सुप्रीम कोर्ट दिल्ली सरकार के विज्ञापन फंड को रैपिड रेल प्रोजेक्‍ट में स्थानांतरित करने पर मंगलवार को करेगा फैसला
Supreme Court (Photo Credit: ANI)

नई दिल्ली, 26 नवंबर : सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को जांच करेगा कि क्या दिल्ली सरकार रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) परियोजना के दिल्ली-अलवर और दिल्ली-पानीपत कॉरिडोर के निर्माण के लिए अपने हिस्से की पूर्ति के लिए धन की व्यवस्था करने में सक्षम है, अन्यथा, राष्ट्रीय राजधानी सरकार का विज्ञापन बजट रैपिड रेल परियोजना की ओर स्थानांतरित हो जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित कॉज़लिस्ट के अनुसार, जस्टिस एस.के.कौल और सुधांशु धूलिया की पीठ 28 नवंबर को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (एनसीआरटीसी) द्वारा दायर आवेदन पर सुनवाई जारी रखेंगी, जो भारत सरकार और दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों की एक संयुक्त उद्यम कंपनी है जो आरआरटीएस परियोजना को लागू कर रही है. अपने आवेदन में, निगम ने कहा था कि दिल्ली सरकार ने वादा किया गया धन जारी नहीं करके सुप्रीम कोर्ट को पहले दिए गए अपने वादे का उल्लंघन किया है. यह भी पढ़ें : MP: शहडोल में रेत माफिया ने पटवारी को ट्रैक्टर से कुचला, कमल नाथ ने CM शिवराज पर बोला हमला

इस पर सुनवाई करते हुए, 21 नवंबर को शीर्ष अदालत को यह निर्देश देने के लिए "बाध्य" होना पड़ा कि विज्ञापन उद्देश्यों के लिए आवंटित धन को आरआरटीएस परियोजना में स्थानांतरित किया जाए. कहा क,ि “बजटीय प्रावधान कुछ ऐसा है जिस पर राज्य सरकार को ध्यान देना चाहिए. लेकिन अगर ऐसी राष्ट्रीय परियोजनाओं को प्रभावित करना है और उस पैसे को विज्ञापन पर खर्च करना है, तो हम उन फंडों को इस परियोजना में स्थानांतरित करने का निर्देश देने के इच्छुक होंगे.” हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश को एक सप्ताह की अवधि के लिए स्थगित रखा और कहा कि यदि धन हस्तांतरित नहीं किया गया, तो आदेश 28 नवंबर को लागू होगा.

दिल्ली सरकार ने कहा कि उसे सुप्रीम कोर्ट में प्रतिकूल टिप्पणियां सुननी पड़ीं, क्योंकि धनराशि जारी नहीं की गई है, जबकि शेष धनराशि जारी करने की फाइल परिवहन मंत्री द्वारा अनुमोदित की गई थी और एक महीने पहले वित्त सचिव को भेजी गई थी. इसमें कहा गया, "अरविंद केजरीवाल सरकार आरआरटीएस परियोजना का समर्थन करती है और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत करती है." इस साल जुलाई में, दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने शीर्ष अदालत को आश्वासन दिया था कि परियोजना की 415 करोड़ रुपये की बकाया राशि का भुगतान दो महीने के भीतर किया जाएगा.