बिहार विधानसभा चुनाव 2020: बीजेपी नहीं ये जोड़ी उड़ा सकती है राहुल-तेजस्वी की नींद, दोनों बना सकते है जीत का सुपर-हिट फार्मूला

दोनों के साथ आने से पिछड़े वोटर NDA के साथ जा सकते हैं. नीतीश और पासवान के साथ आने से लालू के MYD (मुस्लिम-यादव-दलित) वोट बैंक में सेंध लग सकती हैं. बीजेपी के साथ होने से इस गठबंधन को सवर्णों का साथ भी मिल सकता है. बिहार विधानसभा से एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित होने से मुस्लिम समुदाय के लोग फिर एक बार नीतीश पर भरोसा कर सकते हैं.

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव (Photo: IANS and Getty )

Bihar Assembly Elections 2020: दिल्ली चुनाव के संपन्न होने के बाद अब पूरे देश की निगाहें इस साल के अंत में बिहार में होने वाले चुनावों पर है. 2020 के अंत तक बिहार में नई सरकार का गठन हो जायेगा. मुकाबला NDA और महागठबंधन के बीच है. सभी सियासी दलों ने सूबे को फतह करने के लिए रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है. बिहार की राजनीती में पिछड़े और दलित वर्ग के वोट बेहद अहम माने जाते हैं. ऐसे में सभी पार्टियां इन समुदायों के लोगों को लुभाने के प्रयास में हैं. महागठबंधन भी इस कोशिश में जुटा है मगर बिहार दो नेताओं की एक जोड़ी है जो उनका खेल ख़राब कर सकती है.

ये दो नेता हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान. दोनों साथ में आए (जो की होना लगभग तय है) बिहार की सियासत का विन्निंग कॉम्बिनेशन हो सकते हैं. दोनों के साथ आने से पिछड़े वोटर NDA के साथ जा सकते हैं. नीतीश और पासवान के साथ आने से लालू के MYD (मुस्लिम-यादव-दलित) वोट बैंक में सेंध लग सकती हैं. बीजेपी के साथ होने से इस गठबंधन को सवर्णों का साथ भी मिल सकता है. बिहार विधानसभा से एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित होने से मुस्लिम समुदाय के लोग फिर एक बार नीतीश पर भरोसा कर सकते हैं.

अगर ऐसा हुआ तो RJD और कांग्रेस की सत्ता में आने की राह मुश्किल हो जाएगी. वैसे महागठबंधन MYD फार्मूला ही नहीं बल्कि समाज के सभी वर्गों के युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश में हैं. तेजस्वी यादव ने 'बेरोजगारी हटाओ' यात्रा के जरिए युवाओं के बीच लोकप्रिय होने की कोशिश कर रहे हैं. बहरहाल, यह देखना दिलचस्प होगा की बिहार की जनता किसका साथ देती है. 2015 विधानसभा चुनावों में जब लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार ने हाथ मिलाया था तो इस गठबंधन को लोगों ने चप्पड़ फाड़ मतदान किया था. हालांकि, बाद में दोनों पार्टियाँ अलग हो गयी थी.

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