मोहन भागवत ने राम मंदिर, मॉब लिंचिंग समेत इन प्रमुख मुद्दों पर रखी RSS की राय
आरएसएस चीफ मोहन भागवत (Photo Credit-PTI)

नई दिल्ली. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को कहा कि अयोध्या में राम मन्दिर का शीघ्र निर्माण होना चाहिए और विश्वास व्यक्त किया कि इससे हिंदुओं एवं मुस्लिमों के बीच तनाव खत्म हो जाएगा. भगवान राम को “इमाम-ए-हिंद” बताते हुए भागवत ने कहा कि वह देश के कुछ लोगों के लिए भगवान नहीं हो सकते लेकिन वह समाज के सभी वर्ग के लोगों के लिए भारतीय मूल्यों के एक आदर्श हैं. उन्होंने कहा, “एक संघ कार्यकर्ता, संघ प्रमुख और राम जन्मभूमि आंदोलन के एक हिस्से के तौर पर मैं चाहता हूं कि भगवान राम की जन्मभूमि (अयोध्या) में जल्द से जल्द भव्य राम मंदिर बनाया जाए.

संघ के तीन दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन उन्होंने कहा, ‘‘अब तक यह हो जाना चाहिए था. भव्य राम मंदिर का निर्माण हिंदू-मुस्लिम के बीच तनाव की एक बड़ी वजह को खत्म करने में मदद करेगा और अगर मंदिर शांतिपूर्ण तरीके से बनता है तो मुस्लिमों की तरफ अंगुलियां उठनी बंद हो जाएंगी.”

उन्होंने कहा कि यह देश की संस्कृति और “एकजुटता को मजबूत” करने का मामला है, यह देश के करोड़ों लोगों के विश्वास का मुद्दा है. उन्होंने इस मुद्दे पर बातचीत का भी समर्थन किया लेकिन कहा कि अंतिम फैसला राम मंदिर समिति के पास होगा जो मंदिर के निर्माण के लिए आंदोलन चला रही है.

वर्तमान प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के दो अक्तूबर को सेवानिवृत्त होने से पहले उच्चतम न्यायालय का फैसला आने की उम्मीद है. उन्होंने राम मंदिर के मुद्दे पर वार्ता का समर्थन किया. साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अंतिम निर्णय राम मन्दिर समिति को करना है जो राम मन्दिर के निर्माण के लिए अभियान की अगुवाई कर रही है. संघ प्रमुख ने कहा कि उन्हें यह नहीं मालूम कि राम मंदिर के लिए अध्यादेश जारी किया जा सकता है क्या, क्योंकि वह सरकार के अंग नहीं हैं. भागवत ने विभिन्न समुदायों के लिए आरक्षण की वर्तमान व्यवस्था का पुरजोर समर्थन किया.

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. उन्होंने दावा किया कि विश्वभर में हिन्दुत्व की स्वीकार्यता बढ़ रही है जो उनके संगठन की आधारभूत विचारधारा है.भारत के विभिन्न भागों में आबादी संतुलन में बदलाव और घटती हिन्दू आबादी के बारे में एक प्रश्न पर आरएसएस प्रमुख ने कहा कि विश्वभर में जनसांख्यिकी संतुलन को महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे यहां भी कायम रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘इसे ध्यान में रखते हुए आबादी पर एक नीति तैयार की जानी चाहिए.

अगले 50 वर्षों में देश की संभावित आबादी और इस संख्या बल के अनुरूप संसाधनों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि इस प्रकार की नीति को वहां पहले लागू करना चाहिए जहां समस्या है (आबादी की)। उन्होंने कहा, ‘‘जहां अधिक बच्चे हैं किन्तु उनका पालन करने के साधन सीमित हैं...यदि उनका पालन पोषण अच्छा नहीं हुआ तो वे अच्छे नागरिक नहीं बन पाएंगे. कई भाजपा नेता एवं हिन्दू संगठन इस मुद्दे को उठाते रहे हैं. उनका कहना है कि मुस्लिम आबादी की तुलना में हिन्दुओं की जनसंख्या घट रही है. धर्मान्तरण के विरूद्ध भागवत ने कहा कि यह सदैव दुर्भावनाओं के साथ कराया जाता है तथा इससे आबादी असंतुलन भी होता है.

उन्होंने गायों की रक्षा का समर्थन करने के बावजूद यह नसीहत भी दी कि गौरक्षा के नाम पर कानून के विरूद्ध नहीं जाया जा सकता. आरएसएस प्रमुख ने कहा कि कानून को अपने हाथ में ले लेना एक अपराध है और ऐसे मामलों में कठोर दंड होना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा, ‘‘हमें दोमुंही बातों को भी नकारना चाहिए क्योंकि गौ तस्करों द्वारा की जाने वाली हिंसा पर कोई नहीं बोलता.’’उनसे देश में भीड़ द्वारा पीट पीटकर हत्या करने तथा गौरक्षा के नाम पर हिंसा की बढ़ती घटनाओं के बारे में पूछा गया था.

संघ के इस तीन दिवसीय सम्मेलन में सत्तारूढ़ भाजपा के विभिन्न नेताओं, बालीवुड अभिनेताओं, कलाकारों एवं शिक्षाविदों की उपस्थिति देखी गयी. बहरहाल, ‘‘भविष्य का भारत..आरएसएस का दृष्टिकोण’’ शीर्षक वाले इस सम्मेलन में लगभग सभी प्रमुख विपक्षी दलों की उपस्थिति नगण्य रही हालांकि संघ ने कहा कि उसने इन दलों को आमंत्रित किया था. अंतर जातीय विवाह के बारे में पूछे जाने पर भागवत ने कहा कि संघ इस तरह के विवाह का समर्थन करता है तथा यदि अंतर जातीय विवाहों के बारे में गणना करायी जाये तो सबसे अधिक संख्या में संघ से जुड़े लोगों को पाया जाएगा.

महिलाओं के विरूद्ध अपराध के बारे में अपनी उद्धिग्नता को व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसा माहौल तैयार किया जाना चाहिए जहां वे सुरक्षित महसूस कर सकें. एक अन्य प्रश्न के उत्तर में उन्होंने कहा कि लोगों को किसी भी तरह के भेदभाव से बचाने की जिम्मेदारी शासन एवं प्रशासन की है.

उन्होंने यह भी कहा कि एलजीबीटीक्यू को अलग-थलग नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि वे भी समाज का अंग हैं.

भागवत ने कहा कि संघ अंग्रेजी सहित किसी भी भाषा का विरोधी नहीं है किन्तु उसे उसका उचित स्थान मिलना चाहिए. उनका संकेत था कि अंग्रेजी किसी भारतीय भाषा का स्थान नहीं ले सकती.

संघ प्रमुख ने कहा, ‘‘आपको अंग्रेजी सहित किसी भी भाषा का विरोध नहीं करना चाहिए और इसे हटाया नहीं जाना चाहिए...हमारी अंग्रेसी से कोई शत्रुता नहीं है। हमें योग्य अंग्रेजी वक्ताओं की आवश्यकता है.’’अन्य मुद्दों पर पूछे गये सवालों के उत्तर में उन्होंने जम्मू कश्मीर का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि आरएसएस संविधान के अनुच्छेद 370 एवं 35 ए को स्वीकार नहीं करता.