साल 2050 तक समुद्र में डूब जाएगी मायानगरी मुंबई, रिपोर्ट में हुआ खुलासा
विश्व के सबसे बड़े एवं सघन आबादी वाले शहरों में से एक और भारत की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई पर 2050 तक डूबने का खतरा मंडरा रहा है. बढ़ते समुद्री जलस्तर के प्रभाव पर नये अनुमान वाले एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है. साथ ही इसमें कहा गया है कि भारत और अन्य एशियाई देशों जिनमें बांग्लादेश और इंडोनेशिया शामिल हैं.
विश्व के सबसे बड़े एवं सघन आबादी वाले शहरों में से एक और भारत की आर्थिक राजधानी कही जाने वाली मुंबई (Mumabi) पर 2050 तक डूबने का खतरा मंडरा रहा है. बढ़ते समुद्री जलस्तर के प्रभाव पर नये अनुमान वाले एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है. साथ ही इसमें कहा गया है कि भारत और अन्य एशियाई देशों जिनमें बांग्लादेश और इंडोनेशिया शामिल हैं, में अनुमानित उच्च ज्वार रेखा के नीचे रहने वाली आबादी में इस सदी के अंत तक पांच से दस गुना वृद्धि देखी जा सकती है.
मंगलवार को नेचर कम्युनिकेशन जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन में भविष्य में जलस्तर में होने वाली वृद्धि के साथ ही विश्व के बड़े हिस्सों में जनसंख्या घनत्व में वृद्धि के मौजूदा अनुमान को दर्शाया है.
न्यूयॉर्क टाइम्स ने अध्ययन पर आधारित एक खबर में कहा है कि मुंबई का ज्यादातर दक्षिणी हिस्सा इस शताब्दी के मध्य तक साल में कम से कम एक बार अनुमानित उच्च ज्वार रेखा से नीचे जा सकता है.
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अनुमानित उच्च ज्वार रेखा (प्रोजेक्टेड हाइ टाइड लाइन) तटीय भूमि पर वह निशान होता है जहां सबसे उच्च ज्वार साल में एक बार पहुंचता है. खबर में कहा गया, “कई द्वीपों पर बने, शहर के ऐतिहासिक केंद्र के मध्य हिस्से पर इसका खतरा ज्यादा है.” अखबार ने मानचित्रों की एक श्रृंखला भी प्रकाशित की जिसमें मुंबई के साथ ही बैंकॉक और शंघाई के कुछ हिस्सों को 2050 तक डूबा हुआ दिखाया गया है.
यह शोध अमेरिका में ‘क्लाइमेट सेंट्रल’ के स्कॉट ए कल्प और बेंजामिन एच स्ट्रॉस ने प्रकाशित करवाया. क्लाइमेट सेंट्रल एक गैर लाभकारी समाचार संगठन हैं जिससे वैज्ञानिक और पत्रकार जुड़े हैं, जो जलवायु विज्ञान का आकलन करते हैं. यह शोध ‘नेचर कम्युनिकेशन्स’ जर्नल में प्रकाशित हुआ. इसमें पाया गया कि पहले के अनुमानों के मुकाबले तीन गुना अधिक लोग प्रभावित होंगे.
शोधकर्ताओं का कहना है कि दुनिया भर में प्रभावित भूमि पर रह रहे कुल लोगों में से 70 फीसदी से अधिक चीन, बांग्लादेश, भारत, वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपीन और जापान जैसे आठ एशियाई देशों में हैं. संशोधित अनुमानों के आधार पर कहा गया है कि भारत, बांग्लादेश, इंडोनेशिया और फिलीपीन में अनुमानित उच्च ज्वार रेखा से नीचे रहने वाली वर्तमान आबादी में पांच से दस गुना इजाफा हो सकता है.
शोध में कहा गया कि वर्ष 2050 तक 34 करोड़ लोग ऐसी जगहों पर रह रहे होंगे जो सालाना बाढ़ के पानी में डूब जाएगी जबकि इस सदी के अंत तक यह संख्या 63 करोड़ हो जाएगी. अध्ययन पर प्रतिक्रिया देते हुए लेखक अमिताव घोष ने कहा कि मुंबई को लेकर समुद्री जलस्तर वृद्धि के अनुमान बेहद खौफनाक हैं.
उन्होंने ट्विटर पर कहा, “दो परमाणु संस्थानों के आस-पास के इलाके समेत मुंबई का ज्यादातर हिस्सा जलमग्न दिखाया गया है. करोड़ों लोग विस्थापित हो जाएंगे. यह सब 2050 तक होगा. कभी नहीं सोचा था कि यह कुछ दशकों में होगा.” अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की शहरी परिस्थितिकी विद् हरीनी नगेंद्र ने मुंबई में मैंग्रोव की बर्बादी पर निराशा जाहिर की.
उन्होंने व्यंग्यात्मक ट्वीट में कहा, “नया शोध दिखाता है कि 2050 तक बाढ़ से विस्थापित होने वाले तटीय शहरों के लोगों की संख्या हमारी सोच से तीन गुणा ज्यादा होगी. मुंबई का ज्यादातर हिस्सा जलमग्न होगा. तट पर और अधिक निर्माण, नवी मुंबई मैंग्रोव को बर्बाद करने का बहुत अच्छा समय है.” मैंग्रोव ऐसी झाड़ियां व वृक्ष होते हैं जो खारे पानी या अर्ध-खारे पानी में पाए जाते हैं.