शिवसेना (Shiv Sena) और जेडीयू भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ गठबंधन में होते हुए भी कई मुद्दों पर अलग राय रखते हैं. लेकिन महाराष्ट्र (Maharashtra) और बिहार (Bihar) में हुए पिछले विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) की तरह वे दोनों पार्टियां इस बार के चुनाव में अकेले उतरने का जोखिम नहीं उठाने जा रहीं. दरअसल, महाराष्ट्र में इस साल तो बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और शिवसेना व जेडीयू के पास बीजेपी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ने के अलावा कोई और बेहतर विकल्प मौजूद नहीं है. महाराष्ट्र में शिवसेना पिछले विधानसभा चुनाव के तुरंत बाद बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गई जबिक बिहार में जेडीयू करीब दो साल बाद बीजेपी के साथ वापस आ गई. शिवसेना और जेडीयू एनडीए में बीजेपी के सहयोगी रूप में शामिल तमाम पार्टियों से अलग हैं. इन दोनों पार्टियों ने अपने-अपने राज्यों में पिछले चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को छोड़कर अकेले या अन्य सहयोगियों के साथ लड़ने का विकल्प चुना.
तीन तलाक, एनआरसी और धारा 370 जैसे मुद्दों पर जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी से अलग राय रखते हैं और इसलिए ऐसी खबरें आती हैं कि वे विधानसभा चुनाव से पहले खुद को बीजेपी से अलग कर लेंगे. लेकिन पिछले चुनाव के आंकड़ों पर एक नजर डालें तो पता चलेगा कि शिवसेना की तरह जेडीयू के पास बीजेपी के साथ बने रहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, अगर वह आगे बढ़ना चाहती है. इसके साथ ही 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की शानदार जीत के साथ खेल के नियम बदल गए हैं. साल 2010 में बीजेपी और जेडीयू ने बिहार विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा था. इस चुनाव में जेडीयू को 115 तो बीजेपी को 91 सीटें आई थीं. उस समय जेडीयू का वोट शेयर 22.58 फीसदी और बीजेपी का 16.49 फीसदी था. साल 2013 में जेडीयू एनडीए से बाहर हो गई और 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले मैदान में उतरी और इस चुनाव में उसका वोट शेयर 22.58 फीसदी से गिरकर 16.04 फीसदी पर आ गए और पार्टी को बिहार के 40 लोकसभा सीटों में से केवल 2 पर जीत मिली.
दूसरी तरफ, बीजेपी ने साल 2014 में अपना वोट शेयर बढ़ाकर लगभग 30 फीसदी कर लिया और 22 सीटें जीत लीं. साल 2015 में जेडीयू महागठबंधन की हिस्सा थी और बिहार विधानसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस के साथ मैदान में उतरी थी. वहीं, बीजेपी ने रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी जैसे गठबंधन सहयोगियों के साथ चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में जेडीयू ने 71 सीटें जीतीं और 16.83 फीसदी वोट पाए जबकि बीजेपी ने 53 सीटें जीतकर 24.5 फीसदी वोट हासिल किया. 10 साल बाद जेडीयू ने बीजेपी के साथ हाल में लोकसभा चुनाव लड़ा और 16 सीटें जीतकर 21.82 फीसदी वोट पाए जबकि बीजेपी को 24 फीसदी वोट मिले जो कि बिहार में किसी भी पार्टी को मिले वोट में सबसे ज्यादा है. यह भी पढ़ें- बिहार में अगले साल होंगे विधानसभा चुनाव, तेजस्वी-तेजप्रताप के बीच शीतयुद्ध समाप्त कराने में जुटीं हैं राबड़ी देवी!
महाराष्ट्र में बीजेपी और शिवसेना दोनों ने एक साथ मिलकर साल 2009 का विधानसभा चुनाव लड़ा था. बीजेपी 46 तो शिवसेना को 44 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी को 14 फीसदी तो शिवसेना को 16 फीसदी वोट मिले थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 28 फीसदी वोट मिले और उसने 48 में से 23 सीटों पर जीत हासिल की. वहीं, शिवसेना ने 21 फीसदी वोट पाकर 18 सीटों पर जीत दर्ज की. फिर 2014 में ही दोनों पार्टियां अलग-अलग विधानसभा चुनाव में उतरीं. बीजेपी ने 28 फीसदी वोट पाकर 288 में से 122 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि शिवसेना ने 19 फीसदी वोट पाकर 63 सीटों पर जीत हासिल की. बाद में शिवसेना ने बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए सरकार को समर्थन दे दिया. कई विरोधाभासों के बावजूद, शिवसेना ने 2019 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के साथ लड़ा और 18 सीटों पर जीत हासिल की. 2014 के आम चुनावों में भी शिवसेना को 18 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी भी 28 फीसदी वोट पाकर 23 सीटों पर जीती. हालांकि शिवसेना ने अपने वोट शेयर में सुधार करते हुए 19 फीसदी की जगह 23 फीसदी वोट हासिल किए.