Gopaldas Saxena 'Neeraj' Birthday Anniversary: मशहूर कवि गोपालदास सक्सेना 'नीरज' की 96वीं वर्षगांठ कल, जानें उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें
मशहूर कवि गोपालदास सक्सेना 'नीरज' की 96वीं वर्षगांठ कल
Gopaldas Saxena 'Neeraj' Birthday Anniversary: बात हिंदी साहित्य की हो या हिंदी सिनेमा संगीत की, गोपालदास उर्फ 'नीरज' के बिना पूरी नहीं हो सकती. नीरज की काव्य शैली बेहद सहज और सरल होने के बावजूद उनकी गणना उच्च कोटि के हिंदी साहित्यकारों में की जाती है. साल 2007 में भारत सरकार ने उन्हें 'पद्म भूषण' और उत्तर प्रदेश सरकार ने 'यश भारती' पुरस्कार से सम्मानित किया. लेकिन जीवन के इस सम्मानित मोड़ पर पहुंचने के लिए उन्हें बार-बार अपमानित भी होना पड़ा. जीवन संघर्ष के थपेड़ों में उस जिंदगी को भी जीना पड़ा, जिसे सुनकर अचानक विश्वास नहीं होता. इस महान गीतकार की 96वीं वर्षगांठ पर प्रस्तुत है, उनके जीवन के तमाम रोचक प्रसंग!
अनवरत संघर्ष!
गोपालदास सक्सेना का जन्म 4 जनवरी 1925 को संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के इटावा स्थित पुरावली गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था. जन्म के साथ ही गोपालदास का संघर्ष शुरू हो गया था. वह 6 साल के थे, जब पिता ब्रजकिशोर की मृत्यु हो गयी. परिवार के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उनके कमजोर कंधों पर आ गयी. पैसे कमाने के लिए उन्हें काफी कुछ झेलना पड़ा. सर्दी हो या गर्मी सूर्योदय से पूर्व गांव के करीब बहती गंगा नदी में छलांग लगाते थे, ताकि श्रद्धालुओं द्वारा फेंके ज्यादा से ज्यादा सिक्के बटोर सकें. इन सिक्कों से पान, बीड़ी, सिगरेट खरीदकर सड़कों पर बेचते. इससे भी गुजारा नहीं हुआ तो रिक्शा चलाना शुरु किया. लेकिन इस दौर में भी उन्होंने पढ़ाई में विघ्न नहीं आने दिया. यह भी पढ़े: PM मोदी ने खाद्य एवं कृषि संगठन की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में 75 रुपये का सिक्का किया जारी, कहा- कोरोना काल में कुपोषण के खिलाफ मजबूती से लड़ रहा है भारत
1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास करने के बाद उन्हें पढ़ाई बीच में रोकनी पड़ी, क्योंकि उनके पास फीस के लिए पैसे नहीं थे. जैसे-तैसे गुजारे के लिए कभी कचहरी में वकीलों के हलफनामे टाइप करते, तो कभी दुकान-दर-दुकान में काम करते. मौका मिला तो डीएवी कॉलेज (इटावा) में क्लर्की की, या वॉल्कट ब्रदर्स के यहां टाइपिस्ट एवं एकाउंटेंट का कार्य किया. इस दरम्यान प्राइवेट परीक्षार्थी के तौर पर इंटर, फिर ग्रेजुएशन और हिंदी साहित्य से फर्स्ट क्लास में पोस्ट ग्रेजुएशन पास किया. इसके बाद उन्हें मेरठ कॉलेज में हिंदी प्रवक्ता की जॉब मिल गयी, लेकिन कुछ ही समय गुजरा था कि कॉलेज प्रशासन ने उन पर तमाम आरोप लगाने शुरु कर दिये. बेबुनियाद आरोपों से त्रस्त होकर गोपाल दास ने कॉलेज से इस्तीफा दे दिया.
त्रासदी से उपजा लेखक
कहते हैं कि संघर्ष और त्रासदी ही व्यक्ति को नया जीवन और नई ऊर्जा देता है. बात 1954 की है. गोपालदास की भांजी दुल्हन बनकर विदा हुई, लेकिन एक सड़क दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गई. दुल्हन बनीं भांजी के लहुलुहान मृत देह को हाथ में लेने के बाद मानों गोपालदास के अंतर्मन को झकझोर दिया हो. उनके दुःखी मन से कुछ शब्द रूपी पंक्तियां उद्घृत होती हैं.
पालकी लिए हुए कहार देखते रहे.
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे.
यहीं से गोपालदास के भीतर एक कालजयी लेखक जन्म लेता है. उद्घृत पंक्तियों को जब वह लखनऊ रेडियो स्टेशन पर पढ़ते हैं तो श्रोताओं की आंखें भी नम हो जाती हैं. यह गीत आगे चलकर जब गायक मो. रफी की आवाज में श्रोताओं तक पहुंचता है एक इतिहास रच जाता है.
अंततः भाग्य ने बदला करवट
इस समय तक गोपालदास सक्सेना की कविताएं कवि सम्मेलनों की शोभा बनने लगी थीं. शीघ्र ही उन्हें अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में प्राध्यापक (हिन्दी) की नौकरी मिल गयी. देश में जहां भी कवि सम्मेलन होते, गोपालदास सक्सेना की अनुपस्थिति कवियों से लेकर श्रोताओं तक को सालती. शायद भाग्य ने करवट लेना शुरु कर दिया था. उन्होंने अलीगढ़ को स्थाई ठौर बनाया, अपना घर खरीदा. कवि सम्मेलनों में ख्याति मिली और गोपालदास सक्सेना 'नीरज' के नाम से मशहूर होने लगे. इसी समय बंबई फिल्म इंडस्ट्री से भी उन्हें बुलावा आने लगा था.
बंबई रवानगी!
बंबई में आयोजित एक कवि सम्मेलन में नीरज की प्रस्तुतियों से प्रसन्न होकर संगीतकार रोशनलाल नागरथ (रोशन) ने उन्हें अपनी फिल्म 'नई उमर की नई फसल' में गीत लिखने का आमंत्रण दिया. इस पहली ही फिल्म में नीरज के लिखे गीतों, 'कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे... (गायक मो. रफी)' और 'देखती ही रहो आज दर्पण न तुम..., (गायक मुकेश)' ने नीरज को रातों-रात लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया. काम और दाम मिलने लगे तो उन्होंने मुंबई में ही ठौर बना लिया. उनके खाते में कई सुपर हिट गाने 'मेरा नाम जोकर', 'शर्मीली', 'पहचान', 'चंदा और बिजली', 'तेरे मेरे सपने', 'कन्यादान', 'गैंबलर' और 'प्रेम पुजारी' शुमार हुए. कहते हैं कि नीरज की काव्य शैली से राज कपूर इस कदर प्रभावित हुए थे कि 'मेरा नाम जोकर' के लिए नीरज की एक कविता 'ऐ भाई जरा देख के चलो..' को नीरज स्टाइल में ही मन्ना डे से गवाया. फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रतिसाद नहीं मिला, लेकिन इस गाने ने इतिहास रच दिया था. नीरज ने पांच साल में करीब 130 गाने लिखे. लेकिन जब उनसे सतही गानें लिखने के लिए कहा गया तो उन्होंने हाथ जोड़ लिया. शीघ्र ही नीरज का इस मायानगरी से मन उचाट हो गया और वे अलीगढ़ लौट आये. साल 2018 में 93 वर्ष की आयु में नीरज ने अंतिम सांस ली
नीरज के काव्य-संग्रह-
'दर्द दिया', 'प्राण गीत', 'आसावरी', 'बादर बरस गयो', 'दो गीत', 'नदी किनारे', 'नीरज की गीतिकाएं', 'संघर्ष', 'विभावरी', 'नीरज की पाती', एवं 'लहर पुकारे', 'बादलों से सलाम लेता हूं', 'गीत जो गाए नहीं', 'नीरज की पाती', 'नीरज दोहावली', 'गीत-अगीत', 'कारवां गुजर गया', 'पुष्प पारिजात के', 'वंशीवट सूना है' इत्यादि.