जैविक हल्दी की खेती का ओडिशा के आदिवासी बहुल कंधमाल जिले में विशेष स्थान है. लंबे समय से हल्दी की खेती जैविक रूप से यहां के आदिवासी पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती रही है. जैसे-जैसे देशभर और विदेश में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है उसी तरह से कंधमाल हल्दी को अपने स्वाद और औषधीय महत्व के लिए राष्ट्रीय बाजारों में जगह मिल रही है.
एमएसएमई इकाइयों ने जिले में हल्दी किसानों के मूल्यवर्धन को बढ़ाया
जैविक हल्दी की खरीद और बिक्री के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन माध्यम से कई एमएसएमई इकाइयां सक्रीय हो रही हैं. एमएसएमई इकाइयों ने जिले में हल्दी किसानों के मूल्यवर्धन को बढ़ाया है. कंधमाल में कई स्वंय सहायता समूह शक्ति टरमरिक इंडस्ट्री जैसे छोटे उद्योगों के माध्यम से जैविक हल्दी की खरीद और प्रसंस्करण में लगे हुए हैं.
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कंधमाल की हल्दी को GI टैग मिलने के बाद बढ़ी ज्यादा मांग
इसी उत्पाद से जुड़े उद्यमी देबाशीष चौधरी बताते हैं कि कोरोना के समय में कारोबार कुछ धीमा था, लेकिन अब ऑनलाइन माध्यम से व्यापार ने फिर से गति पकड़ ली है. साथ ही उन्होंने मोदी सरकार की कृषि नीतियों की भी प्रशंसा की. देबाशीष यह भी बताते हैं कि कंधमाल की हल्दी को GI टैग मिल गया है इसलिए भी लोग इसकी ज्यादा मांग कर रहे हैं.
अनलॉक के बाद ऑनलाइन माध्यम से व्यापार में आई तेजी
महिला उद्यमी सिबनी मोहराना ने कृषि नीतियो की प्रशंसा की और कहा कि अनलॉक के बाद ऑनलाइन माध्यम से व्यापार में तेजी आई है. उद्योग में जुड़े अन्य कर्मियों में मिनाती चौधरी का कहना है कि जैविक हल्दी की बहुत मांग है और कोविड के समय में ऑनलाइन के माध्यम से उन्हें ऑर्डर भी मिल रहे हैं.
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कंधमाल की हल्दी से जुड़ी कुछ खास बातें...
- कंधमाल की हल्दी का रंग सुनहरा पीला होता है और यह हल्दी की अन्य किस्मों से अलग है. कंधमाल की हल्दी को GI टैग मिल चुका है.
- इस हल्दी की ख़ासियत यह है कि इसके उत्पादन में किसानों द्वारा किसी भी तरह के कीटनाशक का इस्तेमाल नहीं किया जाता है.
- यह हल्दी स्वास्थ्य के लिए काफी उपयोगी मानी जाती है और यह जनजातीय लोगों की प्रमुख नकदी फसल है.
- मूल रूप से कंधमाल के आदिवासियों द्वारा उगाई जाने वाली यह हल्दी अपनी औषधीय विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है.