अगर MP और राजस्थान में जीती कांग्रेस, तो भी बढ़ सकता है राहुल गांधी का सिरदर्द

देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) के परिणामों से पहले राजनीति चरम पर है. सभी प्रमुख दल और उनके वरिष्ठ नेता विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद पैदा होने वाली स्थिति से निपटने के लिए जुगाड़ में जुट गए है. अधिकतर राजनितिक पार्टिया बेझिझक जीत का दावा कर रही है.

राहुल गांधी

देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) के परिणामों से पहले राजनीति चरम पर है. सभी प्रमुख दल और उनके वरिष्ठ नेता विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद पैदा होने वाली स्थिति से निपटने के लिए जुगाड़ में जुट गए है. अधिकतर राजनितिक पार्टिया बेझिझक जीत का दावा कर रही है. यह चुनाव आगामी लोकसभा चुनाव के पहले का सेमीफाईनल माना जा रहा है. इसलिए यह चुनाव ना केवल बीजेपी बल्कि कांग्रेस के लिए भी साख की लड़ाई है. लेकिन इस दौरान सबसे कड़ी परीक्षा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को देनी पड़ सकती है. क्योंकि अगर कांग्रेस मध्य प्रदेश और राजस्थान में सत्ता में लौटती है तो मुख्यमंत्री पद के लिए लड़ाई निश्चित तौर पर होगी. ऐसे में राहुल गांधी को स्थिति पर काबू पाना बेहद कठीन साबित होनेवाला है.

मध्य प्रदेश-

मध्यप्रदेश विधानसभा ( Madhya Pradesh Assembly Elections) चुनाव के एग्जिट पोल ( Exit Polls Result) के अनुसार बीजेपी और कांग्रेस के बीच इस बार कांटे की टक्कर होगी. ऐसे में अगर सूबे में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है तो मुख्यमंत्री की गद्दी के लिए पार्टी में रार होना लगभग तय है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया:

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री की रेस में सबसे ऊपर माधवराव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया है. इस शख्स ने सूबे के मुख्यमंत्री को तो कड़ी टक्कर दी है साथ ही पार्टी के अंदर अपने कद को बढ़ाया है. गुना के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraaditya Sindhiya) ने मध्यप्रदेश की सियासत में खुद को तेजी से उभरा हैं. हालांकि पार्टी ने सूबे का कप्तान कमलनाथ को बनाया था मगर सिंधिया पर प्रचार की कमान सौंपी गई थी.

सिंधिया ने काफी आक्रामकता से सूबे में कांग्रेस पार्टी का प्रचारकिया. सूबे में 15 साल से बीजेपी की सरकार हैं और इसे सत्ता से बेदखल करने के लिए सिंधिया ने एड़ी चोटी का दम लगाया. आइये जानते हैं उनका सियासी सफर. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के दिवंगत दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया के पुत्र हैं. साल 2001 में माधवराव सिंधिया की विमान हादसे में हुई मौत के बाद ज्योतिरादित्य सियासत में आए.

कमलनाथ:

मध्यप्रदेश में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ (Kamal Nath) भी सीएम की रेस में आगे दौड़ रहें हैं. कमलनाथ 40 साल से ज्‍यादा वक्त से राजनीति में सक्रिय हैं. छिंदवाड़ा से सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कमलनाथ की ताजपोशी से कांग्रेस एमपी में सत्ता हासिल करने का ख्वाब देख रही है, अब ये ख्वाब उसका पूरा होता है या नहीं, ये तो आने वाला वक्त बताएगा. मध्यप्रदेश में कमलनाथ ने कांग्रेस के प्रचार के लिए अपने दिन-रात एक किए हैं. यूं कहें कि वे बीजेपी को इस बार कांटे की टक्कर दे रहें हैं. इस चुनाव को लेकर कमलनाथ को कितना भरोसा है इस बात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने एमपी में कांग्रेस के 140 सीटें जीतने का दावा किया है.

नौ बार सांसद रह चुके कमलनाथ एक उत्कृष्ट और कुशल नेता के रूप में राज्य में कांग्रेस की कमान संभाल रहें हैं. 1980 में छिंदवाड़ा की जनता ने कमलनाथ को 7वीं लोकसभा में भेजा. मूल रूप से छिंदवाड़ा एक आदिवासी इलाका माना जाता है. कमलनाथ ने यहां लोगों को रोजगार दिया और आदिवासियों के उत्थान के लिए कई काम किए. कांग्रेस के कार्यकाल में कलनाथ उद्योग मंत्रालय, कपड़ा मंत्रालय, वन और पर्यावरण मंत्रालय, सड़क और परिवहन मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं.

राजस्थान-

राजस्थान विधानसभा चुनाव के एग्जिट पोल के अनुसार राज्य में इस बार कांग्रेस बीजेपी पर भारी पड़ रही है. अधिकतर सर्वे में राजस्थान की सत्ता की चाभी बीजेपी से कांग्रेस को मिलती दिख रही है. एग्जिट पोल ने भी राजस्थान के पुराने इतिहास को कायम रखा है जिसके तहत हर पांच साल में सूबे की सरकार में बदलाव होता है. ऐसे में अगर इस बार राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनती है तो मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी में अंदरूनी कलह होता तय है.

अशोक गहलोत:

राजस्थान के मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत (Ashok gehlot) आज भी राज्य में पसंदीदा नेताओं की गिनती में आते हैं. कभी छात्रसंघ चुनाव हार चुके गहलोत ने मेहनत और लगन से केंद्रीय मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री जैसे तमाम बड़े पदों तक का सफर तय किया है. अपने 39 साल के राजनैतिक सफर में गहलोत ने कई उतार चढ़ाव देखे. इसी का नतीजा है कि वे अब राजस्थान की राजनीति और जनता को बखूबी पहचान चुके हैं.

ब्राह्मण, क्षत्रिय और जाटों की प्रभाव वाली राजस्थान की राजनीति में 1998 में पहली बार माली समाज से ताल्लुक रखने वाले अशोक गहलोत जब मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने जनता के लिए बहुत कुछ किया. मुख्यमंत्री रहते हुए गहलोत ने पानी बचाओ, बिजली बचाओ, सबको पढ़ाओ का नारा देकर आम लोगों को जागरूक किया था. इसके अलावा वे भारत सेवा संस्थान, के संस्थापक भी है. यह संस्था गरीबों को मुफ्त किताबें और एम्बुलेंस की सुविधा मुहैया कराती है.

सचिन पायलट:

राजस्थान में बीजेपी के चुनावी रथ को रोकने के लिए कांग्रेस ने अपने प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट (Sachin pilot) को सुनामी बनाकर इस मैदान में उतारा था. पायलट जैसे युवा नेता को मैदान में उतारने वाली कांग्रेस भलीभांति जानती थी कि पायलट बीजेपी के आंकड़े को बिगाड़ने का पूरा दम-खम रखते हैं. सचिन पूर्व केंद्रीय मंत्री राजेश पायलट के बेटे हैं और गुज्जर समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं. वर्तमान में, पायलट राज्य के प्रदेश कांग्रेस कमेटी प्रमुख हैं और उन्होंने टोंक निर्वाचन क्षेत्र से नामांकन दायर किया था. लोकसभा चुनाव में राजस्थान से सुपड़ा साफ होने के बाद कांग्रेस ने प्रदेश की कमान युवा नेता सचिन पायलट के हाथों में थमाई थी.

अमेरिका से पढ़ाई पूरी करने के बाद सचिन पायलट ने 2002 में कांग्रेस की सदस्यता ली और सक्रिय राजनीति से जुड़े. साल 2004 में पहली बार चुनाव लड़े और राजस्थान की दौसा निर्वाचन सीट से लगभग 1 लाख वोटों से विजयी होकर लोकसभा पहुंचे थे. तब सचिन की उम्र 26 साल थी. इन्हीं युवा कंधों पर पिछले चुनाव में राजस्थान में अपना जनमत खोने वाली कांग्रेस को फिर सत्ता तक पहुचाने का जिम्मा है.

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