One Nation One Election: लोकसभा में कल पेश होगा एक देश एक चुनाव बिल, समझें क्या है वन नेशन वन इलेक्शन

वन नेशन वन इलेक्शन बिल मंगलवार दोपहर संसद में पेश किया जाएगा. केंद्र सरकार मंगलवार, 17 दिसंबर को दोपहर 12 बजे लोकसभा में "वन नेशन, वन इलेक्शन" से संबंधित दो अहम विधेयक पेश कर सकती है.

Representational Image | PTI

नई दिल्ली: वन नेशन वन इलेक्शन बिल मंगलवार दोपहर संसद में पेश किया जाएगा. केंद्र सरकार मंगलवार, 17 दिसंबर को दोपहर 12 बजे लोकसभा में "वन नेशन, वन इलेक्शन" से संबंधित दो अहम विधेयक पेश कर सकती है. जानकारी के मुताबिक, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल यह बिल पेश करेंगे. बीजेपी ने अपने तमाम सांसदों को संसद में मौजूद रहने के लिए तीन लाइनों का व्हिप जारी किया है. यह पहल देशभर में समानांतर चुनाव कराने की योजना को लेकर है, जिससे संसाधनों की बचत और चुनावी प्रक्रिया में सुगमता लाने का दावा किया जा रहा है.

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इस बिल को कॉन्स्टिट्यूशन (129 संशोधन) बिल 2024 नाम दिया गया है. अगर यह बिल कानून की शक्ल ले लेता है तो पूरे देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे.

क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन?

वन नेशन, वन इलेक्शन का मतलब है कि देश में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं. इसके तहत हर पांच साल में एक बार राष्ट्रीय और राज्य स्तर के चुनाव एक ही समय पर कराए जाएंगे. इससे बार-बार चुनावी प्रक्रिया में लगने वाले समय, धन और संसाधनों की बचत होगी.

कौन से विधेयक होंगे पेश?

केंद्र सरकार संविधान (129वां संशोधन) विधेयक और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक पेश करने की तैयारी में है. ये विधेयक एकसाथ चुनाव कराने के लिए जरूरी कानूनी बदलाव लाने के उद्देश्य से हैं.

संविधान (129वां संशोधन) विधेयक: यह लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता को पूरा करेगा.

केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक: इसमें उन केंद्र शासित प्रदेशों के लिए आवश्यक प्रावधान होंगे, जहां विधानसभाएं हैं.

क्या होंगे फायदे?

संसाधनों की बचत: बार-बार चुनाव कराने में लगने वाले खर्च में कमी आएगी.

गवर्नेंस में सुधार: लगातार चुनावी आचार संहिता लागू होने से सरकारी नीतियों और योजनाओं पर रुकावटें आती हैं. समानांतर चुनाव से इस समस्या का समाधान होगा.

चुनावी प्रक्रिया में सरलता: मतदाता एक ही समय पर राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय प्रतिनिधि चुन सकेंगे.

चुनौतियां और सवाल

संवैधानिक अड़चनें: लोकसभा और राज्यों के चुनावों की अवधि अलग-अलग होती है. इसे एकसाथ लाने के लिए संविधान में बड़े पैमाने पर संशोधन की जरूरत होगी.

राज्यों की सहमति: सभी राज्यों और राजनीतिक दलों को इस प्रक्रिया पर सहमत करना कठिन होगा.

इस पहल की सिफारिश एक उच्च-स्तरीय समिति ने की थी, जिसकी अध्यक्षता पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने की थी. इस समिति ने लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों को एकसाथ कराने का सुझाव दिया. हालांकि, समिति ने स्थानीय निकायों (नगरपालिका और पंचायत चुनाव) को भी इस प्रक्रिया में शामिल करने की बात की थी, लेकिन फिलहाल केंद्र सरकार ने इस पर विचार न करने का निर्णय लिया है.

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