मुस्लिम महिलाओं ने मस्जिद में नमाज के लिए मांगी इजाजत, सुप्रीम कोर्ट से मिला यह जवाब

पुणे में रहने वाली मुस्लिम महिलाओं ने मस्जिद में नमाज अदा करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट याचिका दायर की थी. जिस याचिका पर कोर्ट सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार, एनसीडब्ल्यू, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, वक्फ बोर्ड को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब मांगा है.

याचिकाकर्ता दंपती (Photo Credits ANI)

नई दिल्ली: पुणे में रहने वाली मुस्लिम महिलाओं ने मस्जिद में नमाज अदा करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) याचिका दायर की थी. जिस याचिका पर कोर्ट सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार, एनसीडब्ल्यू, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, वक्फ बोर्ड को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में जवाब मांगा है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने महिलाओं से हालांकि सवाल भी किया कि 'जैसे आपके घर मे कोई आना चाहे तो आपकी इजाजत जरूरी है. इसमे सरकार कहां से आ गई?' दरअसल महाराष्ट्र के पुणे के रहने वाली मुस्लिम दंपती ने मस्जिद में प्रवेश को लेकर याचिका दायर की थी. जिस में महिलाओं ने दंपती ने कहा था कि मुस्लिम महिलाओं को भी मस्जिद में प्रवेश और प्रार्थना का अधिकार मिले.

इस याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एस ए बोबड़े और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पीठ ने पुणे के एक दंपती की याचिका पर केन्द्र को जवाब देने का निर्देश दिया. पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील से कहा कि सबरीमला मंदिर मामले में हमारे फैसले की वजह से ही हम इस मामले पर सुनवाई करेंगे.

सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम दंपती द्वारा दायर करने वाले परिवार का कहना है कि मस्जिद में महिलाओं को नमाज नहीं पढ़ने देना यह एक तरफ से रोक गैरकानूनी और असंवैधानिक है. महिलाए मस्जिद में नमाज पढ़ना. लेकिन जमात के लोग विरोध कर रहा है. ऐसे में वे चाहेंगे कि मस्जिद में नमाज पढ़ने को लेकर पुलिस महिलाओं की मदद करे.

कुरान और हदीस में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं

बता दें कि पुणे में एक मुस्लिम दंपती ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने की इजाजत देने की अनुमति मांगी है. मुस्लिम महिला दंपती की तरफ से दायर याचिका में कहा गया कि मुस्लिम महिलाओं पर मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ने पर रोक गैरकानूनी और असंवैधानिक है. इसलिए महिलाओं को भी मस्जिद में नमाज पढ़ने को लेकर अधिकार मिलने चाहिए. महिला दंपती ने कोर्ट में यह भी कहा कि कुरान और हदीस में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है. इस तरह की परंपरा महिलाओं की गरिमा के भी खिलाफ है. याचिका में यह भी कहा गया है कि पुरुषों की तरह महिलाओं का भी इबादत करने का संवैधानिक अधिकार है

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