Hindi Controversy: भाषा पर बवाल! तमिल फिल्मों की हिंदी डबिंग पर पवन कल्याण ने उठाए सवाल, DMK ने दिया ये जवाब

नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और जन सेना पार्टी के प्रमुख पवन कल्याण द्वारा तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) पार्टी पर लगाए गए आरोपों के बाद पार्टी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. पवन कल्याण ने तमिलनाडु के नेताओं पर दोहरे मानदंड अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि वे हिंदी थोपने का विरोध करते हैं लेकिन अपने तमिल फिल्मों को हिंदी में डब करवाने से परहेज नहीं करते.

डीएमके के प्रवक्ता डॉ. सैयद हफीजुल्लाह ने पवन कल्याण की टिप्पणी को 'खोखली समझ' करार देते हुए कहा कि तमिलनाडु ने कभी भी किसी व्यक्ति द्वारा हिंदी या किसी अन्य भाषा को सीखने का विरोध नहीं किया. उन्होंने कहा, "हम किसी भी भाषा को सीखने के विरोध में नहीं हैं, बल्कि हम किसी भी भाषा को जबरन थोपे जाने का विरोध करते हैं."

यह बयान ऐसे समय में आया है जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) और केंद्र सरकार द्वारा हिंदी के प्रचार-प्रसार पर बहस चल रही है. तमिलनाडु ऐतिहासिक रूप से हिंदी के थोपे जाने का विरोध करता आया है. डीएमके नेताओं ने पवन कल्याण की टिप्पणी को भाषा नीति और व्यावसायिक निर्णयों को मिलाने का एक गलत प्रयास बताया.

पवन कल्याण, जो एनडीए के प्रमुख सहयोगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं, ने कहा कि तमिलनाडु के राजनेता हिंदी का विरोध करते हैं लेकिन हिंदी में अपनी फिल्में डब करवाकर राष्ट्रीय दर्शकों तक पहुंचाने से परहेज नहीं करते. उन्होंने कहा, "मुझे समझ नहीं आता कि कुछ लोग संस्कृत की आलोचना क्यों करते हैं? तमिलनाडु के राजनेता हिंदी का विरोध करते हैं लेकिन अपनी फिल्मों को हिंदी में डब करवाकर आर्थिक लाभ उठाते हैं. वे बॉलीवुड से पैसा चाहते हैं लेकिन हिंदी को स्वीकार नहीं करते, यह कौन सा तर्क है?"

इस पर डीएमके ने जवाब देते हुए कहा कि तमिलनाडु में पहले से ही हिंदी प्रचार सभाएं हैं जो इच्छुक लोगों को हिंदी सिखाती हैं. डॉ. हफीजुल्लाह ने कहा, "यदि लोग हिंदी सीखना चाहते हैं, तो उनका स्वागत है. समस्या तब आती है जब केंद्र सरकार नीतियों के माध्यम से हिंदी सीखने को अनिवार्य करने की कोशिश करती है, जैसे कि एनईपी या पीएम श्री स्कूलों के माध्यम से."

वरिष्ठ डीएमके नेता टी.के.एस. एलंगोवन ने भी इस विषय पर अपनी राय रखते हुए कहा कि तमिलनाडु 1938 से ही हिंदी का विरोध करता आया है. उन्होंने कहा, "हमने राज्य विधानसभा में यह कानून पारित किया था कि तमिलनाडु हमेशा द्विभाषी नीति का पालन करेगा. यह निर्णय शिक्षा विशेषज्ञों की सलाह के आधार पर लिया गया था, न कि किसी अभिनेता के सुझाव पर. यह विधेयक 1968 में पारित हुआ था, जब पवन कल्याण का जन्म भी नहीं हुआ था. उन्हें तमिलनाडु की राजनीति की समझ नहीं है. हम हिंदी का विरोध पहली बार नहीं कर रहे हैं. हमारा मानना है कि मातृभाषा में शिक्षा सबसे अच्छी होती है. पवन कल्याण सिर्फ भाजपा का समर्थन कर रहे हैं ताकि वे भाजपा सरकार से कुछ लाभ प्राप्त कर सकें."

वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पवन कल्याण के बयान का समर्थन किया है. भाजपा नेताओं ने कहा कि हिंदी भारत की राष्ट्रीय भाषा है और इसे दक्षिणी राज्यों में भी अधिक से अधिक बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

भाजपा नेता विक्रम रंधावा ने कहा, "हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा है और सरकार इसे आम जनता तक पहुंचाने के लिए कार्य कर रही है. दुर्भाग्यवश, पिछली सरकारों ने राष्ट्रवाद की संस्कृति को दबाने की कोशिश की. दक्षिण भारत में भी हिंदी को मजबूती से लागू किया जाना चाहिए."