नई दिल्ली: बैंक से कर्ज लेने वाले लोगों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सुनवाई करते हुए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) को साफ शब्दों में कहा है कि 'सूचना का अधिकार' (RTI) कानून के तहत बैंक से कर्ज लेकर नहीं चुकाने वाले डिफॉल्टर्स की लिस्ट को सार्वजनिक किया जाए. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई को बैंकों और वित्तीय संस्थानों के कामकाज से जुड़ी इंस्पेक्शन रिपोर्ट को भी जारी करने को कहा. साथ ही, यह चेतावनी भी दी कि भविष्य में इस तरह के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा.
शीर्ष न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) आरटीआई के तहत ‘‘राष्ट्रीय आर्थिक हित के विषयों ’’ को छोड़ कर निरीक्षण रिपोर्ट के बारे में सभी सूचनाएं और अन्य साम्रगी देने के लिए कर्तव्यबद्ध है. आरबीआई ने न्यायालय के समक्ष कहा कि खुलासा नीति को वेबसाइट से हटा दिया जाएगा. न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने इस तथ्य पर कड़ी आपत्ति जताई कि आरबीआई ने उसके 16 दिसंबर 2015 के फैसले का उल्लंघन किया और न्यायालय के अवमानना याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लेने के बाद केंद्रीय बैंक ने 12 अप्रैल को अपनी वेबसाइट पर नयी खुलासा नीति जारी की. यह भी पढ़े: वित्त मंत्री जेटली का कर्जदारों को लेकर कड़ा आदेश, कर्ज नहीं लौटाने वालों पर रहम नहीं, बैंक करे कार्रवाई
नयी नीति के तहत आरबीआई ने विभिन्न विभागों को निर्देश दिया था कि वे उन सूचनाओं का खुलासा नहीं करें जिनका शीर्ष अदालत ने अपने पूर्व के फैसलों में खुलासा करने को कहा था. शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमारी राय में प्रतिवादियों (आरबीआई) ने उन सामग्रियों के खुलासे से मना करके इस अदालत की अवमानना की है, जिन्हें इस अदालत ने देने का निर्देश दिया था.’’ पीठ ने यह बात केंद्रीय बैंक को इसमें सुधार करने का अंतिम अवसर देते हुए कही. पीठ ने कहा, ‘‘यद्यपि प्रतिवादियों के इस अदालत के निर्देशों का उल्लंघन करना जारी रखने पर हम गंभीर रुख अपना सकते थे, लेकिन हम उन्हें खुलासा नीति में दी गई वैसी छूट को वापस लेने का अंतिम मौका देते हैं जो इस अदालत के निर्देशों के विपरीत हैं.’’ यह भी पढ़े: देश के 10 लाख बैंककर्मी 26 दिसंबर को करेंगे हड़ताल, सरकार से बातचीत रही बेनतीजा
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि प्रतिवादी निरीक्षण रिपोर्ट और सामग्री के अलावा अन्य सामग्री से संबंधित सूचना देने के लिये कर्तव्य से बंधे हैं। किसी भी तरह के उल्लंघन को गंभीरता से लिया जाएगा. गौरतलब है कि इस साल जनवरी में शीर्ष अदालत ने सूचना के अधिकार कानून के तहत बैंकों की वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट का खुलासा नहीं करने के लिए आरबीआई को अवमानना नोटिस जारी किया था. इससे पहले उच्चतम न्यायालय और केंद्रीय सूचना आयोग ने कहा था कि आरबीआई तब तक पारदर्शिता कानून के तहत मांगी गई सूचना देने से इनकार नहीं कर सकता जब तक कि उसे कानून के तहत खुलासे से छूट ना प्राप्त हो.
रिजर्व बैंक ने अपने बचाव में कहा था कि वह अपेक्षित सूचना की जानकारी नहीं दे सकता क्योंकि बैंक की वार्षिक निरीक्षण रिपोर्ट में ‘‘न्यासीय’’ जानकारी निहित है। न्यायालय रिजर्व बैंक के खिलाफ सूचना के अधिकार कार्यकर्ता एस सी अग्रवाल की अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रहा था. अग्रवाल ने नियमों का उल्लंघन करने वाले बैंकों पर लगाये गये जुर्माने से संबंधित दस्तावेजों सहित रिजर्व बैंक से इस बारे में पूरी जानकारी मांगी थी.
उन्होंने उन बैंकों की सूची भी मांगी थी जिन पर जुर्माना लगाने से पहले रिजर्व बैंक ने कारण बताओ नोटिस जारी किये थे. इस तरह की जानकारी का खुलासा करने के बारे में शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद रिजर्व बैंक ने ‘‘खुलासा करने की नीति’’ जारी की थी जिसके तहत उसने कुछ जानकारियों को सूचना के अधिकार कानून के दायरे से बाहर रखा था. रिजर्व बैंक ने आर्थिक हितों के आधार पर ऐसी जानकारी देने से इंकार कर दिया था.