जानें क्या है JPC, जिससे हिल जाती है सरकार की नींव, आखिर क्‍यों हो रही है राफेल पर इसकी मांग
राफेल पर JPC नहीं चाहती सरकार (Photo Credit-PTI)

पिछले काफी लंबे समय से देश में राफेल (Rafale) विवाद अपने चरम पर है. विपक्ष आए दिन केंद्र सरकार को कथित राफेल घोटाले के आरोप में घसीट रहा है. हालांकि मामले में अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अपना रुख साफ कर चुका है. शुक्रवार को राफेल विवाद की सुनवाई में SC ने मोदी सरकार को राहत देते हुए कहा कि राफेल डील में हमे कोई संदेह नहीं है. ऐसे में सरकार पर सवाल उठाना गलत है. कोर्ट ने कहा हमने सौदे की पूरी प्रक्रिया पढ़ी है. विमान की कीमत देखना हमारा काम नहीं है. इसके साथ ही कोर्ट ने सौदे को लेकर दायर की गई सभी जनहित याचिकाओं को खारिज कर दिया. केंद्र सरकार को भले ही SC से क्लीन चिट मिल चुकी है लेकिन विपक्ष इस मुद्दे को छोड़ने के लिए तैयार नहीं है.

कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष केंद्र सरकार से राफेल डील को लेकर जॉइंट पार्लियामेंट कमेटी (जेपीसी) के गठन की मांग कर रहा है. हालांकि, केंद्र सरकार इसके लिए राजी नहीं है. शुक्रवार देर शाम सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दोबारा जेपीसी के गठन की मांग की.  मामले में केंद्र सरकार दोनों सदनों में चर्चा के लिए तैयार है, लेकिन जेपीसी जांच के लिए नहीं. ऐसे में विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं कि आखिर मोदी सरकार जेपीसी का गठन क्यों नहीं करना चाहती?

क्या है जेपीसी जांच?  

जेपीसी (JPC) का मतलब Joint Parliamentary Committee (संयुक्‍त संसदीय समिति) होता है. इसमें संसद में विभिन्न पार्टियों के चुने हुए प्रतिनिधियों को उनके अनुपात के आधार पर सदस्‍य बनाया जाता है. इसमें दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं. जेपीसी का गठन सरकार बेहद गंभीर मामलों में ही करती है. जेपीसी में समिति ऐसे किसी भी व्यक्ति, संस्था से पूछताछ कर सकती है, जिसको ले‍कर उसका गठन हुआ है. यदि वह जेपीसी के समक्ष पेश नहीं होता है तो यह संसद की अवमानना मानी जाती है.

जेपीसी संबंधित मामले में लिखित, मौखिक जवाब या फिर दोनों मांग सकती है. जेपीसी की जरूरत उन मामलों में पड़ती है जिनेम संसद के सदस्‍यों को लगता है कि बड़ी गड़बड़ी या घोटाला हुआ है और उसकी जेपीसी के माध्‍यम से जांच होनी चाहिए. सहमति होने पर इसके लिए कमिटी गठित की जाती है. मौजूदा समय में राफेल डील की जांच के लिए विपक्ष सरकार पर जेपीसी के गठन की मांग कर रहा है, जबकि सरकार इससे इनकार कर रही है.

जेपीसी को मिनी संसद भी कहा जाता है. इस समिति में अधिकतम 30-31 सदस्य हो सकते हैं, जिसका चेयरमैन बहुमत वाली पार्टी के सदस्य को बनाया जाता है. इसके अलावा समिति में सदस्यों की संख्या भी बहुमत वाली पार्टी की अधिक होती है. किसी भी मामले की जांच के लिए समिति के पास अधिकतम 3 महीने की समयसीमा होती है. इसके बाद संसद के समक्ष उसे अपनी जांच रिपोर्ट पेश करनी होती है.

जानें कब-कब हुआ जेपीसी का गठन

  • देश के 70 साल के संसदीय इतिहास में 8 बार जेपीसी का गठन किया गया. 5 बार जेपीसी जांच के परिणाम का यह नतीजा हुआ कि सत्ताधारी पार्टी आम चुनाव हार गई. सबसे पहले जेपीसी का गठन साल 1987 में हुआ था, इस समय राजीव गांधी सरकार पर बोफोर्स तोप खरीद मामले में घोटाले का आरोप लगा था. जिसके बाद साल 1989 में हुआ आम चुनाव में कांग्रेस को हार का मुहं देखना पड़ा था.
  • इसके बाद दूसरी बार जेपीसी का गठन साल 1992 में पीवी नरसिंह राव की सरकार के दौरान हुआ. उन पर सुरक्षा एवं बैंकिंग लेन-देन में अनियमितता का आरोप लगे थे. इसका परिणाम भी यह हुआ कि साल 1996 के आम चुनाव में इसकी वजह से कांग्रेस हार गई.
  • जेपीसी का गठन तीसरी बार साल 2001 में स्टॉक मार्केट घोटाले को लेकर हुआ था. हालांकि इसका कुछ खास असर नहीं दिखा.
  • जेपीसी का गठन चौथी बार साल 2003 में हुआ. उस समय भारत में बनने वाले सॉफ्ट ड्रिंक्स और अन्य पेय पदार्थों में कीटनाशक होने की जांच के लिए इसका गठन किया गया था. इस जांच का नतीजा भी उस समय की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को अगले आम चुनाव की हार में दिखा.
  • पांचवीं बार जेपीसी का गठन साल 2011 में टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच को लेकर हुआ था. जेपीसी की रिपोर्ट में कांग्रेस की सरकार को क्लीनचिट मिली थी, लेकिन अदालत में यह चोरी पकड़ी गई थी.
  • छठी बार साल 2013 में वीवीआईपी चॉपर घोटाले की जांच को लेकर जेपीसी का गठन हुआ. टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले और चॉपर घोटाले का असर कांग्रेस को साल 2014 के आम चुनाव में हार के रूप में दिखा.
  • सातवीं बार साल 2015 में भूमि अधिग्रहण,पुनर्वास बिल को लेकर जेपीसी का गठन किया गया. हालांकि इसका कोई नतीजा नहीं निकला.
  • साल 2016 में आठवीं और आखिरी बार एनआरसी मुद्दे को लेकर जेपीसी का गठन हुआ और इसका भी कोई नतीजा नहीं निकल पाया.