् स्त्रियों में यह प्रवृत्ति जन्म से ही होती है. वह अपने दुःसाहस में ऐसा कोई भी काम कर सकती है, जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता.

आचार्य ने अपने उपयुक्त श्लोक में स्त्री के स्वभाव का वर्णन किया है. यद्यपि आचार्य यह भी स्वीकारते हैं कि सृष्टि की रचना में नारी का अक्षुण्ण योगदान है, लेकिन जहां तक उसके स्वभाव का प्रश्न है, वहां स्त्री में ये दोष भी पाये जाते हैं. इसका अर्थ यह नहीं कि नारी बुद्धिमान् नहीं होती. आद्य शंकराचार्य ने प्रश्नोत्तरी में उल्लेख किया है कि 'द्वारं किमेकं नरकस्य नारी' अर्थात् नरक का मुख्य द्वार या एकमात्र द्वार के रूप में नारी को उद्धृत किया है. तुलसीदास ने भी कहा है कि 'नारि स्वभाव सत्य कवि कहहीं, अवगुण आठ सदा उर रहहीं.' इन आठ अवगुणों में इसी श्लोक में गिनाये नामों का अनुवाद किया है. साथ ही सामान्य नियम को विशेष नियम प्रभावित करते रहते हैं, क्योंकि स्त्री ममता, दया, क्षमा आदि का एकमात्र विकल्प है. इसके बिना सृष्टि पूरी हो ही नहीं सकती. अतः सीता, राधा, जीजाबाई, लक्ष्मीबाई आदि में अवगुण ढूंढ़ना अपनी अविवेकिता ही कही जाएगी. ये तो नारी के आदर्श हैं और आचार्य चाणक्य ने स्त्रियों के जिन दोषों की ऊपर चर्चा की है, वे स्वाभाविक वृत्तियां हैं, कोई जरूरी भी नहीं है कि उपयुक्त अवगुण सभी स्त्रियों में पाई जाएं.

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